मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

भगवान दत्तात्रेय

 


त्रिदेव के स्वरूप, सन्मार्ग की राह दिखाने वाले भगवान दत्तात्रेय

प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन, दत्त जयंती उत्सव न केवल महाराष्ट्र में अपितु महाराष्ट्र के बाहर भी मनाया जाता है। आनंद के वातावरण में मनाए जाने वाले इस त्योहार में कुछ जगहों पर जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है। इस अवसर पर कहीं-कहीं दत्त यज्ञ का आयोजन किया जाता है। दत्त जयंती के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त गुरुचरित्र का पाठ करते हैं। यह दत्त जयंती के महत्व को रेखांकित करता है ।

सनातन धर्म में दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन त्रिगुण स्वरूप यानि ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तीनों का सम्मलित स्वरूप दत्तात्रेय की पूजा का विधान है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने व दर्शन-पूजन करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा से मनुष्य के बिगड़े काम बन जाते हैं।


निराला है इनका स्वरूप

इनका स्वरूप बहुत निराला है, इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएं हैं। इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रूप से अंश मौजूद है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं-सत्व, रजस और तमस एवं उनके छह हाथ यम(नियंत्रण),नियम (नियम),साम (समानता),दम (शक्ति) और दया का प्रतिनिधित्व करते हैं.


इन्हें बनाया अपना गुरु

ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के अंश दत्तात्रेय एक ऐसे अवतार हुए हैं, जिनके एक नहीं पूरे 24 गुरु हुए। दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। दत्तात्रेय सिद्धों के परमाचार्य हैं, उन्होंने जिससे भी जो कुछ ज्ञान पाया उसे ही गुरु के रूप में स्वीकार किया। इनके गुरुओं में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुंद्र, चन्द्रमा व सूर्य जैसे आठ प्रकृति के तत्व हैं। जीव-जंतुओं में सर्प, मकड़ी, झींगुर,पतंगा,भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अज़गर व हाथी सहित 12 गुरु हुए। बालक, लोहार, कन्या,और पिंगला नामक वेश्या को भी इन्होंने अपना गुरु स्वीकार किया । भगवान दत्तात्रेय ने कहा है कि हमें जीवन में जिस किसी से भी ज्ञान,विवेक व किसी न किसी रूप में कोई भी शिक्षा मिले,उसे ही अपना गुरु मान लेना चाहिए।  

      जानिए ये 24 गुरु कौन-कौन थे और उनसे कौन सी सीख ली जा सकती है...


पृथ्वी - दत्तात्रेय ने पृथ्वी से सहनशीलता का गुण सीखा था। पृथ्वी अच्छे-बुरे हर प्राणी का भार सहन करती है, पृथ्वी पर कई तरह के प्रहार किए जाते हैं, खनन होते हैं, लेकिन पृथ्वी इन्हें सहन करती रहती है।


पिंगला वेश्या - उस समय एक पिंगला नाम की वेश्या थी। दत्तात्रेय ने उससे सीख ली थी कि सिर्फ पैसों को महत्व नहीं देना चाहिए। जब पिंगला के मन में वैराग्य जागा तो उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में असली सुख है।


कबूतर - दत्तात्रेय ने देखा कि कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में फंस जाता है। कबूतर से दत्तात्रेय ने ये सीख ली कि बहुत ज्यादा मोह दु:ख का कारण बनता है।


सूर्य - दत्तात्रेय ने सूर्य में देखा कि ये अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग तरह का दिखाई देता है। हमारी आत्मा भी एक ही है, लेकिन ये भी सूर्य की तरह ही कई रूपों में दिखाई देती है।


वायु - जिस तरह अच्छी या बुरी जगह पर बहने के बाद वायु का मूल रूप नहीं बदलता है, ठीक उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपने गुण छोड़ना नहीं चाहिए।


हिरण - हिरण से यह सीखें कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए कि हम परेशानियों में फंस जाएं। हिरण मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे आसपास शेर के होने का आभास ही नहीं होता है।


समुद्र - समुद्र की तरह ही हमें भी उतार-चढ़ाव की वजह से रुकना नहीं चाहिए। हमें हर स्थिति में आगे बढ़ते रहना चाहिए।


पतंगा - पतंगा आग की ओर आकर्षित होता है और जल जाता है। हमें इससे सीख लेनी चाहिए कि कभी भी मोह में फंसना नहीं चाहिए।


हाथी - हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उस पर मोहित हो जाता है और सबकुछ भूल जाता है। हाथी से सीख लें कि संन्यासी को स्त्रियों से बहुत दूर रहना चाहिए, वर्ना वह अपने तप से भटक सकता है।


