गुरुवार, 17 मार्च 2022

होलिका दहन एवं होली

 




होलिका दहन एवं होली


हिंदुओं की मुख्यता चार प्रमुख त्योहार होते हैं। रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली होली चार प्रमुख त्योहार होते हैं.


हिंदू पंचाग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. 

साल 2022 में होली का त्योहार 18 मार्च के दिन पड़ रही है. वहीं, होलिका दहन 17 मार्च  को किया जाएगा, जिसे लोग छोटी होली के नाम से भी जानते हैं.

हरियाणा में इस पर्व को धुलंडी भी कहा जाता है।


मान्यता है कि होलिका की आग में अपने अहंकार और बुराई को भी भस्म किया जाता है. 


हिन्दू कैलेंडर (पंचाग) के अनुसार होली 12वें माह फाल्गुन में मनाई जाती है, जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तीसरे माह मार्च में मनाई जाती है.इस बार होलिका दहन  17 मार्च को किया जाएगा और रंगों की होली एक दिन बाद 18 मार्च को खेली जाएगी. हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का पावन पर्व मनाया जाता है।भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. वहीं, ये भी मान्यता है कि होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि में ही होना चाहिए. 

होलिका दहन का मुहूर्त इस बार रात 9 बजकर 03 मिनट से रात 10 बजे 13 मिनट तक रहेगा. पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दिन में 1 बजकर 29 बजे शुरू होगी और पूर्णिमा तिथि का समापन 18 मार्च दिन में 12 बजकर 46 मिनट पर होगा.


ध्यान रखें कि ये नई दिल्ली, भारत के लिए समय हैं,


रंगों का त्योहार होली भारत में पूरा धूमधाम से मनाई जाते हैं होली बसंत ऋतु में मनाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का प्रमुख त्यौहार है. होली रंगों का तथा हंसी खुशी का त्यौहार है यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध पर्व है जो आज विश्व भर में मनाने जाने लगा है. रंगों का त्योहार कहे जाने वाला यह पर्व प्रमुख रूप से 2 दिन मनाया जाता हैं. यह प्रमुख रूप से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है. अब यह त्यौहार कई अन्य देशों जिसमें हिंदू लोग रहते हैं वहां भी मनाया जाने लगा है.


होली का त्यौहार कैसे मनाया जाए 


पहले दिन रात्रि के समय होलिका दहन किया जाता है. दूसरे दिन जिसका  धूलंडी व दूर खेल या धुलीवंदन बंधन आदि नाम है, लोग एक दूसरे पर रंग अबीर गुलाब इत्यादि डालते हैं. ढोल बजाकर, डीजे बजा कर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जाकर एक दूसरे को गले लगते हैं. एक दूसरे को गुलाल एवं अबीर  लगाते हैं. होली के दिन लोग पुराने गिले शिकवे को भूल कर गले मिलते हैं और फिर एक एक दूसरे को मित्र बनाते हैं. गाने बजाने का कार्यक्रम का दौर दोपहर तक चलता है इसके बाद स्नान करके, विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को एक दूसरे घर मिलने जाते हैं गले मिलते हैं और मिठाई खिलाते हैं।




फागुन माह में मनाई जाने के कारण इसे फागुनी भी कहते हैं होली के त्यौहार बसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाती है उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है इस दिन से फागुनी और धमर का गाना प्रारंभ हो जाता है. बाग बगीचों में फूलों की आकर्षण बढ़ने लगता है और खेतों में सरसों खिल उठती है. बच्चे बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच भूलकर ढोलक झांक मंजिल की धुन के साथ नृत्य संगीत और रंगों में डूब जाते हैं. चारों तरफ रंगों की फुहार और गुलाल की नजर ही आते हैं. गुजरात प्रमुख पकवान है जो कि मां और खोया और मैदा से बनती है. नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं जहां उनका स्वागत नमकीन और ठंडी शरबत से किया जाता है.


सनातन धर्म में होली का पावन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मथुरा, वाराणसी, समेत पूरा देश होली के रंग में रंगीन हो जाता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली  का पावन पर्व प्रहलाद की भक्ति और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उसकी रक्षा के स्वरूप में मनाया जाता है। 

मान्यता है कि इस दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना का वध कर पृथ्वी लोक को उसके आतंक से बचाया था। 

तंत्र की मान्यताओं के अनुसार यह एक आध्यात्मिक पर्व है।

रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।

यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव के श्राप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथ्वी के लोगों ने इस दिन उसे भगा दिया था, जिसकी याद में होली मनाते हैं।


होली का इतिहास


होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में १६वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। 

ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से ३०० वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है.


विभिन्न क्षेत्रों में होली का पर्व


कुछ स्थानों जैसे की मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक ज़ोर-शोर से खेली जाती है। 

यह पर्व सबसे ज़्यादा धूम-धाम से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। ख़ास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली बहुत मशहूर है। मथुरा और वृन्दावन में भी १५ दिनों तक होली की धूम रहती है। 

हरियाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है। 

दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। 

छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में भगोरिया मनाया जाता है।


रंग-पर्व होली हमें जाति, वर्ग और लिंग आदि विभेदों से ऊपर उठकर प्रेम व शान्ति के रंगों को फैलाने का संदेश देता है। होली को ‘ रंगों का त्योहार’ या ‘प्यार का त्यौहार’ भी कहा जाता है। यह आनंदित कर देने वाला हिंदुओं का धार्मिक त्योहार है जो अच्छाई की (भगवान विष्णु ) बुराई (दानवी होलिका) पर जीत के रूप में पूरे भारत में मनाया जाती है।


भारत के कुछ भागों में इस त्यौहार को 2 दिनों से ज्यादा समय तक मनाया जाता है।


मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के नाम पर प्रसिद्ध है। (भगवान विष्णु का अवतार ) जोकि होली में सम्मानित सर्व प्रथम के भगवान हैं। मथुरा और उसके निकट वृंदावन में 1 सप्ताह से ज्यादा समय तक यह त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें विभिन्न रंगों से खेलना और धार्मिक रस्में शामिल होती हैं

से एक दिन पूर्व, शाम को बड़ी-बड़ी लकड़ियों में आग लगाई जाती है और दानवी होलिका का पुतला उस आग में जला दिया जाता है जो अच्छाई की बुराई पर विजय को दर्शाता है।


होलिका की चिता बनाने का काम जिसमें होलिका का दहन किया जाता है हफ्तों पहले से शुरू हो जाता है।

 

सुबह के समय होलिका दहन की राख को इकट्ठा किया जाता है क्योंकि इसे शुभ समझा जाता है।


रंगों का खेल पूरे दिन भर जारी रहता है । रंगों और पानी को फेंकना प्यार की निशानी माना जाता है.


