लोहड़ी
नये साल की शुरुआत के साथ ही साल का पहला त्योहार लोहड़ी आने वाला है. मकर संक्रांति से एक दिन पहले ये पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. हर साल की तरह इस साल भी ये पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन आग में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाने का रिवाज होता हैहैं.
लोहड़ी 2022 तारीख, संक्रांति समय एवं योग
इस साल लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी दिन गुरुवार को है. इस दिन लोहड़ी संक्रांति का समय दोपहर 02 43 मिनट पर है. इस दिन शुभ योग दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है, उसके बाद शुक्ल योग प्रारंभ हो जाएगा. ये दोनों ही योग शुभ कार्यों के लिए अच्छे होते हैं. लोहड़ी के दिन रवि योग प्रात: 07 बजकर 15 मिनट से शाम 05 बजकर 07 मिनट तक है. इस बार की लोहड़ी रवि योग में है.
अग्नि प्रज्जवलन का शुभ मुहूर्त
वीरवार की सायंकाल 5 बजे से रोहिणी नक्षत्र आरंभ हो जाएगा।
लोहड़ी पर्व को हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत् एवं मकर संक्रांति से जोड़ा गया है। लोहड़ी को सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत भी माना जाता है. कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है. रात को आग का अलाव जलाया जाता है. इस अलाव में गेहूं की बालियों को अर्पित किया जाता है. इस अवसर पर पंजाबी समुदाय के लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य कर उत्सव मनाते हैं.
लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का त्योहार सर्दियों के जाने और बसंत के आने के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है।
पंजाबी संस्कृति के अनुसार इस महीने में फसल की कटाई शुरू होती है। लोहड़ी को उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार माना जाता है, खासकर पंजाब और हरियाणा प्रांत में तो इस त्योहार की धूम रहती है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार होता है जिसमें सूर्यास्त के बाद लोग अपने घरों के सामने लोहड़ी जलाकर इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते और खुशियां मनाते हैं.
माना जाता है कि अग्नि के चारों ओर घूमने से वैवाहिक जीवन मधुर व मजबूत होता है. इसलिए लोहड़ी के दिन नव दंपति पारंपरिक वस्त्र पहनकर लोहड़ी मनाते हैं।
नवविवाहित महिलाएं या फिर मां बनीं महिलाएं अपनी पहली लोहड़ी का बेसब्री से इंतजार करती हैं।
इसके अलावा, ये त्योहार किसानों का नव वर्ष भी कहलाता है। इसी दिन ही घरों में नई फसल की पूजा की जाती है. आग में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक डालने और इसके बाद इसे एक-दूसरे में बांटने की परंपरा है. इस दिन पॉपकॉर्न और तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं. इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है. आज के दिन किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं.
साथ ही, घर के पुरुष भंगड़ा और महिलाएं गिद्दा करती हैं।
पौष-माघ के महीने में कड़कती ठंड में जलता हुआ अलाव शुकून देने वाला होता है, इसी मौसम में किसानों को अपनी फसलों से थोड़े से फुर्सत के पल मिलते हैं, गेंहूं, सरसों, चने आदि की फसलें लहलहाने लगती हैं, किसानों के सपने सजने लगते हैं, उम्मीदें पलने लगती हैं। किसानों के इस उल्लास को लोहड़ी के दिन देखा जा सकता है। हर्षोल्लास से भरा, जीवन में नई स्फूर्ति, एक नई उर्जा, आपसी भाईचारे को बढ़ाने व अत्याचारी, दुराचारियों की पराजय एवं दीन-दुखियों के नायक, सहायक की विजय का प्रतीक है लोहड़ी का त्यौहार। लोहड़ी का यह त्यौहार पंजाब के साथ-साथ हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्तमान में देश के अन्य हिस्सों में भी लोहड़ी पर्व लोकप्रिय होने लगा है।
लोहड़ी गीत का महत्व
लोहड़ी में गीतों का बड़ा महत्व माना जाता है. इन गीतों से लोगों के ज़ेहन में एक नई ऊर्जा एवं ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है. गीत के साथ नृत्य करके इस पर्व को मनाया जाता है. इन सांस्कृतिक लोक गीतों में ख़ुशहाल फसलों आदि के बारे में वर्णन होता है. गीत के द्वारा पंजाबी योद्धा दुल्ला भाटी को भी याद किया जाता है.
