रविवार, 9 जनवरी 2022

मकर संक्रांति, खिचड़ी संक्रांति

 


मकर संक्रांति, 

मकर संक्रांति मुहूर्त 2022

14 जनवरी पुण्य काल मुहूर्त : 2 बजकर 12 मिनट से शाम 5 बजकर 45 मिनट तक

महापुण्य काल मुहूर्त : 2 बजकर 12 मिनट से 2 बजकर 36 मिनट तक  (अवधि कुल 24 मिनट)

ध्यान रखें कि ये नई दिल्ली, भारत के लिए समय हैं,


मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व माना जाता है. पौष मास में इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है और मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति से ही ऋतु परिवर्तन भी होने लगता है. इस दिन स्नान और दान-पुण्य जैसे कार्यों का विशेष महत्व माना गया है.

हिंदू धर्म में नवग्रहों को भी देव का दर्जा दिया गया है। जिनमें से सूर्य देव को सभी का राजा कहा जाता है। तो वहीं शास्त्रों में सूर्य भगवान को संपूर्ण जगत की आत्मा कहकर संबोधित किया जाता है। ऋग्वेद के देवताओं के सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अलावा भारतीय ज्योतिष में सूर्य ग्रह को आत्मा का कारक माना जाता है।  उत्तराषाढ़ा, उत्तराफ़ाल्गुनी तथा कृतिका सूर्य से संबंधित नक्षत्र माने जाते हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह के स्वामी हैं। अब इन सब बातों से आप जान चुके होंगे कि सूर्य देव हिंदू धर्म के कितने प्रमुख देवताओं में शामिल हैं, और इसमें इनका कितना महत्व है। 

मकर संक्रांति का महत्व

भारतीय संस्कृति में सूर्य का बड़ा महत्व है | सूर्य हमारे वैदिक देवता हैं | सूर्यदेव के बारे में वेद में कहा गया हे "सूर्य आत्मा जगत:" अर्थात सूर्य विश्व का आत्मा है | ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है| मेष आदि १२ राशियाँ है | हर राशि में सूर्य एक माह तक रहते हैं | जब सभी १२ राशियों का परिभ्रमण समाप्त होता है तब एक संवत्सर यानी वर्ष समाप्त होता है| काल गणना का विस्तृत विज्ञानं हमारे भारतीय ग्रंथो में वर्णित है |जिसके अनुसार अहोरात्र का एक दिन, सात दिन का सप्ताह,दो सप्ताह का एक पक्ष, शुक्ल और कृष्ण इन दो पक्षों का एक मास, दो मास की एक ऋतु,तीन ऋतुओ का एक अयन और दो आयनो का एक वर्ष होता है | जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब से ६ महीने उत्तरायण के महीने होते हैं | जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तब से ६ महीने दक्षिणायन|

उत्तरायण का वैशिष्ट्य

उत्तरायण के समय में दिन बड़े, आकाश स्वच्छ और सूर्य की किरणे स्पष्ट,तीव्र एवं सीधी होती हैं | प्रकृति के विकास के लिए यह समय उत्कृष्ट समय माना गया है |मकर संक्रांति से सर्दी में कमी आने लगती है यानि शरद ऋतु के जाने का समय आरंभ हो जाता है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है. मकर संक्रांति के बाद ही दिन लंबे रातें छोटी होने लगती हैं इसी समय में ऋतुओं के राजा वसंत का आगमन होता है | अतः उत्तरायण का काल शुभ माना जाता है|" उत्तरम् अयनम् अतीत्य व्यावृत्तः क्षेम सस्य वृद्धिकरः |" उत्तरायण का सूर्य क्षेम एवं धान्य वृद्धि करानेवाला होता है |

मकर संक्रांति को क्या करना चाहिए

 मकर संक्रांति के दिन वस्त्र,अन्न,बर्तन,तिल,घी,गुड,सुवर्ण,घोड़े,गाय या गौचारे का दान करनाचाहिए |हो सके अधिक  से अधिक समय जप अनुष्ठान करना चाहिए | यज्ञ करना अति श्रेष्ठ पर्याय है | अच्छे विचार करना और लोगो से अच्छा व्यव्हार करना तथा पुरे वर्ष के लिए किसी अच्छी प्रवृत्ति या नियम का संकल्प लेना | शास्त्र अभ्यास या गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की शुरुआत करना |

मकर संक्रांति और महाभारत काल…

महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरवों की सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मुत्यु का वरदान प्राप्त था। भीष्म जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। अर्जुन के बाण लगाने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिए इस दिन को निर्धारित किया था। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए।