क्या होली का त्यौहार सार्वजनिक त्योहार है?


भारत में होली एक महत्वपूर्ण त्यौहार है और ज्यादातर राज्य अपने राज्य वासियों को सार्वजनिक अवकाश रंग फेंकने वाले दिन18 मार्च  2022 को देंगे।

केवल 6 राज्यों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश नहीं होता है। कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर , पुडुचेरी और तमिलनाडु। इन राज्यों में होली के लिए सार्वजनिक अवकाश नहीं होता है, क्योंकि त्यौहार या तो अलग से मनाया जाता है या इन जगहों पर बिल्कुल भी नहीं मनाया जाता है।


यहां लिस्ट दी गई है जहां त्यौहार को किसी अन्य दिन मनाया जाता है, 


उनके स्थान और संक्षिप्त विवरण के साथ



त्योहार                स्थान              2022 तारीख

लठमार होली    बरसाना गांव, उत्तर प्रदेश                  12 मार्च से 13 मार्च


फूलों वाली होली    वृंदावन, उत्तर प्रदेश    होली से 4 दिन पहले शुरु ( अनुमानित 14 से 17 मार्च तक )


बसंत उत्सव    शांतिनिकेतन, बंगाल    16 से 18 मार्च


होला मोहल्ला    आनंदपुर साहिब, पंजाब    18 से 20 मार्च


होलिका दहन की विधि  


होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को बसंत पंचमी के दिन जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डाले जातें है. ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और सारी बुरी बलाएं इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं.



होलिका दहन पूजा-विधि 


होलिका दहन पूजा सामग्री 


- एक कटोरी पानी

- गाय के गोबर से बनी माला

- रोली

-अक्षत 

-अगरबत्ती और धूप

-फूल

-कच्चा सूती धागा

- हल्दी  के टुकड़े

- मूंग की अखंड दाल

- बताशा

-गुलाल पाउडर

-नारियल

- नया अनाज जैसे गेहूं


होलिका दहन पूजा विधि 


- पूजा की सारी सामग्री एक प्लेट में रख लें. पूजा थाली के साथ पानी का एक छोटा बर्तन रखें. पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. उसके बाद पूजा थाली पर और अपने आप पानी छिड़कें और 'ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु' मंत्र का तीन बार जाप करें.

अब दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल और एक सिक्का लेकर संकल्प लें.


- फिर दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर गणेश जी का स्मरण करें.


- भगवान गणेश की पूजा करने के बाद, देवी अंबिका को याद करें और 'ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि' मंत्र का जाप करें. मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर देवी अंबिका को सुगंध सहित अर्पित करें.


- अब भगवान नरसिंह का स्मरण करें. मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भगवान नरसिंह को चढ़ाएं.


- अब भक्त प्रह्लाद का स्मरण करें. फूल पर रोली और चावल लगाकर भक्त प्रह्लाद को चढ़ाएं.


-अब होलिका के आगे खड़े हो जाए और हाछ जोड़कर प्रार्थना करें. इसके बाद होलिका में चावल, धूप, फूल, मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और सूखे गाय के गोबर से बनी माला जिसे गुलारी और बड़कुला भी कहा जाता है अर्पित करें. होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पांच या सात फेरे बांधे जाते हैं. इसके बाद होलिका के ढेर के सामने पानी के बर्तन को खाली कर दें.


- इसके बाद होलिका दहन किया जाता है. लोग होलिका के चक्कर लगाते हैं. जिसके बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है. लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और अलाव में नई फसल चढ़ाते हैं और भूनते हैं. भुने हुए अनाज को होलिका प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.


होलाष्टक


हिंदू पंचांग के अनुसार, होली के ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक आरंभ होते हैं. इन आठ दिनों के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है. बता दें कि इस बार फाल्गुन महीने में होलाष्टक 10 मार्च से शुरू होकर 17 मार्च तक चलेगा.


होली का वंदन करें,

जनजीवन के संग।

क़ुदरत ने बिखरा दिए,

क़दम-क़दम पे रंग।।


बस उस दिन हो जाएगा,

अपना हर दिन फाग।

श्यामल भू के शीश पर,

हो केसरिया पाग।।



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मंगलवार, 1 मार्च 2022

महाशिवरात्रि

        


महाशिवरात्रि


हिंदू पंचाग के अनुसार साल 2022 में 

महाशिवरात्रि तिथि 1 मार्च, मंगलवार सुबह 3:16 मिनट से शुरू होकर और चतुर्दशी तिथि का समापन 2 मार्च, बुधवार सुबह 10 बजे होगा. 


-महाशिवरात्रि के पहले प्रहर की पूजा- 1 मार्च, 2022 शाम 6:21 मिनट से रात्रि 9:27 मिनट तक है. 


- इस दिन दूसरे प्रहर की पूजा- 1 मार्च रात्रि 9:27 मिनट से 12: 33 मिनट तक होगी. 


- तीसरे प्रहर की पूजा- 1 मार्च रात्रि 12:33 मिनट से सुबह 3 :39 मिनट तक है. 


- चौथे प्रहर की पूजा- 2 मार्च सुबह 3:39 मिनट से 6:45 मिनट तक है. 


- पारण समय- 2 मार्च, बुधवार 6:45 मिनट के बाद.


ध्यान रखें कि ये नई दिल्ली, भारत के लिए समय हैं.


हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा-अराधना का विशेष महत्व है. मान्यता है. भगवान शिव बहुत ही दयालु और कृपालु भगवान हैं. वे मात्र एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं. हर माह आने वाली मासिक शविरात्रि के साथ-साथ साल में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का भी खास महत्व है. महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से मनचाहा वर की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है.

साथ ही, ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिवजी का रूद्राभिषेक करने से जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है. इस दिन भगवान शिव के साथ माता-पार्वती की पूजा भी की जाती है. आइए जानते हैं महाशिवरात्रि  पूजन विधि के बारे में.