सुंदर मुंदरिये हो…
सुंदर मुंदरिये.............हो
तेरा कौन बेचारा, .............हो
दुल्ला भट्टी वाला, .............हो
दुल्ले घी व्याही,.............हो
सेर शक्कर आई, .............हो
कुड़ी दे बाझे पाई, .............हो
कुड़ी दा लाल पटारा, .............हो
कुड़ी दा सालू पाटा .............हो
सालू कौन समेटे .............हो
चाचा चुर्री कुट्टी .............हो
जमींदारा लुट्टी .............हो
ज़मींदार सुधाये .............हो
गिण गिण पौले लाऊ.............हो
इक पौला घट गया.............हो
जिमेंदार नट्ठ गया.............हो
अंबियां पे अंबिया (हिमाचल की मशहूर लोहड़ी)
अंबियां पे अंबिया… अंबियां
लाल कणकां जमियां…. अंबियां
कणकां बिच्च मुटेरे…… अंबियां
दो साधू केरे…………...अंबियां
साधू गे कायो…………...अंबियां
का औया थोड़ा………….अंबियां
अग्गैं मिल्ला घोड़ा………..अंबियां
घोड़े उप्पर काठी………….अंबियां
अग्गैं मिल्ला हाथी………...अंबियां
हाथियैं फिचके दांद
मेरा नाम गोपीचंद
लोहड़ी बधाई
दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी , दे माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी
हुल्ले नी माइ हुल्ले
दो बेरी पत्ता झुल्ले
दो झुल्ल पयीं खजूर्राँ
खजूराँ सुट्ट्या मेवा
एस मुंडे कर मगेवा
मुंडे दी वोटी निक्कदी
ओ खान्दी चूरी कुटदी
कुट कुट भरया थाल
वोटी बावे ननदना नाल
शावा,,, शावा
असी गंगा चल्ले - शावा !
सस सौरा चल्ले - शावा !
जेठ जेठाणी चल्ले - शावा !
देयोर दराणी चल्ले - शावा !
पियारी शौक़ण चल्ली - शावा !
असी गंगा न्हाते - शावा !
सस सौरा न्हाते - शावा !
जेठ जठाणी न्हाते - शावा !
देयोर दराणी न्हाते - शावा !
पियारी शौक़ण न्हाती - शावा !
शौक़ण पैली पौड़ी - शावा !
शौक़ण दूजी पौड़ी - शावा !
शौक़ण तीजी पौड़ी - शावा !
मैं ते धिक्का दित्ता - शावा !
शौक़ण विच्चे रूड़ गई - शावा !
सस सौरा रोण - शावा !
जेठ जठाणी रोण - शावा !
देयोर दराणी रोण - शावा !
पियारा ओ वी रोवे - शावा
सुनी जाती है दुल्ला भट्टी की कहानी
इस दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है. लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है.
मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था. उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी. कहते हैं तभी से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की पंरापरा चली आ रही है.
माना जाता है कि लोहड़ी की रात साल की आखिरी सबसे लंबी रात होती है। इसके बाद से दिन बड़े होने लगते हैं।
लोहड़ी का अर्थ
मकर संक्रांति से पहले वाली रात को सूर्यास्त के बाद मनाया जाने वाला पंजाब प्रांत का पर्व है लोहड़ी, जिसका का अर्थ है- ल (लकड़ी)+ ओह (गोहा यानी सूखे उपले)+ ड़ी (रेवड़ी)। तीनों अर्थों को मिला कर लोहड़ी बना है।
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था. यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में फेमस हो गया है. मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है. पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहते हैं.
