गुरुवार, 18 अगस्त 2022

कृष्ण जन्माष्टमी



 भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार (अवतार) माना जाता है। इसे देश के कई हिस्सों में गोकुलाष्टमी या श्री कृष्ण जयंती के रूप में भी जाना जाता है और पूरे देश और दुनिया में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का बहुत अधिक महत्व होता है. इसलिए हर साल देश में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. ओवैसीइसी दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है. जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के बाल रूप की पूजा- अर्चना की जाती है और महिलाएं इस दिन उपवास भी रखती है. 


श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा की तारीख


जन्माष्टमी पूजा की तारीख और समय हर साल बदलता रहता है क्योंकि यह हिंदू चंद्र कैलेंडर पर आधारित है। कृष्ण जन्माष्टमी हर साल श्रावण या भाद्रपद के महीने में कृष्ण पक्ष की आठवीं (अष्टमी) को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह आम तौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है। 

वर्ष 2022 में कृष्ण जन्माष्टमी गुरुवार, 18 अगस्त को मनाई जाएगी और पूजा का समय 19 अगस्त को दोपहर 12:03 बजे से 12:46 बजे तक रहेगा। 

इस वर्ष भगवान कृष्ण की 5249 वीं जयंती होगी।


जन्माष्टमी की पूजा- विधि


*इस दिन आप सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान कर साफ कपड़े पहन लें.*


*फिर घर में बने मंदिर की अच्छी से साफ-सफाई कर लें और उसमें दीप जलाएं.*


*श्री कृष्ण को एक साधारण स्वच्छ वस्त्र लपेटे।*


*मखाने व किशमिश की माला बनाकर गले में पहनाइये।*


*श्रीकृष्ण को स्नान पात्र (थाली या परात) में आमन्त्रित करिये अर्थात बैठाइये।*


*पुष्प व अगरबत्ती से अर्पित करिये। पूजा में काले या सफेद रंग का प्रयोग न करें. वैजयंती के फूल कृष्ण जी को अर्पित करना सर्वोत्तम होता है.*


*माला उतार दीजिए।*


*बड़े प्यार से सुगन्धित तेल से श्रीकृष्ण की मालिश करिये।*


*श्रीकृष्ण पर चंदन,  हल्दी का लेप करिये।*


*पन्चामृत से स्नान कराएं।* 


*शंख में दूध (गाय का) भरें और श्री कृष्ण का अभिषेक करें फिर, दही भरें और श्री कृष्ण का अभिषेक करें, फिर घी भरे और श्री कृष्ण का अभिषेक करें, फिर शहद भरें और श्री कृष्ण का अभिषेक करें, फिर गुड़ के घोल को भरें और श्री कृष्ण का अभिषेक करें, इसके बाद सादे जल से अभिषेक करें। यदि पवित्र नदियों का जल जैसे - गंगा, यमुना, नर्मदा आदि मिल जाये तो उससे भी करें, अनार के रस को शंख में भरकर श्री कृष्ण का अभिषेक करें, मौसमी के रस को शंख में भरकर श्रीकृष्ण का अभिषेक करें, संतरे के रस को शंख में भरकर श्री कृष्ण का अभिषेक करें और भी जिन फलों का रस मिल सके उससे अभिषेक करें तत्पश्चात सादे जल से अभिषेक कर के साफ सूखे तौलिए से आराम से पोछिये. दूसरे थाली में श्री कृष्ण को बैठाइये, फिर गुलाब की पंखुड़ियों से अभिषेक करिये, गेंदे की पंखुड़ियों से अभिषेक करिये, कमल की पंखुड़ियों से अभिषेक करिये और भी जो फूलों की पंखुड़ियाँ मिल सके तो उनसे भी कर सकते हैं।*


*उन्हें वस्त्र पहनाइये, उपवीत पहनाइये, तिलक, आभूषण, फूलों की माला, इत्र, सुगन्धित पुष्प दोनों चरणों में अर्पण करें। तुलसी पत्र दोनों चरणों में अर्पण करें। धूप-दीप, भोग निवेदन करिये। मौसम के फल, घर की बनी मिठाई, पूड़ी-सब्जी, शेक, खीर, हलवा आदि। 56 भोग भी लगा सकते हैं।*


*महाआरती करिये *


आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥


*प्रसाद का वितरण करिये।*


*कृपया अभिषेक पूजन करते समय महामंत्र का कीर्तन करते रहिए -*


*हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।* 

*हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।* 


जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण को बाल रूप में पूजा जाता है.