महा शिवरात्रि महोत्सव हिंदू महीने फाल्गुन (फरवरी-मार्च) में अमावस्या की 13 वीं रात को भक्ति और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।


महा शिवरात्रि भारत के साथ-साथ नेपाल में भी बड़े पैमाने पर मनाई जाती है।


शिवरात्रि वह दिन है जो हर महीने कृष्ण पक्ष की 13 वीं रात को आता है लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन महीने पर आती है, लेकिन गुजरात में महाशिवरात्री महा महीने में मनाई जाती है।


कश्मीर शैव धर्म में, महा शिवरात्रि को हरारात्रि या हेराथ या हेराथ के रूप में मनाया जाता है।  इसे कश्मीर के तांत्रिक ग्रंथों में "भैरवोत्सव" या "भैरव उत्सव" के रूप में भी जाना जाता है।

साथ ही कश्मीर शैव धर्म में, शिवरात्रि फागुना महीने की 13 तारीख (फरवरी / मार्च) को मनाई जाती है, न कि देश के बाकी हिस्सों की तरह 14 तारीख को।

हारा शिव का दूसरा नाम है।


शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महान त्योहार है। दक्षिण भारतीय कैलेंडर (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार, माघ महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान चतुर्दशी तिथि को महा शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है।  हालाँकि उत्तर भारतीय कैलेंडर (पूर्णिमान्त पंचांग) के अनुसार फाल्गुन के महीने में मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है।  दोनों कलैण्डरों में यह चंद्र मास की नामकरण परंपरा है जो भिन्न-भिन्न है।  हालाँकि, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय दोनों, एक ही दिन महा शिवरात्रि मनाते हैं।


पारंपरिक मलयालम कैलेंडर के अनुसार, यह कुंभ महीने में मनाया जाता है।  


लोग इस दिन महामृत्युंजय और शिव मंत्र का पाठ करते हैं. साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।


1. महामृत्युंजय मंत्र –  ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्


2.  शिव मंत्र – ॐ नमः शिवाय


अगर आप सभी अनुष्ठानों के साथ पूजा करते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि भगवान आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इसलिए हिंदी में महाशिवरात्रि को 'भगवान शिव की महान रात' भी कहा जाता है।


 महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं -


   1.   चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।


   2.   चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।


   3.   उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।







महाशिवरात्री उत्सव मनाने के लिए सर्वोत्तम स्थान


· तिरुवन्नामलाई

· वाराणसी

· उज्जैन

· मंडी

· हरिद्वार

गुवाहाटी



रूद्राभिषेक


भक्त भगवान शिव के सम्मान में शिवरात्रि के दिन और रात भर उपवास रखते हैं और शिव मंदिरों के दर्शन करते हैं।  शिव लिंगम का दूध, पानी, शहद आदि से स्नान (जलाभिषेक) भी परंपरा के एक भाग के रूप में भक्तों द्वारा किया जाता है। शिवरात्रि व्रत अनुष्ठान महा शिवरात्रि से एक दिन पहले शुरू होते हैं। महाशिवरात्रि से एक दिन पहले, त्रयोदशी पर, भक्तों को केवल एक बार भोजन करना चाहिए।  शिवरात्रि के दिन, सुबह की रस्में पूरी करने के बाद, भगवान शिव की पूरी भक्ति के साथ पूरे दिन के उपवास का संकल्प लें।  शिवरात्रि उपवास कठिन है और लोग आत्मनिर्णय की प्रतिज्ञा करते हैं और उन्हें सफलतापूर्वक समाप्त करने के लिए शुरू करने से पहले भगवान का आशीर्वाद लेते हैं।  भक्त घर पर महा शिवरात्रि पूजा कर सकते हैं या किसी मंदिर में जा सकते हैं।  आमतौर पर लोग दिन में शिव मंदिर जाते हैं और रात में घर में शिव पूजा करते हैं।


पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें।  आप पूजा अनुष्ठान करने के लिए गेहूं के आटे या मिट्टी का उपयोग करके 'अस्थायी शिव लिंग' भी बना सकते हैं।  शिव लिंग को आकार देने के बाद, लिंग पर दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी चढ़ाकर 'अभिषेक' करें।  शिव लिंग पर बिल्वपत्र की माला चढ़ाएं और फिर चंदन या कुमकुम लगाएं और भगवान शिव को धूप-दीप दिखाएं।  भक्त शिव लिंग को मदार और विभूति के फूल भी चढ़ा सकते हैं। महादेव को दूध, दही, शहद, इत्र, देशी घी का पंचामृत बनाकर स्नान कराएं। फूल, माला और बेलपत्र के साथ मिष्ठान से भोग लगाएं.


शिवतांडव में लिखा है

यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे


तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां,


लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥


शिव लिंग पूजा के बाद, ध्यान करने और भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए भगवान शिव मंत्रों का पाठ करने का समय है।


 महा शिवरात्रि उपवास नियम


 शिवरात्रि का उपवास भोर से शुरू होता है और दिन और रात तक चलता है।  उपवास केवल अगले दिन पारण समय के दौरान समाप्त होना चाहिए जैसा कि पंचांग (कैलेंडर) द्वारा सुझाया गया है।


 शिवरात्रि में रात्रि जागरण से ही व्रत करने से दुगना लाभ होता है। जागरण के साथ घर या मंदिर में शिव पूजा अवश्य करनी चाहिए। उपवास का हल्का रूप दूध, पानी और फलों का सेवन करने की अनुमति देता है।


 उपवास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू बुरे विचारों, बुरी संगति और बुरे शब्दों से दूर रहना है।  भक्त को सद्गुणों का अभ्यास करना चाहिए और सभी बुराइयों से दूर रहना चाहिए।


 मंदिर परिसर में रहना, भगवान शिव के नाम का जप करना और भगवान की महिमा सुनना भक्तों के लिए सबसे अधिक लाभकारी गतिविधियाँ हैं।


उपवास और सतर्कता का सार इंद्रियों पर महारत हासिल करना और इच्छाओं को नियंत्रित करना सीखना है।  इस प्रकार प्राप्त मन की शुद्ध अवस्था को भगवान की ओर मोड़ दिया जाता है जिससे व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध किया जाता है।


 महाशिवरात्रि व्रत के लिए भोजन


लोग अपने प्रिय देवता के प्रति अपनी भक्ति को चिह्नित करने के लिए महाशिवरात्रि व्रत का पालन करते हैं। ऐसे कई लोग हैं जो 'निर्जला' व्रत चुनते हैं, यानी जहां लोग दिन में पानी और भोजन दोनों ग्रहण नहीं करते हैं।  हालांकि, बहुत से लोग उपवास के इस कठिन रूप को नहीं कर सकते हैं, इसलिए अधिकांश भक्त उपवास रखते हैं जहां वे फल, दूध और कुछ सब्जियां और गैर-अनाज वस्तुएं लेते हैं।


 यदि आप इस वर्ष शिवरात्रि व्रत रखने की योजना बना रहे हैं तो यहां कुछ खाद्य पदार्थ हैं जो आप उपवास के दौरान भी खा सकते हैं।


आलू

आलू कढ़ी, आलू टिक्की, आलू खिचड़ी … और बहुत कुछ. आलू आधारित व्यंजनों पर कोई रोक नहीं है, बशर्ते इसमें प्याज और लहसुन न हो।  आपके व्रत के दौरान सेंधा नमक  खाने की अनुमति है।  आप आलू को एक सादे सुखदायक करी के रूप में ले सकते हैं जिसे आलू कढ़ी के नाम से भी जाना जाता है।  आप आलू टिक्की, आलू पकौड़ा, आलू खिचड़ी, शकरकंद चाट और आलू का हलवा भी खा सकते हैं!


