एक सामान्य जैन परिवार की संस्कृति और दिनचर्या एक गैर जैन परिवार से अलग होती है, आइए बात करते हैं कि एक जैन बालक बचपन से क्या सीखता है।
दिन की शुरुआत णमोकार मंत्र के नाम से होती है और उसी के साथ समाप्त होती है:
उठते ही वे हमेशा णमोकार/नवकार मंत्र का 9 बार जप करता हैं। घर में सभी को जय जिनेन्द्र कहकर नमस्कार करता हैं और जब भी किसी जैन ब्यक्ति आपस मिलते हैं, तो जय जिनेन्द्र कहते हैं। यदि आप किसी जैन विशेष रूप से एक बुजुर्ग को नमस्ते कहते हैं, तो वे हमेशा जय जिनेंद्र कहते हैं। जय जिनेंद्र
अर्थ होता है "जिनेन्द्र भगवान (तीर्थंकर) को नमस्कार"। यह दो अक्षर संस्कृत के मेल से बना हैं: जय और जिनेन्द्र। जय शब्द जिनेन्द्र भगवान के गुणों की प्रशंसा के लिए उपयोग किया जाता है। जिनेन्द्र उन आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्होंने अपने मन, वचन और काया को जीत लिया और केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। जैन सोने से पहले 9 बार णमोकार मंत्र का जप करते हैं।
नवकार मंत्र
नमो अरिहंताणम
मैं उस प्रभु को नमन करता हूं, जिसने सभी शत्रुओं का नाश कर दिया है, क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष, रूपी शत्रु का नाश कर दिया है।
नमो सिद्धाणं
मैं उन सभी भगवान को नमन करता हूं जिन्होंने अंतिम मुक्ति प्राप्त की है।
नमो आयरियाणं
मैं उन अंश भगवान को नमस्कार करता हूं, जिन्होंने मिलकर आत्मा को प्राप्त किया है और मोक्ष का मार्ग दिखा रहे हैं।
नमो उवज्जयाणम
मैं मोक्ष के मार्ग के आत्माज्ञानी शिक्षकों को नमन करता हूं।
नमो लोए सव्वा साहूणम
मैं उन सभी को नमन करता हूं जिन्होंने आत्मा को प्राप्त किया है और ब्रह्मांड में इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।
एसो पंच नमुक्कारो
ऊपर जो पांच नमस्कार वे
सव्व पावप्पणासणों
सभी पापों का नाश करो।
मंगलाणम च सव्वेसिं
सभी शुभ मंत्रों में से
पढ़ेमं हवी मंगलं
यह सुप्रीम है।
स्कूल/कॉलेज जाने के पहले मंदिर:
अक्सर देखा जाता है कि बच्चे रोज स्कूल जाने से पहले मंदिर जाते हैं, माता-पिता अपने बच्चों से रोज मंदिर जाने को कहते हैं।
एक बूंद पानी में होते हैं 36450 जीव
यदि आप पानी पी रहे हैं, तो जैन होने के नाते आप हमेशा सोचते हैं कि यह उबला हुआ/फ़िल्टर्ड है या नहीं। बचपन से ही आपको बताया जाता है कि पानी की एक बूंद में भी 36450 जीव होते हैं।
कटहल को नॉन वेज माना जाता है:
अधिकांश जैन जड़ वाली सब्जियां नहीं खाते हैं, अगर उनमें से कुछ खाते हैं तो वे अपने जीवनकाल में कटहल नहीं खाते हैं।
स्नैक्स टाइम है डिनर टाइम:
अहिंसा के कारण जैन सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेते हैं। जैन ग्रंथों में सूर्यास्त के बाद भोजन करने की सलाह नहीं दी गई है। रात में भूख लगने पर ड्राई फ्रूट्स/फलो का सेवन किया जाता है।
स्कूल के बाद स्कूल (पाठशाला):
अधिकांश जैन मंदिरों में सायंकाल के समय जैन धर्म की शिक्षा कराई जाती है, इसे पाठशाला कहते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को जैन धर्म के बारे में जानने के लिए उन सत्रों में भाग लेने के लिए भेजते हैं।
उपवास का अर्थ है भोजन न करना:
जब कोई जैन उपवास करता है तो 24 घंटे वह कुछ खाता-पीता नहीं है। जैन धर्म के अनुसार उपवास तो इंद्रियों को वश में करने के लिए है।
तीर्थस्थल होते हैं पर्यटन स्थल:
जब भी छुट्टियां आती हैं तो जैन लोग किसी भी तीर्थस्थल के दर्शन करने जाने की योजना बनाते हैं। दीवाली की छुट्टी में महावीरजी और अन्य जगहों पर भीड़ देखने को मिलती है। जैसे लोग गोवा जाएंगे तो वहां भी जैन मंदिर खोजेंगे।
बचपन से ही अच्छा या बुरा भेदभाव कर्म सिद्धांत:
वे बचपन से अपने बच्चों को सीखते हैं कि हम जो कुछ भी करेंगे वही हमें वापस मिलेगा अतः अच्छे कर्म करना चाहिए।
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