रविवार, 31 दिसंबर 2023

देव दिपावली, Dev deepavali

देव दिपावली, Dev Deepawali



देव दीपावली का त्योहार हर साल कार्तिक पूर्णिमा के साथ होता है। उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू होता है और पांचवें दिन, यानी कार्तिक पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा की रात) पर समाप्त होता है। इसे देव दीपावली के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस दिन देवताओं ने दीपावली मनाई और असुर भाइयों पर भगवान शिव की विजय का जश्न मनाया, जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिपुरासुर के रूप में जाना जाता है।

देव दीपावली का महत्व / पौराणिक कथा 

तारकासुर नाम का एक राक्षस रहता था जिसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष। तीनों ने गहन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद मांगा था। इसलिए, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, जैसे ही भगवान ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए, तीनों ने अमरता का वरदान मांगा। लेकिन चूंकि आशीर्वाद ब्रह्मांड के नियमों के खिलाफ था, इसलिए ब्रह्मा ने इसे देने से इनकार कर दिया।


इसके बजाय, उन्हें एक वरदान दिया जिसमें यह आश्वासन दिया कि जब तक कोई उन तीनों को एक तीर से नहीं मारेगा, तब तक उनका अंत नहीं होगा। ब्रह्मा द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करने के तुरंत बाद, तीनों ने तीनों लोकों में बड़े पैमाने पर विनाश किया और मानव सभ्यता के लिए भी खतरा साबित हुए


दूसरी कथा :

 

इस कथा के अनुसार त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया। देवतागण इससे उद्विग्न हो गए और त्रिशंकु को स्वर्ग से भगा दिया। शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। त्रिशंकु को स्वर्ग से निष्कासित किए जाने से क्षुब्ध विश्वामित्र ने अपने तपोबल से पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त एक नई समूची सृष्टि की ही रचना प्रारंभ कर दी।

उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊंट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम प्रारंभ कर दिया। इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया। तब सारी सृष्टि डांवाडोल हो उठी। हर तरफ कोहराम मच गया। 

 

हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की। महर्षि प्रसन्न हो गए और उन्होंने नई सृष्टि की रचना का अपना संकल्प वापस ले लिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह इस अवसर पर दीपावली मनाई गई। यही अवसर अब देव दीपावली के रूप में विख्यात है।


विष्णुजी के जागने की खुशी में मनाते हैं देव दिवाली : यह भी कहा कहा जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन हो जाते हैं और फिर वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। उस दिन उनका तुलसी विवाह होता है और इसके बाद भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर सभी देवी-देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा को लक्ष्मी और नारायण की महाआरती कर दीप प्रज्वलित कर खुशियां माई थी।



स्वर्ग प्राप्ति की खुशी में मनाई दिवाली : यह भी कहा जाता है कि बाली से वामनदेव द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति की खुशी में सभी देवताओं ने मिलकर कार्तिक मास की पूर्णिमा को खुशी मनाकर गंगा तट पर दीप जलाए थे तभी से देव दिवाली मनाई जाती है। इस पूर्णिमा को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्व प्रमाणित किया है। 


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