आकाश - आकाश से सीख सकते हैं कि हर स्थिति में एक समान रहना चाहिए। देश, काल, परिस्थिति जैसी भी आकाश एक समान रहता है।


जल - दत्तात्रेय ने जल से सीखा था कि हमें हमेशा पवित्र रहना चाहिए।


छत्ते से शहद निकालने वाला - मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र नहीं करना चाहिए, वर्ना कोई दूसरा उन चीजों को हमारे पास से ले जाएगा।


मछली - स्वाद का लोभ न रखें। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े के लोभ में आकर खुद कांटे में फंस जाती है।


कुरर पक्षी - कुरर पक्षी से सीखें कि किसी चीज को हमेशा अपने पास रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को छिन लेते हैं।


बालक - छोटे बच्चे से सीख लें कि परिस्थितियों कैसी भी हों, हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहें।


आग - आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। हमें भी परिस्थिति के हिसाब से ढल जाना चाहिए।


चंद्रमा - घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, ठीक इसी तरह हमारी आत्मा भी बदलती नहीं है।


कुमारी कन्या - दत्तात्रेय ने कुमारी कन्या से सीख ली कि बिना शोर किए अपना काम करते रहें। दत्तात्रेय ने धान कूटती हुई एक कन्या को देखा। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। इसके बाद कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया।


शरकृत या तीर बनाने वाला - दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाले को देखा जो कि तीर बनाने में इतना खोया हुआ था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, लेकिन उसे मालूम भी नहीं हुआ। हमें भी अपने काम में खोए रहना चाहिए।


सांप - दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए और जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।


मकड़ी - मकड़ी जाल बनाती है, उसमें रहती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। भगवान भी अपनी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।


भृंगी कीड़ा - इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।


भौंरा या मधुमक्खी - मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेते हैं, हमें भी जहां से सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।


अजगर - अजगर से संतोष में रहना सीखना चाहिए।


भगवान विष्णु ने महर्षि अत्रि को दिया वरदान

श्री मदभागवत ग्रंथ में एक प्रसंग है कि महर्षि अत्रि ने जगत के पालनहार परमेश्वर श्री विष्णु को पुत्र रूप में पाने की अभिलाषा की थी। उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए एक दिन भगवान ने प्रकट होकर महर्षि से कहा-'मैंने स्वयं को आपको दिया।'इसी देने के भाव से 'दत्त' और अत्रि के ज्येष्ठ पुत्र होने से आत्रेय का मिला हुआ रूप दत्तात्रेय हुआ एवं इनकी माता परम पतिभक्त सती अनुसूया थी।


भगवान श्री दत्तात्रेय को तंत्राधिपति भी कहा जाता हैं, ऐसा कहा जाता हैं कि जो भी मनुष्य हर दिन भगवान दत्तात्रेय का स्मरण करते हुए उनके मंत्रों का जप करता हैं एवं उनके श्री नारद पुराण में रचित दिव्य स्तोत्र का पाठ करता हैं उन मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर होने के साथ पितरदोष से भी मुक्ति मिलने के साथ सतत उन्नति करने लगता है । 

भगवान श्री दत्तात्रेय की इस स्तुति का पाठ करने से दूर होता है पितृदोष, होती हैं हर मनोकामना पूरी-