 गैर अनाज व्यंजन:

 व्रत के दौरान साबूदाना (टैपिओका), रागी से बने गैर अनाज व्यंजन की अनुमति है।  साबूदाना (टैपिओका) खिचड़ी, साबूदाना पकोड़ा, साबूदाना वड़ा, कुट्टू सिंघारे की पुरी इस विशेष दिन पर दुनिया भर के भक्तों द्वारा खाए जाने वाले कुछ लोकप्रिय व्यंजन हैं।


दूध आधारित पेय पदार्थ और मिठाई महाशिवरात्रि व्रत में दूध आधारित व्यंजनों की अनुमति है।

कहा जाता है कि भगवान शिव को दूध बहुत प्रिय है।  हर साल शिव भक्त शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं।  व्रत के दौरान दूध का भी खूब सेवन किया जाता है।  व्रत के दौरान दूध और दूध आधारित पेय पदार्थ दोनों ही लोकप्रिय होते हैं।  आप व्रत के दौरान ठंडाई, बादाम दूध, मखाने की खीर, साबूदाने की खीर खा सकते हैं.


 पकौड़े और वड़ा


नाश्ते के लिए, आलू के पकोड़े, कच्चे केले के वड़े, सिंघाड़े के आटे के पकौड़ा भी ट्राई करें।  सुनिश्चित करें कि यह उन मसालों में नहीं बनाया गया है जिन्हें उपवास के दौरान सेवन करने की अनुमति नहीं है।  जहां तक ​​मसालों की बात है तो जानकारों का कहना है कि जीरा या जीरा पाउडर, काली मिर्च पाउडर, हरी इलायची, दालचीनी, अजवाइन, काली मिर्च का इस्तेमाल कर सकते हैं। स्वाद के लिए आप इसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिला सकते हैं। साबूदाना वड़ा भी शिवरात्रि के दौरान बनाया जाता है।


 महाशिवरात्रि की कथा


महा शिवरात्रि और इसकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कहानियां हैं। अलग-अलग पौराणिक कथाओं के अनुसार लोग महा शिवरात्रि मनाने के अलग-अलग कारण बताते हैं। विशेष रात्रि में भक्त उपवास करते हैं और ध्यान लगाकर भगवान शिव की स्तुति करते हैं. शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन  भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। इसलिए, विवाहित और एकल दोनों इस दिन सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं।


1  ऐसी ही एक किंवदंती भगवान शिव और उनकी दिव्य पत्नी, देवी पार्वती से संबंधित है। सृष्टि पूर्ण होने के बाद, पार्वती ने एक बार भगवान शिव से पूछा कि उन्हें कौन सा दिन सबसे ज्यादा पसंद है। भगवान शिव ने उत्तर दिया कि फाल्गुन (फरवरी-मार्च) के महीने में अमावस्या की 13 वीं रात उनका सबसे पसंदीदा दिन है। यह बात पार्वती ने अपने उन मित्रों को बताई, जिनसे यह शब्द सारी सृष्टि में फैल गया। इसलिए, माघ के 13 वें दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है।


2  एक अन्य किंवदंती के अनुसार, महा शिवरात्रि उस दिन की याद दिलाती है जिस दिन भगवान शिव ने "तांडव" किया था।  भारतीय दर्शन में, सर्वशक्तिमान ईश्वर को तीन भूमिकाओं में देखा जाता है, जिनमें से प्रत्येक को एक अलग पहचान दी गई है।  भगवान शिव को मुख्य रूप से विनाशक देवता के रूप में माना जाता है, भगवान ब्रह्मा (ब्रह्मांड के निर्माता) और भगवान विष्णु (ब्रह्मांड के संरक्षक)  - पवित्र हिंदू त्रिमूर्ति के अन्य देवता हैं। "तांडव" को आदिम सृजन, संरक्षण और विनाश के नृत्य के रूप में वर्णित किया गया है। कहा जाता है कि महा शिवरात्रि का दिन बहुत पहले इसी तरह का एक अवसर था जब भगवान शिव ने विनाशकारी नृत्य रुद्र तांडव में शामिल किया था जिसने ब्रह्मांड को नष्ट कर दिया था।


3  एक और आकर्षक कथा भगवान शिव को "प्रलय" से जोड़ती है।  प्रलय, हिंदू पौराणिक कथाओं में, उस दिन का अर्थ है जब 'सृष्टि' (सृष्टि) और 'ब्रह्मांड' (ब्रह्मांड) प्रकृति के प्रकोप से नष्ट हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एक समय पूरी दुनिया विनाश का सामना कर रही थी और देवी पार्वती ने अपने पति भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह प्रलय की लंबी अवधि के दौरान अंतरिक्ष में रह रहे जीवों (जीवित आत्माओं) को बचाएं।  वह यह भी चाहती थी कि प्रभु उन्हें फिर से सक्रिय होने का आशीर्वाद दें। उनकी प्रार्थना मंजूर हुई। पार्वती ने अपनी इच्छा-पूर्ति की रात को महा-शिवरात्रि, या शिव की महान रात का नाम दिया, और नश्वर लोगों को इस रात को भगवान शिव की पूजा करने के समय के रूप में मनाने का आदेश दिया।