लोहड़ी को पहले कई स्थानों पर लोह कहकर भी बुलाया जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। यहां लोहे को तवे से जोड़कर देखा जाता है। लोहड़ी के मौके पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है। गेहूं के आटे से रोटियां बनाकर लोह यानी तवे पर सेंकी जाती हैं। इसलिए पहले इस त्योहार को लोह के नाम से भी जाना जाता था।
इस पर्व के 20-25 दिन पहले ही बच्चे 'लोहड़ी' के लोकगीत गा-गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। फिर इकट्ठी की गई सामग्री को चौराहे/मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाते हैं। गोबर के उपलों की माला बनाकर मन्नत पूरी होने की खुशी में लोहड़ी के समय जलती हुई अग्नि में उन्हें भेंट किया जाता है। इसे चर्खा चढ़ाना भी कहा जाता हैं।
समूह के साथ लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी एवं मूंगफली का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भांगड़ा नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। पंजाबी समुदाय में इस पर्व की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसका संबंध मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है, तो उस परिवार की ओर से खुशी बांटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है। सगे-संबंधी और रिश्तेदार उन्हें इस दिन विशेष सौगात के साथ बधाइयां भी देते हैं।
लोहड़ी और मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। लोहड़ी के दिन जहां शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाती है, वहीं अगले दिन प्रात: मकर संक्रांति का स्नान करने के बाद उस आग से हाथ सेंकते हुए लोग अपने घरों को आएंगे। इस प्रकार लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायण होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।
लोहड़ी पर शाम को परिवार के लोगों के साथ अन्य रिश्तेदार भी इस उत्सव में शामिल होते हैं। इस पर्व पर अब बधाई के साथ तिल के लड्डू, मिठाई, ड्रायफूट्स आदि देने का रिवाज भी चल पड़ा है फिर भी रेवड़ी और मूंगफली का विशेष महत्व बना हुआ है। इसीलिए रेवड़ी और मूंगफली पहले से ही खरीदकर रख ली जाती है। बड़े-बुजुर्गों के चरण छूकर सभी लोग बधाई के गीत गाते हुए खुशी के इस जश्न में शामिल होते हैं।
इस पर्व का एक यह भी महत्व है कि बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाते हुए नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं ताकि भविष्य में भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी उत्सव चलता ही रहे। लोहड़ी का जश्न मनाते समय वहां सभी उपस्थित लोगों को यही चीजें प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं। इसके साथ ही पंजाबी समुदाय में घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से 2-4 दहकते कोयले भी प्रसाद के रूप में घर लाने की प्रथा आज भी जारी है। ढोल की थाप के साथ गिद्दा नाच का यह उत्सव शाम होते ही शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता ही रहता है।
इस अवसर पर पंजाबी गाने की धूम 'ओए, होए, होए, बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा रेवड़ी...', इस प्रकार के पंजाबी गाने लोहड़ी की खुशी में खूब गाए जाएंगे और पर्व को चार चांद लगा देंगे।
लोहड़ी उत्सव का एक अनोखा ही नजारा होता है। लोगों ने अब समितियां बनाकर भी लोहड़ी मनाने का नया तरीका निकाल लिया है। ढोल-नगाड़ों वालों की पहले ही बुकिंग कर ली जाती है। सांस्कृतिक स्थलों में लोहडी त्यौहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है. अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों के साथ जब लोहड़ी के गीत शुरू होते हैं तो स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी स्वर में स्वर, ताल में ताल मिलाकर नाचने लगते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार खुद में अनेक सौगातों को लिए होता है. फसल पकने पर किसान खुशी को जाहिर करता है जो लोहड़ी पर्व, जोश व उल्लास को दर्शाते हुए सांस्कृत्तिक जुड़ाव को दर्शाता है , पंजाब और हरियाणा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. लोहडी केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत में मनाया जाता है अलग-अलग नामों से फसल पकने की खुशी यहां पूरे जोश के साथ लोहड़ी के रुप में मनाई जाती है. लोहडी त्यौहार है, प्रकृति को धन्यवाद कहने का,यह मकर संक्रान्ति के आगमन की दस्तक भी कहा जाता है.