दत्तात्रेय स्तोत्र ।।

जटाधरं पाण्डुराङ्गं शूलहस्तं कृपानिधिम् । 

सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥ १॥ 

अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारदऋषिः । 

अनुष्टुप् छन्दः । श्रीदत्तपरमात्मा देवता । 

श्रीदत्तप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ 

जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहार हेतवे । 

भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १॥ 

जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च । 

दिगम्बरदयामूर्ते दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ २॥ 

कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च । 

वेदशास्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ३॥ 

र्हस्वदीर्घकृशस्थूल-नामगोत्र-विवर्जित । 

पञ्चभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ४॥ 

यज्ञभोक्ते च यज्ञाय यज्ञरूपधराय च । 

यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ५॥ 

आदौ ब्रह्मा मध्य विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः । 

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ६॥ 

भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे । 

जितेन्द्रियजितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ७॥ 

दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपध्राय च । 

सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ८॥ 

जम्बुद्वीपमहाक्षेत्रमातापुरनिवासिने । 

जयमानसतां देव दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ९॥ 

भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे । 

नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १०॥ 

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले । 

प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ ११॥ 

अवधूतसदानन्दपरब्रह्मस्वरूपिणे । 

विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १२॥ 

सत्यंरूपसदाचारसत्यधर्मपरायण । 

सत्याश्रयपरोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १३॥ 

शूलहस्तगदापाणे वनमालासुकन्धर । 

यज्ञसूत्रधरब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १४॥ 

क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च । 

दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १५॥ 

दत्त विद्याढ्यलक्ष्मीश दत्त स्वात्मस्वरूपिणे । 

गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १६॥ 

शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम् । 

सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥ १७॥ 

इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम् । 

दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम् ॥ १८॥


॥ इति श्रीनारदपुराणे नारदविरचितं दत्तात्रेयस्तोत्रं सुसम्पूर्णम् ॥




 ॥ श्रीदत्तमाला मन्त्र ॥


।। ॐ नमो भगवते दत्तात्रेयाय, स्मरणमात्रसन्तुष्टाय,

महाभयनिवारणाय महाज्ञानप्रदाय, चिदानन्दात्मने

बालोन्मत्तपिशाचवेषाय, महायोगिने अवधूताय,

अनसूयानन्दवर्धनाय अत्रिपुत्राय, ॐ भवबन्धविमोचनाय,

आं असाध्यसाधनाय, ह्रीं सर्वविभूतिदाय,

क्रौं असाध्याकर्षणाय, ऐं वाक्प्रदाय, क्लीं जगत्रयवशीकरणाय,

सौः सर्वमनःक्षोभणाय, श्रीं महासम्पत्प्रदाय,

ग्लौं भूमण्डलाधिपत्यप्रदाय, द्रां चिरंजीविने,

वषट्वशीकुरु वशीकुरु, वौषट् आकर्षय आकर्षय,

हुं विद्वेषय विद्वेषय, फट् उच्चाटय उच्चाटय,

ठः ठः स्तम्भय स्तम्भय, खें खें मारय मारय,

नमः सम्पन्नय सम्पन्नय, स्वाहा पोषय पोषय,

परमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्राणि छिन्धि छिन्धि,

ग्रहान्निवारय निवारय, व्याधीन् विनाशय विनाशय,

दुःखं हर हर, दारिद्र्यं विद्रावय विद्रावय,

देहं पोषय पोषय, चित्तं तोषय तोषय,

सर्वमन्त्रस्वरूपाय, सर्वयन्त्रस्वरूपाय,

सर्वतन्त्रस्वरूपाय, सर्वपल्लवस्वरूपाय,

ॐ नमो महासिद्धाय स्वाहा ।।


दत्तात्रेय मंत्र साधना

भगवान दत्तात्रेय मंत्र साधना  के लिए कुछ विशेष मंत्र बताये गए हैं। भगवान दत्तात्रेय  के गायत्री और तांत्रोत्क मंत्र का नियमित जाप पूरे विधि-विधान से करने से मानसिक विकास होता है, बुद्धि बढ़ती है, मन का भय दूर होता है, आत्मबल मिलता है, समस्याएं दूर होती है और मनोवांछित लक्ष्य तक पहुंचने की शक्ति हासिल होती है। दत्तात्रेय मंत्र  संकटनाशक और कामनापूर्तिकारक हैं।


गुरुवार और पूर्णिमा की शाम दत्तात्रेय मंत्र साधनाके लिए बहुत ही शुभ मानी गयी है। इसलिये इस दिन स्फटिक माला से जितने ज्यादा मंत्र जाप कर सकते है करना चाहिये। मंत्र जाप से पूर्व शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए


दत्तात्रेय मंत्र साधना विधि


1. चौकी पर लाल रंग का कपडा बिछाकर उस पर भगवान् दत्तात्रेय मूर्ति स्थापित करे।

2. एक मिट्टी के घड़े के ऊपर एक सूखे नारियल को लाल चुनरी मे लपेट कर चारो तरफ आम के पते लगाकर रख दे।

3. तुलसी दल, बिल्वपत्र और गेंदे के फुल भगवान को अर्पित करे ।

4. मेवे का भोग लगा दे।

5.अखंड दीपक जलाये जो साधना शुरु होने से लेकर पूरी रात तक जलते रहेंगे।


दत्तात्रेय मंत्र साधना  के लिए आपका आसान पीला या लाल रंग का होना चाहिए।

अपने आसान के पास एक बर्तन मे पानी से भरा बर्तन रखे।

बाएं हाथ में फूल और चावल के कुछ दाने लेकर विनियोग की प्रक्रिया निम्नलिखित मंत्र के साथ करे :

ऊँ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषिः अनुष्टुप छंदः,

श्री दत्त परमात्मा देवताः, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोगः!