हर बारह साल में, हिंदू कुंभ मेले के साथ मकर संक्रांति मनाते हैं- दुनिया की सबसे बड़ी सामूहिक तीर्थयात्रा में से एक, इस आयोजन में अनुमानित 40 से 100 मिलियन लोग शामिल होते हैं। इस आयोजन में, वे सूर्य से प्रार्थना करते हैं और गंगा नदी और यमुना नदी के प्रयाग संगम पर स्नान करते हैं. यह परंपरा आदि शंकराचार्य ने प्रारंभ की थी। 

जुड़ी हुई हैं कई पौराणिक कथाएं

मकर संक्रांति के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था।

ऐसी है मान्यता…

भगवान विष्णु की असुरों पर जीत

इस दिन लाखों श्रद्धालु गंगा और पावन नदियों में स्नान कर दान करते हैं. मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का वध कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था. तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के रूप में मनाया जाता है

शनि से सूर्य के मिलन की कथा

देवी पुराण में बताया गया है कि सूर्य देव जब पहली बार अपने पुत्र शनि देव से मिलने गए थे, तक शनि देव ने उनको काला तिल भेंट किया था. उससे ही उनकी पूजा की थी. इससे सूर्य देव अत्यंत प्रसन्न हुए थे. फलस्वरूप शनि देव को आशीष दिया कि जब वे उनके घर मकर राशि में आएंगे, तो उनका घर धन-धान्य से भर जाएगा. मकर सं​क्रांति के अवसर पर जब सूर्य का शनि के घर में आगमन हुआ, तो उनका घर धन-धान्य से भर गया.

मकर संक्रांति और गंगा सागर

मान्यता है कि संक्रांति के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई गंगासागर तक पहुँची थी। धरती पर अवतरित होने के बाद राजा भागीरथ ने गंगा के पावन जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। इस दिन पर गंगा सागर पर नदी के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं।

श्रीकृष्ण का ये प्रसंग

माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि जो मनुष्य इस दिन अपने देह को त्याग देता है उसे मोक्ष की प्राप्ती होती है.

स्नान-दान का है पर्व

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ माना जाता है। माघ मेले में स्नान के लिए ये सबसे शुभ दिन माना गया है। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों में दान दिया जाता है।

इसलिए कहा जाता है देवायन

मकर संक्रांति के दिन देवलोक में भी दिन का आरंभ होता है। इसलिए इसे देवायन भी कहा जाता है।माना जाता है कि इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन से खरमास (पौष माह) के समाप्त होने के कारण रुके हुए शुभ कार्य जैसे कि विवाह, मुंडन, गृह निर्माण आदि मंगल कार्य पुन: शुरू हो जाते हैं।

शनि दोष से मुक्ति मिलती है 

 मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव का पुत्र शनि देव से मिलन होता है. धनु राशि से निकलकर सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति को सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं. जो लोग मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की आराधना करते हैं, उनको शनि दोष से मुक्ति मिलती है और उनका घर धन-धान्य से भर जाता है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य की चमक के आगे शनि देव तेजहीन हो जाते हैं, इसलिए इस दिन शनि का प्रभाव कम हो जाता है. सूर्य देव के शनि देव से मिलने की कथा देवी पुराण में बताई गई है. आइए जानते हैं उस कथा के बारे में और उन उपायों के बारे में जिनसे आप धन-धान्य प्राप्त कर सकते हैं.

धन-धान्य के लिए मंकर संक्रांति पर उपाय

1. मकर संक्रांति के दिन यदि आप काले तिल से सूर्य देव और शनि देव की पूजा करें, तो आप पर दोनों की कृपा होगी. आप पर शनि दोष कम होगा या शनि के दुष्प्रभाव में कमी आएगी. सुख समृद्धि बढ़ेगी.

2. मकर संक्रांति के अवसर पर आप यदि काले तिल से सूर्य देव की पूजा करें, तो आपका भी घर धन-धान्य से भर जाएगा, जिस प्रकार से शनि देव का घर भर गया था. इस दिन आपको स्नान के बाद साफ कपड़ा पहनना चाहिए.

उसके बाद तांबे के लोटे में पानी भर लें, उसमें काला तिल, अक्षत्, फूल और लाल चंदन डाल दें. फिर सूर्य मंत्र का जाप करते हुए उस जल को सूर्य देव को अर्पित कर दें. ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होंगे और आपको सुख, सौभाग्य का आशीर्वाद मिलेगा.