इसलिए आप पूजा के बाद लड्डू गोपाल को झूले में बैठाएं और उन्हें झूला दें.


अगर आपने इस दिन पर उपवास रखा है तो लड्डू गोपाल के जन्म के बाद आरती कर अपना उपवास खोल लें.

इस दिन रात्रि पूजा का बहुत महत्व होता है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात में हुआ था.

इसलिए आप जन्माष्टमी पर रात के वक्त भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा- अर्चना करें.


जन्माष्टमी का प्रसाद


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के प्रसाद में पंचामृत का भोग जरूर लगाएं. इसमें तुलसी दल भी जरूर डालें. मेवा, माखन और मिसरी   का भोग भी लगाएं. कहीं-कहीं, धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है. पूर्ण सात्विक भोजन जिसमें तमाम तरह के व्यंजन हों, इस दिन श्री कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं.


जन्माष्टमी के उत्सव के पीछे की कहानी

भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव के यहाँ श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की आठवीं (अष्टमी) को हुआ था। उनके जन्म से पहले, एक भविष्यवाणी की गई थी कि देवकी का आठवां पुत्र देवकी के भाई राजा कंस के पतन का कारण होगा। इस भविष्यवाणी को सच होने से रोकने के लिए कंस ने अपनी बहन और उसके पति को कारागार में डाल दिया और उनके सभी आठ पुत्रों के पैदा होते ही उन्हें मारने का आदेश दिया गया।

कंस ने देवकी और वासुदेव के पहले छह बच्चों को सफलतापूर्वक मार डाला लेकिन सातवें बच्चे बलराम के जन्म के समय, भ्रूण चमत्कारिक रूप से वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित हो गया। समय आया और देवकी की आठवीं संतान, कृष्ण का जन्म श्रावण में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन ठीक आधी रात को हुआ। उनके जन्म के ठीक बाद, जेल की सारी सुरक्षा अक्षम हो गई और फिर से एक दैवज्ञ वासुदेव से बच्चे को बचाने के लिए कह रहा था और उसे वृंदावन में नंद बाबा और यशोदा को दे दिया। वासुदेव ने दैवज्ञ को पूरा किया और बच्चे को वृंदावन ले गए और एक बच्ची के साथ वापस जेल लौट आए। 


जन्माष्टमी  से जुड़ी प्रसिद्ध परंपराएं


दूध, दही या छाछ से भरे बर्तन को ऊँचे खंभे पर लटकाने की प्रसिद्ध परंपरा है। लोग बर्तन तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। यह अभ्यास कृष्ण और उनके दोस्तों की नकल में उनकी मां द्वारा लटकाए गए ताजे मथने वाले मक्खन के बर्तन को तोड़ने के लिए किया जाता है। यह महाराष्ट्र और देश के अन्य पश्चिमी राज्यों की एक प्रसिद्ध परंपरा है। 

मणिपुर, असम, राजस्थान और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में, रास लीला (कृष्ण लीला) का आयोजन किया जाता है जो भगवान कृष्ण और गोपियों के जीवन का एक नृत्य-नाटक चित्रण है।


श्रीकृष्ण जयंती के अन्य नाम:


कृष्ण जन्माष्टमी अनेक नामोंमें भी जाना जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी, जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी , सातमआथम , श्रीकृष्ण जयंती , यदुकुलाष्टमी, श्री जयंती, अष्टमी रोहिणी, नंदोत्सव.


भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रीकृष्ण जयंती के अनुष्ठान


यह पवित्र दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार की स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है।


श्री कृष्ण जयंती मनाने वाले देश भर में लोग इस दिन आधी रात तक उपवास रखते हैं जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में, देवता की मूर्ति को एक छोटे से पालने में रखा जाता है और प्रार्थना की जाती है। इस दिन भजन और भगवद्गीता का पाठ किया जाता है।


महाराष्ट्र में, दही हांडी का आयोजन स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर किया जाता है। छाछ से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड का निर्माण होता है। बड़ी प्रतिस्पर्धा है और इन आयोजनों के लिए लाखों रुपये के पुरस्कारों की घोषणा की जाती है।


उत्तर प्रदेश में, बड़ी संख्या में भक्त इस दिन मथुरा और वृंदावन के पवित्र शहरों में कृष्ण मंदिरों में जाते हैं। श्री कृष्ण जन्मभूमि यानि मथुरा में इस दिन बहुत धूम देखी जाती है. 