फूल और चावल सिर झुकाकर भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति को अर्पित कर दे।

 दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ करे

अब दत्त मंत्र  का स्फटिक की माला से जाप करे

दत्तात्रेय मंत्र

दत्तात्रेय ध्यान मंत्र

जटाधाराम पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम।

सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥


ऊं द्रां बीज मंत्र है। 


तांत्रोक्त दत्तात्रेय मंत्र- ऊं द्रांदत्तात्रेयाय नम: है। 


दत्तात्रेय का महामंत्र - 'दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा'


दत्तात्रेय गायत्री मंत्र

ll ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात ll


दत्त तांत्रोत्क मंत्र-

ll ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम: ll



मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन शाम को मृग नक्षत्र में भगवान दत्त का जन्म हुआ था, इसलिए उस दिन सभी दत्त क्षेत्रों में दत्त जयंती मनाई जाती है।


पुराणों के अनुसार जन्म का इतिहास 

अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया एक पतिव्रता स्त्री थी। पतिव्रता होने कारण उनके पास बहुत ही सामर्थ्य था जिसके कारण इन्द्रादि देव घबरा गए थे और ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाकर उन्होंने कहा की सती अनसूया के वरदान के कारण किसी को भी देवता का स्थान प्राप्त हो सकता है इसलिए आप कुछ उपाय करें अन्यथा हम उनकी सेवा करेंगे, यह सुनकर त्रिमूर्ति बोले कि वह कितनी बड़ी पतिव्रता और सती है वह हम देखेंगे। 

एक बार अत्रि ऋषि अनुष्ठान के लिए बाहर गए, तो त्रिमूर्ति एक अतिथि के रूप में आए और अनुसूया से भीख माँगने लगे। अनुसूया ने उत्तर दिया, "ऋषि अनुष्ठान के लिए बाहर गए हैं। उनके आने तक रुको।" तब त्रिदेव ने अनुसूया से कहा, "ऋषि  को लौटने में समय लगेगा। हम बहुत भूखे हैं। हमें तुरंत भोजन दो, नहीं तो हम कहीं और चले जाएंगे। हमने सुना है कि 'आश्रम में आने वाले अतिथियों को आप इच्छानुसार भोजन देते हैं'; इसलिए हम यहां इच्छित भोजन करने आए हैं।" और वे भोजन करने बैठ गए। जैसे ही भोजन आया, उन्होंने कहा, "आपकी सुंदरता को देखते हुए, हम चाहते हैं कि आप हमें निवस्त्र होकर भोजन कराएं ।" मेरा मन शुद्ध है, तो कामदेव की क्या बात है? ऐसा विचार कर के उसने अतिथियों से कहा, "मैं निवस्त्र हो कर आप को भोजन कराऊंगी ।" आप आनंद से खाना। ”फिर वह रसोई में गई और अपने पति का चिंतन कर के प्रार्थना कर के सोचा,” मेहमान मेरे बच्चे हैं ”और नग्न होकर भोजन परोसने आई । उन्होंने मेहमानों के स्थान पर तीन बच्चों को रोता हुआ देखा। वह उन्हें एक ओर ले गई और स्तनपान कराया तथा बच्चों ने रोना बंद कर दिया। अत्रि ऋषि आए। उसने उन्हें सारी कहानी सुनाई। उन्होंने कहा, "स्वामी देवेन दत्त।" इसका अर्थ है - "हे स्वामी, ईश्वर द्वारा दिए हुए बच्चे (बच्चे)।" इसलिए अत्रि जी ने बच्चों का दत्त ऐसे नामकरण किया। बच्चे पालने में रहे और ब्रह्मा, विष्णु और महेश उनके सामने खड़े हो गए और प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा । अत्रि और अनुसूया ने, "बच्चे हमारे घर में रहने चाहिए।" यह वर मांगा । बाद में ब्रह्मा से चन्द्रमा, विष्णु से दत्त और शंकर से दुर्वासा हुए । तीनों में से, चंद्र और दुर्वासा तपस्या के लिए जाने की अनुमति लेकर क्रमशः चंद्रलोक की ओर तीर्थक्षेत्र गए। तीसरे, दत्त विष्णुकार्य के लिए पृथ्वी पर ही रहे ।


दत्त के परिवार का अर्थ 

दत्त के पीछे गाय अर्थात पृथ्वी और चार कुत्ते चार वेद हैं। औदुंबर वृक्ष दत्त का एक श्रद्धेय रूप है; क्योंकि इसमें दत्त तत्व अधिक प्रमाण में है। दत्तगुरु ने पृथ्वी को अपना गुरु बनाया और पृथ्वी से सहिष्णु और सहनशील होना सीखा। साथ ही अग्नि को गुरु बनाकर यह शरीर क्षणभंगुर है, यह सीखा । इस प्रकार, दत्तगुरु ने चराचर में प्रत्येक वस्तु में ईश्वर के अस्तित्व को देखने के लिए चौबीस गुरु बनाए।'श्रीपाद श्रीवल्लभ' दत्त के प्रथम अवतार 'श्री नृसिंह सरस्वती' दूसरे अवतार, माणिकप्रभु तीसरे अवतार और श्री स्वामी समर्थ महाराज चौथे अवतार थे। चार पूर्ण अवतार और कई आंशिक अवतार हैं। जैन दत्तगुरु को 'नेमिनाथ' और मुसलमान 'फकीर' के रूप में देखते हैं।