राजा चित्रभानु की कथा को महा शिवरात्रि उत्सव के दौरान उपवास परंपरा की उत्पत्ति का एक मुख्य कारण माना जाता है। कहानी हिंदू महाकाव्य महाभारत के शांति पर्व (अध्याय) में पाई जा सकती है, जहां बूढ़े भीष्म, तीर के बिस्तर पर आराम करते हुए और धर्म (धार्मिकता) पर प्रवचन करते हुए, राजा चित्रभानु द्वारा महा शिवरात्रि के पालन को संदर्भित करते हैं।  कहानी बताती है कि कैसे इक्ष्वाकु वंश के शक्तिशाली प्राचीन शासक चित्रभानु, पूरे जम्बू-द्वीप (भारत का प्राचीन नाम) के राजा, एक बार अपनी पत्नी के साथ उपवास कर रहे थे, जब प्रसिद्ध ऋषि अष्टावक्र उनके दरबार में आए थे।  वो राजा को उपवास करते देख अष्टावक्र ने उससे कारण पूछा।  राजा चित्रभानु ने समझाया कि उनके पास अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद करने का उपहार था, और अपने पहले के जीवन में वे वाराणसी में सुस्वर नाम के एक शिकारी थे।  उनका एकमात्र आजीविका पक्षियों और जानवरों को मारना और बेचना था।  एक दिन जानवरों की तलाश में जंगलों में घूमते हुए वह रात के अंधेरे से आगे निकल गया। घर लौटने में असमर्थ, वह आश्रय के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। यह एक बेल (एगल मार्मेलोस) का पेड़ था। उस दिन उसने एक हिरण देखा था लेकिन हिरण के दुखी परिवार को देखकर उसे जीवित रहने दिया।  जैसे-जैसे भूख-प्यास ने उसे तड़पाया, वह रात भर जागता रहा।  अपनी गरीब पत्नी और बच्चों के बारे में सोचते हुए उसकी पानी के बर्तन से पानी लीक हो गया। उस रात को बिताने के लिए उसने बेल (एगल मार्मेलोस) के पत्तों को तोड़कर जमीन पर गिराता रहा । पेड़ से बेल (एगल मार्मेलोस) के पत्तों के साथ पानी, पेड़ के निचे रखे शिव-लिंग (भगवान शिव की पूजा का प्रतीक) पर गिरा।

 अगले दिन वह घर लौटा और अपने और अपने परिवार के लिए कुछ खाना खरीदा।  जब वह और उसका परिवार खाना खाने बैठे थे, तभी एक अजनबी उनके दरवाजे पर आकर खाना मांग रहा था।  हिंदू आतिथ्य के प्राचीन रिवाज के अनुसार, सुस्वरा ने पहले अतिथि को भोजन परोसा और फिर अपना भोजन किया।

वह कई वर्षों तक बिना यह जाने जीवित रहा कि उसने संयोगवश शिव-रात्रि के दिन उपवास किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया, तो भगवान शिव के दो दूत उसकी आत्मा को स्वर्ग ले जाने के लिए प्रकट हुए।  तब उन्हें पता चला कि उस शुभ दिन और रात में उपवास रखने के लिए उन्हें पुरस्कृत किया जा रहा था।  दूतों ने उसे बताया कि बेल (एगल मार्मेलोस) के पत्ते, जो उसने लिंगम पर संयोग से गिराए थे, उसकी अनुष्ठान पूजा की नकल में थे।  साथ ही, उसकी टपकी हुई कैंटीन के पानी ने लिंगम (एक अनुष्ठान क्रिया भी) को धो दिया था, और उसने पूरे दिन और पूरी रात उपवास किया था।  इस प्रकार, उन्होंने अनजाने में शिवरात्रि की रात में भगवान की पूजा की थी और उनके पालन से महान पुण्य अर्जित किया था।  एक पुरस्कार के रूप में, उसकी आत्मा को विभिन्न स्वर्गों में स्थान दिया गया जब तक कि वह उच्चतम तक नहीं पहुंच गया, और बाद में एक राजा के रूप में उच्च पद पर उसका पुनर्जन्म हुआ और विशेष रूप से उसके पूर्व जीवन का ज्ञान दिया गया।  इस प्रकार कहा जाता है कि महा शिवरात्रि का व्रत सबसे पहले चित्रा भानु ने किया था और यह प्रथा अभी भी हिंदू है।  महा शिवरात्रि पर, भक्त उपवास रखते हैं, शिव लिंग पर फल, फूल और बेल बेल (एगल मार्मेलोस) के पत्ते चढ़ाते हैं और भगवान शिव के सम्मान में पूरी रात जागते रहते हैं।


5  महान महाकाव्य रामायण में एक और किंवदंती राजा भगीरथ के बारे में बताती है जिन्होंने एक बार अपने पूर्वजों की आत्माओं की मुक्ति के लिए ध्यान करने के लिए अपना राज्य छोड़ दिया था।  उन्होंने एक हजार वर्षों तक तपस्या की, गंगा मां से स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का अनुरोध किया और अपने पूर्वजों की राख को एक श्राप से मुक्त करने और उन्हें स्वर्ग जाने की अनुमति देने का अनुरोध किया।  उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए, गंगा भगवान शिव के सिर पर उतरी, जिन्होंने नदी के पानी को अपने घने उलझे हुए तालों के माध्यम से पृथ्वी तक पहुंचने दिया।  कहा जाता है कि इस किंवदंती को मनाने के लिए लिंगम का स्नान किया जाता है।


6  शिव पुराण के अनुसार, एक बार दो देवताओं, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच लड़ाई हुई, कि सर्वोच्च भगवान कौन है?

वे दोनों बहस करने लगे और जल्द ही यह तर्क एक भयंकर युद्ध में बदल गया।  इस भीषण युद्ध से भयभीत देवताओं ने भगवान शिव से हस्तक्षेप करने की प्रार्थना की।

शिव ने स्वयं को अग्नि के एक विशाल स्तंभ - ज्योतिर्लिंग (अग्नि स्तंभ) के रूप में प्रकट किया और विष्णु और ब्रह्मा के सामने प्रकट हुए। वे इस अद्भुत घटना से चकित हैं।  विष्णु और ब्रह्मा ने आग के इस विशाल स्तंभ का अंत खोजने का फैसला किया।

विष्णु नीचे गए और ब्रह्मा ऊपर की तलाश में ऊपर गए।  भगवान विष्णु इसके अंत की खोज करने में विफल रहे और वापस लौट आए।

लेकिन ब्रह्मा ने ज्योतिर्लिंग के शीर्ष की ओर अपनी यात्रा में केतकी के कुछ फूलों को गिरते देखा।  उन्होंने फूलों से विष्णु के सामने अनुरोध किया कि "ब्रह्मा ने शीर्ष पाया है और मैं उसका साक्षी हूं"।

ब्रह्मा की इस चालबाजी से भगवान शिव नाराज हो गए और वे उनके सामने अपने दृश्य रूप में प्रकट हुए। उन्होंने उनसे कहा कि आग के इस स्तंभ का कोई आदि और अंत नहीं है।

सत्य का पालन करने के लिए विष्णु से प्रसन्न होकर उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया और ब्रह्मा की चालबाजी से क्रोधित होकर शिव ने उनसे कहा कि लोग उनकी कभी पूजा नहीं करेंगे।

एक दूसरे से लड़ने की अपनी गलती को महसूस करते हुए, विष्णु और ब्रह्मा दोनों भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूजा से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने घोषणा की, "अब से, यह दिन "शिवरात्रि" के रूप में प्रसिद्ध होगा, जो मुझे प्रसन्न करने वाले पवित्रतम दिनों में से एक है।


7  एक प्रचलित मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव ब्रह्मांड की रक्षा के लिए विष पीते हैं।  समुद्र मंथन के दौरान इसके परिणामस्वरूप कई चीजें निकलती हैं।विष भी उनमें से एक था जिसे भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए ग्रहण किया.