गुजरात में, इस दिन को द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर में धूमधाम और महिमा के साथ मनाया जाता है, जो कि भगवान कृष्ण के राज्य की राजधानी थी।


जम्मू में इस दिन पतंगबाजी का आयोजन किया जाता है।


मणिपुर में भी, कृष्ण जन्म नामक इस दिन को राज्य की राजधानी इम्फाल में इस्कॉन मंदिर में मनाया जाता है।


पूर्वी भारत में, जन्माष्टमी के बाद अगले दिन नंदा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें दिन भर उपवास रखने और मध्यरात्रि में भगवान को विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ चढ़ाने की विशेषता होती है, इस प्रकार उनके जन्म का जश्न मनाया जाता है। ओडिशा के पुरी और पश्चिम बंगाल के नवद्वीप में महत्वपूर्ण पूजाएं आयोजित की जाती हैं।


दक्षिणी भारत में, महिलाएं अपने घरों को आटे से बने छोटे पैरों के निशान से सजाती हैं, जो मक्खन चुराते हुए कृष्ण के जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं।


उत्तोत्सव

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग इस त्योहार को उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर में आयोजित किया जाता है, और जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है। उत्तोत्सवम में श्रीकृष्ण और श्री मलयप्पा स्वामी का जुलूस निकाला जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवता स्थानीय युवाओं द्वारा खेले जाने वाले खेलों को देखते हैं।



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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं।  मेरा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'





शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

रक्षाबंधन


 हर साल रक्षाबंधन का त्योहार सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इसे श्रावण पूर्णिमा या कजरी पूनम के नाम से भी जाना जाता है. कुछ क्षेत्रों में इस पर्व को राखरी भी कहते हैं. यह सबसे बड़े हिन्दू त्योहारों में से एक है. इस दिन बहने अपने भाइयों के हाथ में कलाई बांध उसकी लंबी आयु की प्रार्थना करते हैं. रक्षाबंधन का त्योहार सदियों से चला आ रहा है.यह त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते और प्रेम का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं और कामना करती हैं कि हर एक विपदा से उनकी भाई की रक्षा हो सके. वहीं भाई भी अपनी बहन को यह वचन देते हैं कि वे हर मुसीबतों से उनकी रक्षा करेंगे. 


पंचांग के मुताबिक साल 2022 में रक्षा बंधन 11 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 38 मिनट से होगी. वहीं पूर्णिमा तिथि का समापन 12 अगस्त, शुक्रवार को सुबह 7 बजकर 05 मिनट पर होगा. 11 अगस्त, गुरूवार सुबह 08 :51 बजे से शाम 09 :17 बजे तक.रक्षा बंधन के लिए 12 बजे बाद का समय: – 05 :17 बजे से 06 :18 बजे तक.


रक्षाबंधन का महत्व 

यह त्योहार भाई-बहन की सच्ची भावनाओं का प्रतीक है. यह त्यौहार भाई और बहन के बीच के रिश्ते को मजबूत करता है. बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके लंबे जीवन और समृद्ध भविष्य के लिए प्रार्थना करती हैं.


देवता लक्ष्मी ने राजा बाली की कलाई पर एक राखी को नर्क से बांध दिया और इस तरह उसे अपना भाई बना लिया और भगवान नारायण यानी विष्णु को मुक्त कर दिया। उस दिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार 'श्रवण पूर्णिमा' था। रक्षा बंधन पर, परिवार के सदस्य सुबह-सुबह अनुष्ठानों की तैयारी करते हैं और भाइयों और बहनों ने अच्छी तरह से तैयार किया.


रक्षाबंधन की थाली 


रक्षाबंधन पर एक थाली में रोली, चन्दन, अक्षत, दही, राखी, मिठाई और घी का एक दीपक रखें. पूजा की थाली से पहले भगवान की आरती उतारे. 



रक्षा बंधन मनाने की विधि


बहनों के लिए:


 भगवान गणेश और परिवार के देवता की पूजा सुबह जल्दी करनी चाहिए।


 राखी, कुमकुम पाउडर, चावल के दाने, दीया, सुगंधित अगरबत्ती और मिठाई से एक प्लेट तैयार करें।


 एक तेल का दीपक (दीया) जलाएं।


 भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख  करवाकर बैठाएं. भाई के माथे पर पर कुमकुम और चावल के दानों से तिलक करें और फिर रक्षासूत्र बांधें. थाली को गोलाकार घुमाकर (आरती) करके भाई की आरती उतारने के बाद उसे मिठाई खिलाएं और उसकी लंबी उम्र की कामना करें.