दत्त भगवान प्रतिदिन बहुत भ्रमण करते थे। वे स्नान करने हेतु वाराणसी जाते थे, चंदन लगाने के लिए हेतु प्रयाग जाते थे प्रतिदिन भिक्षा कोल्हापुर, महाराष्ट्र में मांगते थे दोपहर के भोजन  पंचालेश्वर, महाराष्ट्र के  बीड जिले के गोदावरी के पात्र में लेते थे । पान ग्रहण करने के लिए महाराष्ट्र के मराठवाड़ा जिले के राक्षसभुवन जाते हैं, तथा जबकि  प्रवचन और कीर्तन बिहार के नैमिषारण्य में सुनने जाते हैं। निद्रा करने के लिए माहुरगड़ और योग गिरनार में करने जाते थे ।

दत्तपूजा के लिए, सगुण मूर्ति की अपेक्षा पादुका और औदुंबर वृक्ष की पूजा करते हैं। पूर्व काल में, मूर्ति अधिकतर एकमुखी होती थीं परन्तु आजकल त्रिमुखी मूर्ति अधिक प्रचलित हैं। दत्त गुरुदेव हैं। दत्तात्रेय को सर्वोच्च गुरु माना जाता है। उन्हें गुरु के रूप में पूजा जाता है । 'श्री गुरुदेव दत्त', 'श्री गुरुदत्त' इस प्रकार उनका जयघोष किया जाता है। 'दिगंबर दिगंबर श्रीपाद वल्लभ दिगंबर' यह नाम धुन है।

दत्तात्रेय के कंधे पर एक झोली है। इसका अर्थ इस प्रकार है- झोली मधुमक्खी का प्रतीक है। जैसे मधुमक्खियां एक जगह से दूसरी जगह जाकर शहद इकट्ठा करती हैं , वैसे ही दत्त घर-घर जाकर भिक्षा मांगकर झोली में इकट्ठा करते हैं। घर-घर जाकर भिक्षा माँगने से अहंकार शीघ्र कम हो जाता है; तथा झोली भी अहंकार के विनाश का प्रतीक है।


दत्त जयंती उत्सव को ऐसे बनाएं भावपूर्ण   

महिलाएं साड़ी पहन सकती हैं और पुरुष सात्विक वस्त्र जैसे धोती, कुर्ता पहन सकते हैं। सात्विक वेशभूषा से भक्तों को अधिक लाभ हो सकता है । 'श्रीदत्तात्रेय कवच' का पठन करने के साथ-साथ दत्त नाम का जप विद्यार्थियों के लिए लाभकारी हो सकता है। उत्सव स्थल पर ऊंची आवाज में संगीत नहीं बजना चाहिए, रज तम निर्माण करने वाली बिजली की रोशनी ना करें। दत्त जयंती के जुलूस में ताल, मृदंग जैसे सात्विक वाद्य यंत्रों का प्रयोग करना चाहिए।



दत्त जयंती का महत्व 

दत्त जयंती के दिन दत्त तत्व सामान्य से 1000 गुना अधिक पृथ्वी पर कार्यरत रहता है। इस दिन दत्त का नाम जप आदि उपासना करने से दत्त तत्व का अधिकतम लाभ मिलता है।


कैसे मनाएं जन्मोत्सव 

दत्त जयंती मनाने की कोई शास्त्रोक्त विशिष्ट विधि नहीं है। इस त्योहार से पहले सात दिनों तक गुरुचरित्र का पाठ करने की प्रथा है। इसे गुरुचरित्र सप्ताह कहा जाता है। भक्ति के प्रकार जैसे भजन, पूजन और विशेष रूप से कीर्तन आदि प्रचलन में हैं। महाराष्ट्र में जैसे औदुंबर, नरसोबा की वाडी, गाणगापुर आदि आदि स्थानों पर इस पर्व का विशेष महत्व है। दत्त जयंती तमिलनाडु में भी मनाई जाती है। कुछ स्थानों पर इस दिन दत्त यज्ञ किया जाता है।


दत्त यज्ञ के बारे में जानकारी 

दत्त यज्ञ में, पवमान पंचसूक्त संस्करण (जप) और उसके दशमांश या एक तिहाई घी और तिल से हवन करते हैं। दत्त यज्ञ के लिए किए जाने वाले जपों की संख्या निश्चित नहीं है। स्थानीय पुजारियों के आदेश के अनुसार जप और हवन किया जाता है।