क्यों उड़ाते हैं इस दिन पतंग

माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में जाते ही शुभ समय की शुरुआत हो जाती है। इसलिए लोग शुभता की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए पतंग उड़ाते हैं। इस दिन आसमान में रंग बिरंगी पतंगे लहराती हुई नजर आती हैं। कई जगहों पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगताएं भी आयोजित की जाती हैl 

विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति

मकर संक्रांति के विभिन्न नाम जिनसे इसे देश के विभिन्न भागों में जाना जाता है, इस प्रकार हैं। वैसे तो इस त्योहार को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, लेकिन इस दिन के उत्सव और उत्सव एक-दूसरे से काफी मिलते-जुलते हैं।

असम- माघ बिहु

पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश- माघी  

मध्य भारत- सुकराती

तमिलनाडु- थाई पोंगल

गुजरात, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश- उत्तरायण

उत्तराखंड- घुघुती

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना- संक्रांति

ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल- मकर संक्रांति

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश- खिचड़ी संक्रांति

पश्चिम बंगाल- पौष संक्रांति

कश्मीर- शिशूर संक्रांति

त्रिपुरा- हंगराइ

इस दिन, तमिल किसान और तमिल लोग सूर्य देव सूर्य नारायणन का सम्मान करते हैं । ऐसा तब होता है जब सूर्य मकर राशि (मकर) में प्रवेश करता है । थाई पोंगल त्योहार जनवरी के मध्य, या में मनाया जाता है.थाई पोंगल त्योहार धान की फसल के कटाई के समय मनाया जाता है.

न केवल भारत, बल्कि यह दिन अन्य देशों के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। दक्षिण एशियाई देश जैसे नेपाल (माघी संक्रांति), पाकिस्तान (तिर्मूरी), सिंगापुर और मलेशिया (उझावर थिरुनल), सोंगक्रान (थाईलैंड), कंबोडिया (मोहन सोंगक्रान) आदि मकर संक्रांति पर्व भी मनाते हैं।

बांग्लादेश   

शकरेन बांग्लादेश में सर्दियों का एक वार्षिक उत्सव है , जिसे पतंग उड़ाने के साथ मनाया जाता है । 

नेपाल

माघे संक्रांति (नेपाली: माघे संक्रांति, मथिली: माघी, नेपाल भाषा: घ्यःचाकुल संक्रांति) एक नेपाली त्योहार है जो विक्रम संबत (बीएस) कैलेंडर (लगभग 14 जनवरी) में माघ के पहले दिन मनाया जाता है । थारू लोग इस खास दिन को नए साल के रूप में मनाते हैं। इसे मागर समुदाय का प्रमुख सरकार घोषित वार्षिक उत्सव भी माना जाता है । 

इस त्योहार के दौरान हिंदू स्नान करते हैं। इनमें पाटन के पास बागमती के पास शंखमूल; त्रिवेणी, पर गंडकी / नारायणी नदी बेसिन में देवघाट के पास चितवन घाटी और रिडी के पास कालीगंडकी पर; और  कोशी नदी बेसिन में दोलाल के सूर्य कोशी । 

लड्डू, घी और शकरकंद वितरित किए जाते हैं। हर घर की मां परिवार के सभी सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती है। 

पाकिस्तान (सिंध)   

इस त्यौहार के दिन सिंधी माता-पिता अपनी विवाहित बेटियों को तिल के लड्डू और चिकी भेजते हैं। भारत में सिंधी समुदाय भी मकर संक्रांति को तिर्मूरी के रूप में मनाते हैं जिसमें माता-पिता अपनी बेटियों को मीठे व्यंजन भेजते हैं। 

खिचड़ी संक्रांति

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति के दिन चावल की खिचड़ी खाने की परम्परा है.

बाबा गोरखनाथ का दिया हुआ नाम है 'खिचड़ी'

ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से ही शुरू हो गई थी। देश में जब खिलजी ने आक्रमण किया तो नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन तैयार करने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे-प्यासे युद्ध के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियां एक साथ पकाने की सलाह दी थी। यह खाना जल्दी तैयार हो जाता था और योगियों का पेट भी भर जाता था और साथ में काफी पौष्टिक भी होता था।

तत्काल तैयार किए जाने वाले इस व्यंजन का नाम खिचड़ी बाबा गोरखनाथ ने रखा था। खिलजी से मुक्त होने के बाद योगियों ने जब मकर संक्रांति पर्व मनाया था तो उस दिन सभी को खिचड़ी का ही वितरण किया गया था। तभी से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हो गई। गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी मेले का आयोजन हर साल होता है और प्रसाद के रूप में खिचड़ी ही बांटी जाती है। श्रधालु मंदिर में चावल एवं उड़द की दाल दान देते हैं.

खिचड़ी का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर मिलने जाते हैं। ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबंधित माना गया है। ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनि देव और सूर्यदेव दोनों प्रसन्न होते हैं। चावल को चंद्रमा, शुक्र को नमक, बृहस्पति को हल्दी, बुध को हरी सब्जी का कारक माना गया है। वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबंध मंगल से है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में लगभग सभी ग्रहों की स्थिति में सुधार होता है।

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. लेखक इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.

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