अक्षय तृतीया पर्व
अक्षय तृतीया , जिसे अक्ती या आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है , एक वार्षिक हिंदू और जैन वसंत त्योहार है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है । यह क्षेत्रीय रूप से भारत और नेपाल में हिंदुओं, जैनियों और झारखंड आदिवासियों द्वारा एक शुभ दिन के रूप में मनाया जाता है , क्योंकि यह "अनंत समृद्धि के तीसरे दिन" का प्रतीक है।
हिन्दू महिने के वैशाख मास का सबसे महत्वपूर्ण पर्व अक्षय तृतीया का ही माना जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने अवतार लिया था। भगवान विष्णु के ही अन्य अवतार भगवान परशुराम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।
इस कारण यह बहुत ही सौभाग्यशाली दिन माना जाता है। इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त देखें किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु की पूजा विधि
आज के दिन प्रात: स्नान आदि के बाद साफ वस्त्र धारण करके पूजा स्थान की सफाई कर लें. उसके बाद श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद या पीले गुलाब या फिर सफेद कमल के फूल से करें. इस दिन दो कलश लें.
एक कलश को जल से भर दें और उसमें पीले फूल, सफेद जौ, चंदन और पंचामृत डालें. उसे मिट्टी के ढक्कर से ढक दें और उस पर फल रखें.
इसके बाद दूसरे कलश में जल भरें और उसके अंदर काले तिल, चंदन और सफेद फूल डालें. पहला कलश भगवान विष्णु के लिए और दूसरा कलश पितरों के लिए होता है.
दोनों कलश की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके बाद दोनों कलश को दान कर दें. ऐसा करने से भगवान विष्णु और पितर दोनों ही प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है. दोनों के आशीर्वाद से परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है.
हिन्दू धर्म में महत्व
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शान्त चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।
“सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मन्त्र मेत मुदीरयेत्॥„
अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।
पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा भी है।
अक्षय तृतीया पूजा मंत्र
तुलसी पत्र चढ़ाने का मंत्र: “शुक्लाम्बर धरम देवम शशिवर्णम चतुर्भुजम, प्रसन्नवदनम ध्यायेत सर्व विघ्नोपशांतये।।”
पुष्प अर्पित करने का मंत्र: “माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मया ह्रितानि पुष्पाणि पूजार्थम प्रतिगृह्यताम।।”
पंचामृत स्नान मंत्र: “पंचामृतम मयानीतम पयो दधि घृतम मधु शर्करा च समायुक्तम स्नानार्थम प्रति गृह्यताम।।”
विभिन्न प्रान्तों में अक्षय तृतीया
बुन्देलखण्ड में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुम्ब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं।
अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुण्ड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है।
मालवा में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरम्भ किसानों को समृद्धि देता है।
ओडिशा में, अक्षय तृतीया आगामी खरीफ मौसम के लिए चावल धान की बुवाई की शुरुआत के दौरान मनाई जाती है । दिन की शुरुआत अच्छी फसल के आशीर्वाद के लिए किसानों द्वारा धरती मां, बैल, अन्य पारंपरिक कृषि उपकरण और बीजों की पूजा के साथ होती है । राज्य की सबसे महत्वपूर्ण खरीफ फसल के लिए प्रतीकात्मक शुरुआत के रूप में किसान खेतों की जुताई के बाद धान के बीज बोते हैं। इस अनुष्ठान को अखिल मुठी अनुकुला (अखी-अक्षय तृतीया; मुठी- धान की मुट्ठी; अनुकुल- प्रारंभ या उद्घाटन) कहा जाता है और पूरे राज्य में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। हाल के वर्षों में, समारोह के कारण इस आयोजन को बहुत प्रचार मिला है. जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा उत्सव के लिए रथों का निर्माण भी इसी दिन पुरी में शुरू होता है।
इस दिन बीकानेर (राजस्थान) में स्थानीय पतंग उड़ाते हैं क्योंकि यह शहर की स्थापना का अगला दिन है। ऐसा माना जाता है कि राव बीकाजी द्वारा वैशाख सुहकला द्वितीया को नींव के अगले दिन वे चंदा (गोल गोलाकार पतंग) उड़ाते हैं। इसलिए इसे शहर के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
तेलुगु भाषी राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में, त्योहार समृद्धि से जुड़ा है, महिलाएं सोना और आभूषण खरीदती हैं । सिंहाचलम मंदिर में इस दिन विशेष उत्सव होते हैं। मंदिर के मुख्य देवता शेष वर्ष के लिए चंदन के लेप में ढके रहते हैं, और केवल इस दिन देवता पर चंदन की परतें लगाई जाती हैं ताकि अंतर्निहित मूर्ति को दिखाया जा सके। वास्तविक रूप या निज रूप दर्शनम का प्रदर्शन इस दिन होता है।
जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था।
अक्षय तृतीया के दिन भूल कर भी न करें
भविष्य पुराण में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर भूलकर भी उपनयन संस्कार नहीं करना चाहिए.
मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन तामसिक भोजन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि, इससे मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और घर की खुशियां खत्म हो सकती हैं। इस दिन मांस, मदिरा समेत लहसुन और प्याज का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
प्रचलित कथाएँ एवं मान्यताएं
अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती राज्य का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयन्ती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं।
मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।
इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
ऋषि दुर्वासा सहित कई संत मेहमानों की यात्रा के दौरान भगवान कृष्ण द्वारा द्रौपदी को अक्षय पात्र की प्रस्तुति है । वन में अपने वनवास के दौरान, पांडव राजकुमार भोजन की कमी के कारण भूखे थे, और उनकी पत्नी द्रौपदी को इससे पीड़ा हुई क्योंकि वह अपने मेहमानों के लिए प्रथागत आतिथ्य का विस्तार नहीं कर सकी। युधिष्ठिर , जो सबसे बड़े थे, ने भगवान सूर्य से प्रार्थना की जिसने उन्हें यह कटोरा दिया, जो तब तक भरा रहेगा जब तक द्रौपदी अपने सभी मेहमानों की सेवा नहीं कर लेती। ऋषि दुर्वासा की यात्रा के दौरान, भगवान कृष्ण ने इस कटोरे को द्रौपदी के लिए अजेय बना दिया ताकि अक्षय पात्र नामक जादुई कटोरा हमेशा उनकी पसंद के भोजन से भरा रहे, यहां तक कि यदि आवश्यक हो तो पूरे ब्रह्मांड को तृप्त करने के लिए।
एक किंवदंती के अनुसार, वेद व्यास ने अक्षय तृतीया पर गणेश को हिंदू महाकाव्य महाभारत का पाठ करना शुरू किया।
एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि गंगा नदी इसी दिन पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। बहुत महत्वपूर्ण रूप से, यमुनोत्री मंदिर और गंगोत्री मंदिर को अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर छोटा चार धाम तीर्थयात्रा के दौरान खोला जाता है, जो हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी से लदी सर्दियों के दौरान बंद हो जाता है। अक्षय तृतीया के अभिजीत मुहूर्त पर मंदिर खोले जाते हैं ।
माना जाता है कि इस दिन हुई एक और महत्वपूर्ण घटना सुदामा की द्वारका में अपने बचपन के दोस्त भगवान कृष्ण की यात्रा थी , जब उन्हें वरदान के रूप में असीमित धन प्राप्त हुआ था।
साथ ही, यह भी माना जाता है कि इस शुभ दिन पर कुबेर को धन के देवता के रूप में स्थान प्राप्त हुआ था।
2022 में अक्षय तृतीया के दिन भारत के विभिन्न स्थानों पर पूजा मुहूर्त
दिनांक 03 May
06:06 AM to 12:32 PM - Pune
05:39 AM to 12:18 PM - New Delhi
05:48 AM to 12:06 PM - Chennai
05:47 AM to 12:24 PM - Jaipur
05:49 AM to 12:13 PM - Hyderabad
05:40 AM to 12:19 PM - Gurgaon
05:38 AM to 12:20 PM - Chandigarh
05:18 AM to 11:34 AM - Kolkata
06:10 AM to 12:35 PM - Mumbai
05:58 AM to 12:17 PM - Bengaluru
06:06 AM to 12:37 PM - Ahmedabad
05:38 AM to 12:18 PM - Noida
सोने की खरीद मुहूर्त
अक्षय तृतीया सोने की खरीद मंगलवार 3 मई 2022 को
अक्षय तृतीया सोने की खरीद का समय - 05:58 पूर्वाह्न से 05:58 पूर्वाह्न, 04 मई
अवधि - 24 घंटे 00 मिनट
चौघड़िया मुहूर्त
प्रात:काल के लिए मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत)- सुबह 08 बजकर 59 मिनट से दोपहर 01 बजकर 58 मिनट तक
दोपहर के लिए मुहूर्त (शुभ)- दोपहर 03 बजकर 38 मिनट से शाम 05 बजकर 18 मिनट तक
शाम के लिए मुहूर्त (लाभ)- रात 08 बजकर 18 मिनट से रात 09 बजकर 38 मिनट तक
रात का मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर)- रात 10 बजकर 58 मिनट से देर रात 02 बजकर 58 मिनट तक
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