दत्त तिर्थक्षेत्रे


श्री क्षेत्र नृसिंहवाडी

श्री क्षेत्र औदुंबर

श्री क्षेत्र कुरवपूर

श्री क्षेत्र पीठापूर

श्री क्षेत्र कडगंची

श्री क्षेत्र करंजी

श्री क्षेत्र मुरगोड

श्री क्षेत्र कुमशी

श्री क्षेत्र बाचणी

श्री क्षेत्र बसवकल्याण

श्री क्षेत्र दत्तभिक्षालिंग

श्री क्षेत्र अनसूयातीर्थ

श्री क्षेत्र गुरुशिखर अबु

श्री क्षेत्र आष्टी दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र नारायणपूर

श्री क्षेत्र कर्दळीवन

श्री क्षेत्र चिकुर्डे दत्त देवस्थान

श्री क्षेत्र जवाहरद्वीप (बुचर आयलंड)

श्री दगडुशेठ दत्तमंदिर पुणे

नासिक रोड दत्तमंदिर

श्री भटगाव दत्तमंदिर नेपाळ

श्री क्षेत्र पवनी

श्री क्षेत्र कुबेरेश्र्वर बडोदा

श्री तारकेश्र्वर स्थान

श्री क्षेत्र नीलकंठेश्र्वर बडोदा

माधवनगर फडके दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र राक्षसभुवन

श्री क्षेत्र अमरापूर

श्री क्षेत्र कारंजा

श्री क्षेत्र दत्तवाडी सांखळी गोवा

श्री क्षेत्र माणगांव

श्री क्षेत्र माणिकनगर

श्री क्षेत्र माहूर

श्री दत्तमंदिर रास्तापेठ पुणे

श्री क्षेत्र डभोई बडोदा

श्री दत्तमंदिर डिग्रज

श्री जंगली महाराज मंदिर पुणे

श्री क्षेत्र लोणी भापकर दत्तमंदिर

श्री एकमुखी दत्तमुर्ती कोल्हापूर

श्री क्षेत्र अंतापूर

श्री क्षेत्र अंबेजोगाई

श्री क्षेत्र अक्कलकोट

श्री क्षेत्र अमरकंटक

श्री क्षेत्र आष्टे दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र कोळंबी

श्री क्षेत्र खामगाव दत्त मंदिर

श्री क्षेत्र गरुडेश्वर गुजराथ

श्री क्षेत्र गाणगापूर

श्री क्षेत्र गिरनार गुरुशिखर

श्री क्षेत्र गुंज

श्री क्षेत्र गेंडीगेट दत्तमंदिर बडोदा

श्री क्षेत्र गोकर्ण महाबळेश्वर

श्री क्षेत्र चौल दत्तमंदीर

श्री क्षेत्र जबलपूर पादुकामंदिर

श्री क्षेत्र टिंगरी

श्री क्षेत्र दत्ताधाम - प्रती गिरनार

श्री क्षेत्र दत्ताश्रम जालना

श्री क्षेत्र दुर्गादत्त मंदिर माशेली गोवा

श्री क्षेत्र देवगड नेवासे

श्री क्षेत्र नरसी

श्री क्षेत्र नारेश्र्वर

श्री क्षेत्र पांचाळेश्र्वर आत्मतीर्थ

श्री क्षेत्र पाथरी, परभणी

श्री क्षेत्र पैजारवाडी

श्री क्षेत्र पैठण

श्री क्षेत्र बाळेकुंद्री

श्री क्षेत्र बासर आणि ब्रह्मेश्वर

श्री क्षेत्र भामानगर (धामोरी)

श्री क्षेत्र भालोद

श्री क्षेत्र मंथनगड

श्री क्षेत्र माचणूर

श्री क्षेत्र रुईभर दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र विजापूर नृसिंह मंदिर

श्री क्षेत्र वेदांतनगरी (दत्तदेवस्थान नगर)

श्री क्षेत्र शिरोळ भोजनपात्र

श्री क्षेत्र शिवपुरी दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र शिर्डी

श्री क्षेत्र शेगाव

श्री क्षेत्र शेणगाव एकमुखी दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र शुचिन्द्रम दत्तमंदिर

श्री क्षेत्र सुलीभंजन

श्री क्षेत्र सटाणे

श्री क्षेत्र सदलगा

श्री क्षेत्र साकुरी

श्री साई मंदिर कुडाळ गोवा

श्री सद्गुरू गुरुनाथ मुंगळे ध्यानमंदिर, पुणे

श्री स्वामी समर्थ मठ चेंबूर

श्री स्वामी समर्थ मठ दादर

श्री स्वामी समर्थ संस्थान बडोदा

श्री गुरुदेवदत्त मंदिर पुणे

श्री गोरक्षनाथ मंदिर श्रीक्षेत्र भामानगर (धामोरी)