ऐसा माना जाता है कि शिव को जगाए रखने और जहर के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए देवताओं ने पूरी रात नृत्य किया।

अंततः, यह भगवान शिव को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है और जहर उनके गले में फंस जाता है (उनकी पत्नी देवी पार्वती के कारण)।  इस प्रकार वह नीलकंठ (नीली गर्दन वाला) के रूप में जाना जाने लगा, क्योंकि विष के कारण उसकी गर्दन का रंग नीला हो जाता है।

तब से, इसे "महा शिवरात्रि" के रूप में मनाया जाता है।


 8  ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भोलेनाथ दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। एक बार, भैरवी (शक्ति या पार्वती या परमशक्ति महामाया का दूसरा नाम) ने योगिनियों (अपनी खुद की रचना) की रक्षा के लिए और भगवान शिव के भयानक और भयानक रूप, स्वछंद भैरव को दूर करने के लिए वटुक भैरव और रमण भैरव की रचना की।

गायब होने के बाद, शिव फिर से उनके सामने प्रकट हुए लेकिन इस बार एक ज्वालालिंग (आग का विशाल स्तंभ) के रूप में। रमण और वटुक दोनों ज्वालालिंग के पास पहुंचे और आग के इस विशाल स्तंभ की शुरुआत और अंत का पता लगाने की कोशिश की। वटुक शीर्ष की खोज में ऊपर गया और रमण जड़ की तलाश में नीचे तक गया।  वे दोनों न तो आदि का पता लगाने में विफल रहे और न ही इसके अंत की।  वे व्याकुल और भयभीत होकर ज्वालालिंग का गुणगान करने लगे।

उस समय, सभी योगिनियां परमशक्ति में विलीन हो गईं और वह विस्मयकारी ज्वालालिंग में विलीन हो गईं।  इस प्रकार तब से इसे शिवरात्रि या महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।


9  गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।

जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।


10  भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महा शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। 

शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।


 व्रत (उपवास) विधि -

 

 शिवरात्रि के दिन भक्तों को शिव पूजा या मंदिर जाने से पहले शाम को दूसरा स्नान करना चाहिए।  शिव पूजा रात में करनी चाहिए और भक्तों को अगले दिन स्नान करने के बाद व्रत तोड़ना चाहिए।  व्रत का अधिकतम लाभ पाने के लिए भक्तों को सूर्योदय के बीच और चतुर्दशी तिथि के अंत से पहले उपवास तोड़ना चाहिए।  एक विरोधाभासी मत के अनुसार भक्तों को व्रत तभी तोड़ना चाहिए जब चतुर्दशी तिथि समाप्त हो जाए।  लेकिन ऐसा माना जाता है कि चतुर्दशी तिथि के भीतर शिव पूजा और पारण यानि व्रत तोड़ना दोनों करना चाहिए।


 महा शिवरात्रि पूजा रात में एक या चार बार की जा सकती है।  चार बार शिव पूजा करने के लिए चार प्रहर (प्रहर) प्राप्त करने के लिए पूरी रात की अवधि को चार में विभाजित किया जा सकता है।


 शिवरात्रि और भगवान शिव से संबंधित अन्य अवसरों के दौरान पौराणिक मंत्रों के जाप के साथ सभी सोलह अनुष्ठानों के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।  सभी 16 अनुष्ठानों के साथ देवी-देवताओं की पूजा करना षोडशोपचार पूजा (षोडशोपचार पूजा) के रूप में जाना जाता है।


ध्यानम (ध्यानम्)


 पूजा की शुरुआत भगवान शिव के ध्यान से करनी चाहिए।  ध्यान शिवलिंग के सामने करना चाहिए।  भगवान शिव का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए।


 ध्यानिनित्यम महेशम राजतगिरिनिमं चारु चंद्रवत्सम।

 रत्नकलपोज्जवलंगा परशुम्रिगवरभीतिहस्तम प्रसन्नम॥

 पद्मसिनम सामंत स्तुतममारगनैरव्याघ्र कृतिम वासनाम।

 विश्ववद्यम विश्वविजम निखिला-भयाहरम पंचवक्त्रम त्रिनेत्रम

 वंधुका सन्निभम देवास त्रिनेत्रम चंद्रशेखरम।

 त्रिशूल धरिनाम देवाṃ चारुहसम सुनिरमलम

 कपाल धरिनां देवाṃ वरदभय-हस्तकम।

 उमाया साहित्यं शंभूम ध्यायेत सोमेश्वरम सदा॥


 आवाहनं (आवाहनं)


 आवाहन समरपयामी - भगवान शिव के ध्यान के बाद, मूर्ति के सामने निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए, आवाहन मुद्रा दिखाकर (आवाहन मुद्रा दोनों हथेलियों को जोड़कर और दोनों अंगूठों को अंदर की ओर मोड़कर बनती है)।


 अगच्छा भगवन्देव स्थान छात्र स्तिरोभव।

 यवतपूजं करिश्मामि तवतत्वं सन्निधौभवः


 पद्यम (पाद्यम्)


 पद्यम समरपयामी - भगवान शिव का आह्वान करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए उन्हें पैर धोने के लिए जल अर्पित करें।


 महादेव महेशन महादेव परातपरा।

 पद्यम गृहण मच्छतम पार्वती साहित्येश्वरः


 अर्घ्यम् (अर्घ्यम्)


 अर्घ्यं समरपयामी - पद्य चढ़ाने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए श्री शिव को सिर अभिषेकम के लिए जल अर्पित करें।


 त्र्यंबकेश सदाचार जगदादी-विधायकः।

 अर्घ्यं गृहण देवेश साम्ब सर्वार्थदायकाः


 अचमनियम (आचमनीयम्)


 अचमनियम समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए अचमन के लिए श्री शिव को जल अर्पित करें।


 त्रिपुरान्तक दिनार्ति नशा श्री कंठ शाश्वत।

 गृहणचमन्यं चा पवित्र्रोदक-कल्पितम्।


 गोदुग्धा स्नानम (गोदुग्धस्नानम्)


 गोदुग्धा स्नानं समरपयामी - अब निम्न मंत्र का जाप करते हुए गाय के दूध से स्नान कराएं।


 मधुरा गोपायः पुण्यम् पटपुतम पुरुषकृतम्।

 स्नानार्थम देव देवेश गृहण परमेश्वरः!