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं |
लोहडी़ के पर्व के संदर्भ में अनेकों मान्यताएं हैं जैसे कि लोगों के घर जा कर लोहड़ी मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं, कहते हैं कि हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.
हिन्दु धर्म में यह मान्यता है कि आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है.इसलिए जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है. लोहडी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच- गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है.
यूं तो लोहडी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां लेकर आती है. परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन विशेष होता है. युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है. लोहडी की संध्यां में जलती लकडियों के सामने नवविवाहित जोडे अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये रखने की कामना करते है. नववधू, बहन, बेटी और बच्चों का उत्सव है.
पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है. जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है. घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है. इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है.
लोहड़ी पर भंगड़ा और गिद्दा की धूम |
लोहडी़ के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं. स्कूल व कालेजों में विशेष तौर पर इस दिन को मनाते हैं बच्चे नाच गा कर मजे करते नज़र आते हैं. मन को मोह लेने वाले गीतों कुछ इस प्रकार के होते है कि एक बार को जाता हुआ बैरागी भी अपनी राह भूल जाए. लोहडी के दिन में भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकडियां की आग और आग में डाले जाने वाली चीजों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है. यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है. बडे-बडे ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवडी और मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है.
माघ का आगमन |
लोहडी पर्व क्योकि मकर-संक्रान्ति से ठीक पहले कि संध्या में मनाया जाता है तथा इस त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है. लोहड़ी पौष की आख़िरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है.
वैसे तो लोहड़ी का त्योहार हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को मनाया जाता है। मगर कभी-कभी इसकी ग्रहों और नक्षत्रों की वजह से इसकी तिथि में फेरबदल हो जाता है।
कैसे मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार
लोहड़ी के दिन लकड़ियों व उपलों का छोटा सा ढेर बनाकर जलाया जाता है जिसमें मूंगफली, रेवड़ी, भुने हुए मक्की के दानों को डाला जाता है। लोग अग्नि के चारों और गीत गाते, नाचते हुए खुशी मनाते हैं व भगवान से अच्छी पैदावार होने की कामना करते हैं। अविवाहित लड़कियां-लड़के टोलियां बनाकर गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं, जिसमें प्रत्येक घर से उन्हें मुंगफली रेवड़ी एवं पैसे दिए जाते हैं। जिस घर में बच्चा पैदा होता है उस घर से विशेष रुप से लोहड़ी मांगी जाती है।
दे माए लोहड़ी... जीवे तेरी जोड़ी
खोल माए कुंडा जीवे तेरा मुंडा
लोहड़ी पर्व का मुख्य उद्देश्य
पंजाब क्षेत्र में इस त्यौहार (माघी संग्रांद) को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। साथ ही यह त्यौहार किसानों के लिए आर्थिक रूप से नूतन वर्ष माना जाता है।
उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोक गीत गाते हैं और लोगों द्वारा उन्हें मिष्ठान और पैसे (कभी-कभार) भी दिए जाते हैं
● ऐसा माना जाता है कि बच्चों को खाली हाथ लौटाना सही नहीं माना जाता है, इसलिए उन्हें इस दिन चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली एवं मक्का आदि भी दिया जाता है जिसे लोहड़ी भी कहा जाता है।
● फिर लोग आग जलाकर लोहड़ी को सभी में वितरित करते हैं और साथ में संगीत आदि के साथ त्यौहार का लुत्फ़ उठाते हैं।
● रात में सरसों का साग और मक्के की रोटी के साथ खीर जैसे सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का आनंद लिया जाता है।
● पंजाब के कुछ भाग में इस दिन पतंगें भी उड़ाने का प्रचलन है।
लोहड़ी पर इस विधि से करें पूजा
लोहड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की आराधना की जाती है। इस दिन पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद उनके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद उन्हें सिंदूर और बेलपत्र अर्पित करें। भोग में प्रभु को तिल के लड्डू चढ़ाएं। इसके बाद सूखा नारियल लेकर उसमें कपूर डालें। अब अग्नि जलाकर उसमें तिल का लड्डू, मक्का और मूंगफली अर्पित करें। फिर अग्नि की 7 या 11 परिक्रमा करें।
लोहड़ी गीत एवं इसका महत्व
लोहड़ी में गीतों का बड़ा महत्व है। इससे लोगों के ज़ेहन में एक नई ऊर्जा एवं ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है। इसके अलावा गीत के साथ नृत्य करके इस पर्व को मनाया जाता है। मूलरूप से इन सांस्कृतिक लोक गीतों में ख़ुशहाल फसलों आदि के बारे में वर्णन होता है। गीत के द्वारा पंजाबी योद्धा दुल्ला भाटी को भी याद किया जाता है। आग के आसपास लोग ढ़ोल की ताल पर गिद्दा एवं भांगड़ा करके इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं।
विशेष पकवान
इस दिन नववधू किचन में पहली बार सबसे के लिए खाना बनाती है।
लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गज्जक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्के की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं. लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं.