श्री दत्तपादुका मंदिर देवास

श्री दत्तमंदिर वाकोला

श्री भणगे दत्त मंदिर फलटण

श्री वासुदेवनिवास (श्री गुळवणी महाराज आश्रम)

श्री हरिबाबा मंदिर, पणदरे

श्री हरिबुवा समाधी मंदिर फलटण

श्री हिंगोलीचे दत्त मंदिर

श्री क्षेत्र हिप्परगी

श्री तांबे स्वामी महाराज कुटी व श्री दत्त मंदिर इंदूर

श्रीदत्त गिरनारी मठ, भुसावळ

वैशिष्ट्य पूर्ण दत्तमूर्ती


दत्तसंप्रदाय सत्पुरुष


श्रीपाद श्रीवल्लभ

श्री अनंतसुत कावडीबोवा

डॉ. अनिरुद्ध जोशी (अनिरुद्ध बापू)

श्री आनंदनाथ महाराज

श्री आनंदभारती स्वामी महाराज

श्री आनंदयोगेश्वर निळकंठ महाराज

श्री आगाशे काका

श्री आत्माराम शास्त्री जेरें

ओम श्री चिले महाराज

श्री उपासनी बाबा साकोरी

श्री एकनाथ महाराज

श्री काशीकर स्वामी (कृष्णानंदसरस्वती)

श्री किनाराम अघोरी

श्री किसनगिरी महाराज, देवगड

श्री कृष्णनाथ महाराज

श्री कृष्णेन्द्रगुरु

श्री केशवानंद सरस्वती

कोल्हापूरच्या विठामाई

श्री गंगाधर तीर्थ स्वामी

श्री गगनगिरी महाराज

श्री गजानन महाराज अक्कलकोट

श्री गजानन महाराज शेगाव

श्री गुरुकृष्णसरस्वती (कुंभार स्वामी)

गुरु ताई सुगंधेश्र्वर

श्री गुरुनाथ महाराज दंडवते

श्री गुळवणी महाराज

श्री गोपाळ स्वामी

श्री गोपाळबुवा केळकर

श्री गोरक्षनाथ

श्री गोविंद स्वामी महाराज

श्री चिदंबर दिक्षीत

श्री चोळप्पा

श्री जंगलीमहाराज

श्री जनार्दनस्वामी

ताई दामले

श्री दत्तगिरी महाराज

श्री दत्तनाथ उज्जयिनीकर

श्री दत्तमहाराज अष्टेकर

श्री दत्तमहाराज कवीश्र्वर

श्री दत्त दिगंबर अण्णाबुवा महाराज

श्री दत्तावतार दत्तस्वामी

श्रीश्री गणेश महाराज

श्री दादा महाराज जोशी

श्री दासगणु महाराज

श्री दासोपंत

श्री दिंडोरीचे मोरेदादा

श्री दिगंबरदास महाराज (वि. ग. जोशी)

श्री दिगंबरबाबा वहाळकर

श्री दीक्षित स्वामी (नृसिंहसरस्वती)

श्री देवमामालेदार

श्री देवेंद्रनाथ महाराज

श्री धूनी वाले दादाजी (गिरनार सौराष्ट्र)

श्री नरसिंहसरस्वती स्वामी आळंदी

श्री गोपालदास महंत, नाशिक

श्री गोविंद महाराज उपळेकर

श्री नानामहाराज तराणेकर

श्री नारायण गुरुदत्त महाराज

श्री नारायण महाराज केडगावकर

श्री नारायण महाराज जालवणकर

श्री नारायणकाका ढेकणे महाराज

श्री नारायणतीर्थ देव

श्री नारायणस्वामी

श्री नारायणानंद सरस्वती औदुंबर

श्री निपटनिरंजन

श्री निरंजन रघुनाथ

श्री नृसिंह सरस्वती

श्री पंत महाराज बाळेकुंद्रीकर

श्री पंडित काका धनागरे

श्री पद्मनाभाचार्य स्वामी महाराज

श्री परमात्मराज महाराज

श्री पाचलेगावकर महाराज (संचारेश्वर)

श्री पिठले महाराज

श्री बाबामहाराज आर्वीकर

श्री बालमुकुंद

श्री बालमुकुंद बालावधुत दत्त महाराज

श्री बाळकृष्ण महाराज सुरतकर

श्री बाळाप्पा महाराज

श्री ब्रह्मानंद स्वामी महाराज

श्री भैरवअवधूत ज्ञानसागर

श्री मछिंद्रनाथ

श्री माणिकप्रभु

श्री महिपतिदास योगी

श्री मामा देशपांडे

श्री मुक्तेश्वर

श्री मोतीबाबा योगी जामदार

श्री मौनी स्वामी महाराज

श्री यती महाराज

श्री योगानंद सरस्वती (गांडा महाराज)