 दधि स्नानम (दधिस्नानम्)


 दधि स्नानम समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए दही से स्नान करें।


 दुर्लभम दिवि सुस्वादु दधी सर्व प्रियं परम।

 पुष्टिदम पार्वतीनाथ!  सन्नय प्रतिग्रह्यतम:


 घृत स्नानम (घृत स्नानम्)


 घृत स्नानं समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए घी से स्नान करें।

 घृतं गव्यं शुचि स्निग्धाम सुसेव्यां पुष्टिमिच्छतम।

 गृहण गिरिजानाथ स्नानायण

घृतं गव्यं शुचि स्निग्धाम सुसेव्यां पुष्टिमिच्छतम।

 गृहण गिरिजानाथ स्नानाय चंद्रशेखर:


 मधु स्नानम (मधु स्नानम्)


 मधु स्नानं समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए शहद से स्नान कराएं।


 मधुरम मृदुमोहघनम स्वरभंगा विनाशम।

 महादेवेदमुत्ऋषधाम ताब सनाय शंकर:


 शरकारा स्नानम (शर्करा स्नानम्)


 शरकारा स्नानं समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए चीनी से स्नान कराएं।


 तपशांतिकारी शीतलाधुरस्वदा संयुक्ता।

 स्नानार्थम देव देवेश!  शरकारेयम प्रियाते॥


 शुद्धोदका स्नानम (शुद्धोदक स्नानम्)


 शुद्धोदका स्नानम समरपयामी - अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए ताजे पानी से स्नान करें।


 गंगा गोदावरी रेवा पयोशनी यमुना तथा।

 सरस्वतीदि तीर्थनी ​​स्नानार्थम प्रतिगृह्यतम॥


 वस्त्रम (वस्त्रं)


 वस्त्रम समरपयामी - भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराने के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र अर्पित करें।


 सर्वभूषाधिके सौम्ये लोका लज्जा निवारणे।

 मयोपादित देवेश्वर!  गृह्यतम वसासी शुभे


 यज्ञोपवीतं (यज्ञोपवीतं)


 यज्ञोपवीतम समरपयामी - वस्त्रम चढ़ाने के बाद।  निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पवित्र धागा अर्पित करें।


 नवभिस्तंतुभिर्युक्तम त्रिगुणम देवतमायम।

 उपवितं छोत्तरियां गृहण पार्वती पति!॥


 गंधम (गंधम्)


 गंधम समरपयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को चंदन का लेप या चूर्ण चढ़ाएं।


 श्रीखंड चंदनं दिव्यं गंधाध्यां सुमनोहरम।

 विलेपनं सुर श्रेष्ठः चंदनम प्रतिगृह्यतम॥


 अक्षतं (अक्षतं)


 अक्षतं समरपयामी - गंधम अर्पण के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को अक्षत चढ़ाएं।  (सात बार धुले हुए अखंड चावल अक्षत कहलाते हैं)।


 अक्षतश्च सुराश्रेष्ठः शुभ्रा धूतश्च निर्मला।

 माया निवेदिता भक्ति गृहण परमेश्वर:


 पुष्पनी (पुष्पाणि)


 पुष्पमालं समरपयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को फूल और माला अर्पित करें।


 माल्यादिनी सुगंधिनी मालत्यादिनी वै प्रभु।

 मयनीतानी पुष्पाणी गृहण परमेश्वर:


 बिल्व पत्रानी (बिल्व पत्रानी)


 बिल्व पत्रनी समरपयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को बिल्वपत्र का भोग लगाएं।


 बिल्वपत्रम सुवर्णें त्रिशूलकर मेवा चा।

 मायार्पिताम महादेव!  बिल्वपत्रम गृहनाम॥


 धूपम (धूपम)


 धूपम अघरपयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को अगरबत्ती या धूप-बत्ती का भोग लगाएं।

वनस्पति रसोद्भूत गन्धध्यो गन्ध उत्तमः।

 अघ्रेयः सर्वदेवनं धूपोयं प्रति गृह्यतम॥


 दीपम (दीपं)


 दीपं दर्शयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को शुद्ध घी का दीपक जलाएं।


 अजयम च वर्ति संयुक्तम वह्निना योजितम् माया।  दीपम गृहण देवेश!  त्रैलोक्यतिमिरपाह


 नैवेद्यम् (नैवेद्यं)


 नैवेद्यम निवेद्यमी - दीपदान के बाद हाथ धोकर नैवेद्य अर्पित करें।  इसमें विभिन्न प्रकार के फलों और मिठाइयों को शामिल करना चाहिए और निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को अर्पित करना चाहिए।


 शरकाराघृत संयुक्ता मधुरम स्वदुचोट्टम।

 उपहार संयुक्तम् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥


 अचमनियम (आचमनीयं)


 अचमनियम समरपयामी - नैवेद्य अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को अचमन अर्पित करें।


 एलोशिरा लवंगदि करपुरा परिवासितम्।

 प्रशनार्थम कृत तोयम गृहण गिरिजापतिः!


 तंबुलम (ताम्बुलम्)


 तंबुला निवेदयामी - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पान (तंबुला) का भोग लगाएं।


 पुंगी फलम महाद दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम।

 एलाचुर्नादि संयुक्ता तंबुलम प्रतिगृह्यताम्॥


 दक्षिणम (दक्षिणां)


 दक्षिणम समरपयामी - तंबुलम अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को धन की पेशकश करें।


 हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमाबिजं विभवसोह।

 अनंत पुण्य फलदामता शांतिम प्रयाच्छा मे॥


 आरती (आरती)


 आरर्तिक्यं समरपयामी - दक्षिणा अर्पित करने के बाद, पूजा थाली में कपूर जलाकर भगवान शिव को निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए आरती करें।


  गर्भ संभूतम कर्पुरम चा प्रदीप्तिम्।

 आरर्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव


जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।


ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥


एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।


हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥


दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।


त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥


अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।


चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।


सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥


कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।


जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।


प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥


काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।


नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥


त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।


कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥


जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥


 प्रदक्षिणम (प्रदक्षिणाम्)