गांवों में आज भी लोहड़ी के समय सरसों का साग, मक्की की रोटी अतिथियों को परोस कर उनका स्वागत किया जाता है।
लोहड़ी की रात खीर बनाने की परंपरा है। इस खीर को अगले दिन माघ में खाया जाता है जिससे जुड़ी एक कहावत है 'पोह रिद्धी माघ खाधी' जिसका मतलब है पौष में बनाई खीर माघ में खाई गई। हर त्यौहार से जुड़ी कोई न कोई पारंपरिक रेसिपी घर-घर में जरूर बनाई जाती है। वैसे तो कई लोग लोहड़ी के दिन गन्ने के रस से बनी खीर खाते हैं पर उत्तर भारत में लोहड़ी के दिन चिरौंजी-मखाने की खीर भी बड़े चाव से खाई जाती है
लोहड़ी की कहानियां
दुल्ला भट्टी
लोहड़ी का त्यौहार मनाए जाने के पिछे वैसे तो कई मान्यताएं हैं, लेकिन सबसे प्रचलित मान्यता दुल्ला भट्टी की है।जिसे पंजाब के "रॉबिन हुड" के रूप में जाना जाता है। लोहड़ी पर्व की एक ऐतिहासिक कथा भी है, जिसके अनुसार दुल्ला भट्टी नाम का सरदार जो अकबर के शासनकाल में पंजाब प्रांत का सरदार था। पंजाब प्रांत में संदलबार नामक एक जगह थी जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है। लोक कथा के अनुसार दुल्ला भट्टी मुगल शासकों के समय का एक बहादुर योद्धा था। एक गरीब ब्राह्मण की दो लड़कियों सुंदरी और मुंदरी के साथ स्थानीय मुगल शासक जबरदस्ती विवाह करना चाहता था, जबकि उनका विवाह पहले से कहीं और तय था। दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को मुगल शासक के चंगुल से छुड़वाकर स्वयं उनका विवाह किया। उस समय उसके पास और कुछ नहीं था, इसलिए एक शेर शक्कर उनकी झोली में डाल कर उन्हें विदा किया। इसी कहानी को कई तरीके से पेश किया जाता है। किसी कहानी में दुल्ला भट्टी को अकबर के शासनकाल का योद्धा व पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित बताया जाता है तो किसी कहानी में डाकू। लेकिन सभी कहानियों में समानता यही है कि दुल्ला भट्टी ने पीड़ित लड़कियों की सहायता कर एक पिता की तरह उनका विवाह किया। वह सामंती वर्ग से संबंधित थे लेकिन उन्होंने गरीबों के लिए मुगलों से विद्रोह किया था। 'दुल्ला भट्टी'को साल 1599 में मुगलों ने गिरफ्तार करके मार डाला था।दुल्ला भट्टी की कहानी को आज भी पंजाब के लोक-गीतों में सुना जा सकता है।लिहाज़ा आज के दौर में लोग उसे पंजाब का रॉबिन हुड कहते हैं।
लोकप्रिय लोहड़ी गीत
सुंदर मुंदरिए - हो
तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया - हो!