श्री रंगावधूत स्वामीमहाराज

श्री रघुनाथभटजी नाशिककर (सतरावे शतक)

श्री रामकृष्ण क्षीरसागर महाराज

श्री रामचंद्र योगी

श्री रामानंद बिडकर महाराज

श्री लोकनाथतीर्थ स्वामी

श्री वामनराव वैद्य वामोरीकर

श्री वासुदेव बळवंत फडके

श्री वासुदेवानंद सरस्वती (टेंबे) स्वामी

श्री विद्यानंद बेलापूरकर

श्री विरुपाक्षबुवा नागनाथ

श्री विष्णुदास महाराज दत्तवाडी तेल्हारा

श्री विष्णुदास महाराज, माहुर

श्री विष्णुबुवा ब्रह्मचारी

श्री शंकर पुरूषोत्तमतीर्थ

श्री शंकर महाराज

श्री शंकर दगडे महाराज

श्री शंकर स्वामी

श्री शरद जोशी महाराज

श्री शांतानंद स्वामी

श्री श्रीधरस्वामी महाराज

श्री सच्चिदानंद विद्याशंकर भारती

श्री सहस्त्रबुद्धे महाराज पुणे

श्री साईबाबा शिर्डी

श्री साधु महाराज कंधारकर

श्री साटम महाराज

श्री सायंदेव

श्री सिद्धेश्वर महाराज

श्री सीताराम महाराज

श्री स्वामीसुत

श्री स्वामी अद्वितीयानंदसरस्वती महाराज

श्री स्वामी समर्थ अक्कलकोट

श्री हरिबाबा महाराज

श्री हरिभाऊ निठुरकर महाराज

श्री हरिश्चंद्र जोशी

सौ. ताईमहाराज चाटुपळे

ॐ श्रीदत्त ठाकूर महाराज


उत्सव, ग्रंथ, व्रते व दत्त संप्रदाय विशेष

मानसपूजा

आरत्या

श्री गुरुचरित्र

श्री दत्त महात्म्य

श्री गजानन विजय ग्रंथ

श्रीपाद श्रीवल्लभ चरितामृत ग्रंथ

श्री दत्तपुराण

श्री गुरुगीता

श्री स्वामी चरित्र सारामृत

श्री अनघाष्टमी व्रत

श्रीचंद्रलापरमेश्वरी

श्री सत्यदत्तव्रत पूजा

श्री अनंत व्रत

चांद्रायण व्रत

श्री दत्त मालामंत्र

इंदुकोटी तेजकिरण स्तोत्र

श्री दत्तभावसुधारस स्तोत्र

अपराधक्षमापनस्तोत्रं

श्री दत्तात्रेय स्तोत्र

श्रीगुरुसहस्रनामस्तोत्रम्

सिद्धमंगलस्तोत्र

जयलाभ यश स्तोत्र

प्रासादिक सिद्ध स्तोत्रे

करुणात्रिपदी

नर्मदा परिक्रमा

दत्त परिक्रमा

तीर्थयात्रा 

देवपूजा

गुरुपौर्णिमा

औदुंबर वृक्ष - कल्पवृक्ष

श्री वासुदेवानंद सरस्वतींचे चातुर्मास - १ ते ७

श्री वासुदेवानंद सरस्वतींचे चातुर्मास - ८ ते १६

श्री वासुदेवानंद सरस्वतींचे चातुर्मास - १७ ते २३

कन्यागत महापर्वकाल

कुंडलिनी शक्ती जागृती  (शक्तिपात दीक्षा) 

रुद्राक्ष

श्री दत्तलीलामृताब्धिसार अष्टमलहरी

श्री नवनाथ पारायण पुजा वि

धी 

श्री रूद्र अभिषेक महत्त्व 

अश्वत्थ वृक्ष

गुरुद्वादशी

घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र

चार वाणी

दत्त संप्रदाय साहित्यातील माणिकमोती

भस्म महात्म्य

श्री गुरुप्रतिपदा

श्री दत्त जयंती

श्री दत्त बावनी

श्री दत्तस्तवस्तोत्र

श्री दत्तात्रय वज्रकवच स्तोत्र

श्री नृसिहसरस्वती जयंती


श्री स्वामी चरित्र व श्री गुरुस्तवन स्तोत्र

श्री स्वामी समर्थ प्रकटदिन








सतुआन

सतुआन  उत्तरी भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक सतुआन प्रमुख पर्व है. यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है. मेष संक्रांति के ...