 प्रदक्षिणं समरपयामी - आरती के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव की आधी परिक्रमा करें।


 यानी कनि चा पापनी जनमंतर कृतिनी वाई।

 तानी सरवानी नशयंतु प्रदक्षिणंम पदे


 मंत्र पुष्पांजलि (मंत्र पुष्पांजलि)


 मंत्र पुष्पांजलि समरपयामी - प्रदक्षिणा के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को मंत्र और पुष्प अर्पित करें।


 नाना सुगंधपुष्पश्च यथा कलोदभैरपि।

 पुष्पांजलि मायादत्तम गृहण महेश्वरः


 क्षमा-प्रार्थना (क्षमा-प्रार्थना)


 मंत्र के बाद पुष्पांजलि क्षमा-प्रार्थना मंत्र का जाप करते हुए क्षमा मांगें और भगवान शिव से क्षमा मांगें।


 आवाहनं ना जन्मी ना जन्मी तवरचनम।

 पूजाम चैव न जन्मी क्षमस्व महेश्वरः

 अन्यथा शरणं नस्ति त्वमेव शरणं मम।

 तस्मतकरुणयभवन रक्षस्व पार्वतीनाथः

 गतं पापम गतं दुहखं गातम दरिद्रयमेव चा।

अगत सुखा सम्पतिः पुण्यच्छा तवा दर्शनाति

 मन्त्रहिणं क्रियाहिनं भक्तिहिनं सुरेश्वर!।

 यत्पुजितं माया देवा परिपूर्णम तदस्तु मे॥

 यदक्षरपाद भ्राष्टम मातरहिनम् चा यादभवेत।

 तत् सर्वं क्षम्यतम देवा प्रसिदा नंदीकांधारा:



प्रहर के अनुसार शिवलिंग स्नान विधि

सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के 

प्रथम प्रहर में दूध, 

दूसरे में दही, 

तीसरे में घृत और 

चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. 


इतना ही नहीं चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी अलग हैं जानें...


प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’

दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’

तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’

चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।। 

मंत्र का जाप करना चाहिए.


शिवरात्रि पर इस मंत्र का प्रयोग करने से मिलेगा लाभ

शादी विवाह हेतु : अगर विवाह नहीं हुआ है या होने में अड़चनें आ रही हैं या फिर शादी के बाद घर गृहस्थी तनावपूर्ण वातावरण में है तो ऐसे लोग भगवान शिव को कुमकुम हल्दी अबीर गुलाल चढ़ाएं और " ॐ गौरी शंकराए नमः " का जाप 108 बार रुद्राक्ष की माला पर करें उन्हें लाभ होगा.

शिक्षा प्राप्ति के लिए : शिक्षा प्राप्ति हेतु पढाई लिखे प्रतियोगिता में सफलता के लिय छात्रों को या उनके अभिभावक को भगवान शिव का मन्त्र "ॐ रुद्राय नमः " का 108 बार रुद्राक्ष के माला पर जाप करना चाहिए. 108 बेलपत्र भगवान शिव पर जरूर चढ़ाएं.


व्यापार में सफलता हेतु: व्यापार में लगातार संघर्ष, असफलता और हानि हो रही है तो ऐसी स्थिति में भगवान शिव का अभिषेक दूध में केसर डालकर करें. बेलपत्र चढ़ाए और " ॐ सर्वेशेवराय नमः " का जाप रुद्राक्ष की माला पर करें लाभ होगा.


 महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर किन-किन चीजों को चढ़ाने से क्या फल मिलता है…


शिवलिंग पर चावल चढ़ाने के फायदा


महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन ध्यान रहे कि अक्षत टूटा न हो। शिवलिंग पर अक्षत चढ़ाने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। अगर आप पके हुए चावल से शिवलिंग का श्रृंगार करके पूजा करेंगे तो इससे मंगल दोष भी दूर होता है।


शिवलिंग पर जौं चढ़ाने के फायदे


महाशिवरात्रि पर आप शिवलिंग पर जौं भी चढ़ा सकते हैं, ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि भी आती है। इसे आप चाहें तो हर सोमवार को शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं। वहीं अगर आप गेंहूं चढ़ाते हैं तो इससे संतान पर कोई समस्या नहीं आती, उनसे हर समस्या दूर रहती है। लेकिन ध्यान रहे कि ये अन्न शिवलिंग पर अर्पित करने के बाद गरीब व जरूरतमंदों को वितरित कर दें और उनको भोजन भी कराएं।


शिवलिंग पर अरहर दाल चढ़ाने के फायदे


महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर आप अरहर की दाल भी अर्पित कर सकते हैं, ऐसा करना भी शुभ माना गया है। बताया जाता है कि जो जातक हर रोज शिवलिंग पर अरहर की दाल या फिर अरहर की दाल के पत्ते अर्पित करता है, उनके जीवन में हमेशा धन व ऐशवर्य बना रहता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।


शिवलिंग पर मूंग दाल चढ़ाने के फायदे


अगर आपके जीवन में कोई न कोई परेशानी बनी रहती है या फिर किसी वजह से कोई जरूरी कार्य अटका पड़ा है तो महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर आप मूंग की दाल अर्पित करें। ऐसा करने से आपके सभी कार्य जल्द से जल्द पूरे होते हैं और परेशानियों से भी राहत मिलती है। वहीं जीवन में सौम्यता लाने के लिए महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर केसर भी अर्पित कर सकते हैं।


शिवलिंग पर चीनी चढ़ाने के फायदे


महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर आप चीनी भी अर्पित कर सकते हैं, ऐसा करने से जीवन में दुखों का नाश होता है और आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है। साथ ही ऐसा करने से दरिद्रता भी दूर होती है। वहीं शिवजी को चंदन अर्पित करने से आपके व्यक्तित्व आकर्षक आता है और समाज में सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।


शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने के फायदे


महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर आप काले तिल भी अर्पित कर सकते हैं, ऐसा करने से घर-परिवार की कलह दूर होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर रहती हैं। साथ ही आप मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ रहते हैं। वहीं लंबी आयु के लिए आप महाशिवरात्रि पर सफेद वस्त्र या फिर जनेऊ अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से जीवन में सफलता मिलती है और शिवकृपा प्राप्त होती है।

 शिवरात्रि उन कुछ हिंदू त्योहारों में से एक है जो रात में मनाए जाते हैं।  साथ ही, यह त्योहार एक महत्वपूर्ण अवसर है जिसमें भक्त उपवास, ध्यान, स्वाध्याय, आत्मनिरीक्षण आदि करते हैं।


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