लोकप्रिय लोहड़ी गीत पंजाबी में:
ਸੁਨਦਰ ਮੁਨਦਰੀਏ ...ਹੋ
ਤੇਰਾ ਕੋਨ ਵਿਚਾਰਾ ...ਹੋ
ਦੁਲਾ ਭਠੀ ਵਾਲਾ ... ਹੋ
ਦੁਲੇ ਨੇ ਧੀ ਵਿਹਾਇ ...ਹੌ
ਸੇਰ ਸ਼ਕਰ ਪਾਏ ...ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਲਾਲ ਪਟਾਖਾ ..ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਸਾਲੁ ਪਾਟਾ ...ਹੋ
ਸਾਲੂ ਕੋਨ ਸਮੇਟੇ !
ਚਾਚੇ ਚੂਰੀ ਕੁੱਟਿ!
ਜ਼ਮਿਦਾਰਾ ਲੁੱਟਿ
ਜ਼ਮੀਨਦਾਰ ਸੁਧਾਏ
ਬਮ ਥਮ ਭੌਲੇ ਘਾਏ
ਇਕ ਭੋੱਲਾ ਰਹਿ ਗਿਆ
ਸਿਪਾਹਿ ਫੱੜਕੇ ਲੈ ਗਿਆ
ਸਿਪਾਹਿ ਨੇ ਮਾਰੀ ਇੰਟ
ਸਾੱਨੁ ਦੇਦੇ ਲੋਹੜੀ , ਤੇ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
इस प्रकार उन दोनों की शादी तो हो गई, लेकिन बाद में मुगल शासकों ने अब्दुल्ला भाटी पर हमला कर दिया और वह मारा गया। तब से अब्दुल्ला भाटी की याद में लोहड़ी का ये त्योहार मनाया जाता है और शाम के समय लकड़ी और उपले जलाकर उसकी परिक्रमा की जाती है। आज एक-दूसरे को मूंगफली, रेवड़ियां आदि बांटने और खाने का भी रिवाज़ है।
पौराणिक कथा
देवी सती
हिंदु पौराणिक कथा के मुताबिक लोहड़ी का पर्व भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ा है. कथा के अनुसार माता पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आयोजन किया और अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. इससे नाराज होकर देवी सती अपने पिता के घर पहुंचीं और वहां पति भगवान शिव के बारे में कटु वचन और अपमान सुन वह यज्ञ कुंड में समा गईं.
ऐसा माना जाता है कि उनकी याद में ही लोहड़ी के दिन आग जलाया जाता है.
भगवान् कृष्ण लोहिता वध
एक पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण के मामा कंस ने कृष्ण जी को मारने के लिए एक राक्षसी को भेजा था जिसका नाम लोहिता था। श्री कृष्ण जी ने उनको खेल खेल में ही मार दिया था। और इसकी ख़ुशी में में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है।
संत कबीर की पत्नी लोई
एक अन्य मान्यता के अनुसार, संत कबीर की पत्नी लोई से भी लोहड़ी को जोड़ा जाता है, जिस कारण पंजाब में कई स्थानों पर लोहड़ी को आज भी लोई कहा जाता है।
भारत के अन्य भाग में लोहड़ी
आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व भोगी मनाया जाता है। इस दिन लोग पुरानी चीज़ों को बदलते हैं। वहीं आग जलाने के लिए लकड़ी, पुराना फ़र्नीचर आदि का भी इस्तेमाल करते हैं। इसमें धातु की चीज़ों को दहन नहीं किया जाता है। रुद्र ज्ञान के अनुसार इस क्रिया के तहत लोग अपने सभी बुरे व्यसनों का त्याग करते हैं। इसे रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ भी कहते हैं। यह आत्मा के बदलाव एवं उसके शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है।
ईरान देश में लोहड़ी
ईरान का चहार-शंबे सूरी भी बिल्कुल लोहड़ी के पर्व की तरह ही नए साल का जश्न मनाया जाता है और सूखे मेवे अग्नि को अर्पित किये जाते है। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से जब तिल युक्त आग जलती है, वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है ।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि लेखक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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