 

 भाइयों के लिए:


 जब आपकी बहन राखी बांधती है और अनुष्ठान समाप्त करती है, तो उसे उपहार, नकद के साथ अपना आशीर्वाद दें और शादी के बाद भी उसे सभी सुरक्षा और समर्थन का वादा करें।


रक्षा बंधन का इतिहास

रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी।


मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।


दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं।

उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।


पौराणिक  कथाएं:-


राजा बलि और लक्ष्मी मां ने शुरू की भाई-बहन की राखी

राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनतीस्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु नेराजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।


द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी से जुड़ी एक सुंदर घटना का उल्लेख महाभारत में मिलता है। सुंदर इसलिए क्योंकि यह घटना दर्शाती है कि भाई-बहन के स्नेह के लिए उनका सगा होना जरूरी नहीं है। कथा है कि जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते हुए सुदर्शन चक्र से भगवान की छोटी उंगली थोड़ी कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी आगे आईं और उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी के चीर की लाज रखी। कहते हैं जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण कीकलाई में साड़ी का पल्लू बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा की दिन था।


तब युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि हे कान्हा, मैं कैसे सभी संकटों से पार पा सकता हूं? मुझे कोई उपाय बतलाएं। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधें। इससे उनकी विजय सुनिश्चित होगी। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी बने। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है। तब से इस दिन पवित्र रक्षासूत्र बांधा जाता है। इसलिए सैनिकों को इसदिन राखी बांधी जाती है।


पत्नी सचि ने इंद्रदेव को बांधी थी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में हुई थी।


रक्षाबंधन में भूलकर भी ना लें ऐसी राखी


रक्षा बंधन से कई दिन पहले ही मार्केट में राखियां बिकने लगती हैं. इस दौरान मार्केट में अलग-अलग प्रकार की राखियां बिकती हैं. ऐसे में अगर आप भी अपने भाइयों के लिए राखी खरीदने जा रही हैं तो कुछ बातों का खास ख्याल रखें.  आप अपने भाई को ऐसी राखियां ना बाधें जिससे उनकी लम्बी उम्र के बजाय उन पर मुसीबत आ जाए. 


राखी लेते समय हर बहन यह सोचती हैं कि वह अपने भाई के लिए ऐसी राखी ले जो बहुत सुंदर हो और राखी को देखते ही भाई खुश हो जाए. लेकिन क्या आप जानते हैं राखी के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं. 


राखी लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि ज्यादा बड़े आकार की राखी खरीदने से बचें. आकार में बड़ी होने के कारण यह राखी आसानी से टूट भी सकती है जिससे आपके भाई को अपने जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. इससे आप दोनों के रिश्ते पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.


राखी लेते समय इस बात का भी ख्याल रखें कि राखी में काला रंग ना हो. काले रंग को  सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों का ही प्रतीक माना जाता है लेकिन पूजा सामग्री में काले रंग का इस्तेमाल करना वर्जित होता है. ऐसे में जिन राखियों में काला रंग होता है, उन्हें शुभ नहीं माना जाता . इसलिए कोशिश करें कि राखी में काला रंग ना हो. 


आप अपने भाई के लिए चांदी की छोटे आकार की राखी ले सकती हैं. साथ ही आप ऐसी राखी भी ले सकती हैं जिसमें ओम या स्वास्तिक का चिह्न बना हो. 


अगर आपके घर में कोई पुरानी राखी पड़ी है तो उसे ऐसे ही फेंकने की गलती ना करें, ऐसा करना राखी का अपमान माना जाता है. आप राखी को उतारकर बहती हुई नदी या पानी में प्रवाहित करें.


रक्षा बंधन पर्व के दिन यजुर्वेद उपकर्म (पवित्र धागा परिवर्तन समारोह), गायत्री जयंती (देवी गायत्री की जयंती), हयग्रीव जयंती (भगवान विष्णु के अवतार भगवान हयग्रीव की जयंती) और नारली पूर्णिमा त्योहार भी मनाया जाता है।


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