शनिवार, 9 अप्रैल 2022

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम

 



मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया।


चैत्र कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्यापुरी में राजा दशरथ के घर में भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। श्री राम जी माता का नाम कौशल्या था.लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न उनके भाई थे। हर साथ चैत्र कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन राम नवमी का पर्व बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। इस साल 10 अप्रैल, 2022 को राम नवमी मनाई जाएगी। जिस दिन अयोध्या में माता कौशल्या की कोख से भगवान राम का जन्म हुआ था, उस दिन चारों ओर हर्षों- उल्लास का माहौल था। आइए जानते हैं श्री राम जन्मोत्स की खास बातें…


धार्मिक पुराणों के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था, जिसके बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। राम उनके सबसे बड़े पुत्र थे।

श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में, दोपहर के समय में हुआ था जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे और उस सम अभिजीत महूर्त था।

भगवान श्री राम के जन्म के समय शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रही थी। देवता और संत खुशियां मना रहे थे। सभी पवित्र नदियां अमृत की धारा बहा रही थीं।

भगवान के जन्म के बाद ब्रह्माजी के साथ सभी देवता विमान सजा-सजाकर अयोध्या पहुंच गए थे। आकाश देवताओं के समूहों से भर गया था। 

संपूर्ण नगर में उत्सव का माहौल हो गया था। राजा दशरथ आनंदित थे। सभी रानियां आनंद में मग्न थीं। राजा ने ब्राह्मणों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया॥

 भगवान के प्रकट होने के बाद घर-घर मंगलमय बधावा बजने लगा। नगरवासी जहां- तहां नाचने गाने लगे। संपूर्ण नगरवासियों ने भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया।


तुलसीदास ने श्री राम के जन्म का रामचरितमानस में बहुत सुन्दर वर्णन किया है.


भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..


करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता 


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै 

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै 


उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा 

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा 


गुरुकुल में शिक्षा 

श्री राम और उनके तीनो भाई भरत , लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने गुरु वशिष्ट के गुरुकुल में शिक्षा पाई। चारो भाई वेदों उपनिषदों  के बहुत बड़े ज्ञाता बन गये।


गुरुकुल में अच्छे मानवीय और सामाजिक गुणों का उनमे संचार हुआ। अपने अच्छे गुणों और ज्ञान प्राप्ति की ललक से वे सभी अपने गुरुओ के प्रिय बन गये।


 आधुनिक कैलेंडर के अनुसार कब पैदा हुए थे भगवान राम? –

आधुनिक कैलेंडर के अनुसार राम भगवान  ईसा पूर्व 5114 में पैदा हुए थे। अगर आज से हिसाब लगाया जाये तो 5114+2016=7130 दिव्या साल पहले राम भगवान  पैदा हुए थे।


यह शोध महार्षि वाल्मीकि की रामायण में  उल्लेखित उनके जन्म के आधार पर किया गया है. राम भगवान पर यह शोध वैज्ञानिक संस्था “आई” ने किया है।


इस शोध में मुख्य भूमिका अशोक भटनागर, कुलभूषण मिश्र और सरोज बाला ने निभाई है। इनके अनुसार 10 जनवरी 5114 को भगवान राम का जन्म  हुआ था। हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 7323 ईसा पूर्व हुआ था।


क्या भगवान राम की बहन शान्ता है?

 

भगवान श्रीराम से जुड़े हर किस्से से लोग परिचित हैं. रामायण के सारे चरित्रों के बारे में भी लगभग सभी लोग जानते हैं. सबको पता है कि भगवान राम के 3 भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान राम की एक बहन भी थी जिनका नाम शांता था. रामायण में भी शांता का बहुत कम जिक्र है. शांता इन चारों भाइयों की बड़ी बहन थीं. 

 

शांता का जिक्र बाल्मीकि रामायण में  है. वह राजा दशरथ और कौशल्या की बेटी थीं जिन्हें वर्षिणी और उनके पति रोमपद ने गोद लिया था. शांता ऋषि श्रृंग की पत्नी थीं. शांता और ऋषि श्रृंग के वंशज सेंगर राजपूत हैं जिन्हें एकमात्र ऋषि वंशी राजपूत कहा जाता है. शांता महाराजा दशरथ और कौशल्या की बेटी थीं, जिन्हें अंग देश के राजा रोमपद और कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी ने गोद लिया था. वर्षिणी की कोई संतान नहीं थी. एक बार वर्षिणी अपने पति के साथ अपनी बहन से मिलने अयोध्या आई थीं. वर्षिणी ने मजाक में शांता को गोद लेने की इच्छा जताई. वर्षिणी की ये बात सुनकर राजा दशरथ ने उन्हें अपनी बेटी शांता को गोद देने का वचन दे दिया और इस तरह शांता अंग देश की राजकुमारी बन गईं.

 

क्या भगवान राम की बहन शान्ता है? – प्रमाण वाल्मीकि रामायण

 

हम आपको वाल्मीकि रामायण के द्वारा बतायेगे की राम की बहन शांता हैं। ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) के जन्म, जीवन, शान्ता से विवाह और राजा रोमपाद की कथा को वाल्मीकि जी ने अपने रामायण बालकाण्ड नवम: सर्ग – १.९.२ – २० में संछेप में और विस्तार से बालकाण्ड दस और ग्यारह सर्ग में लिखा है। इसमें राम की बहन शान्ता का प्रकरण है, जिसमे सुमन्त्र जी दशरथ जी को बताते है कि कैसे राजा रोमपाद की वजह से उनके वर्षा नहीं होने के कारण उन्होंने श्रृंगी ऋषि को बुलाया और शान्ता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कर दिया। यह है प्रमाण राम की बहन शान्ता का

 

धृष्टिर् जयन्तो विजयो सुराष्ट्रो राष्ट्र वर्धनः।

अकोपो धर्मपालः च सुमंत्रः च अष्टमो अर्थवित्॥ १-७-३

भावार्थ – अयोध्या के महाराज दशरथ के आठ कूटनीतिक मंत्रि थे। उनके नाम इस प्रकार है – घृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप, धर्मपाल और आठवें सुमन्त्र जो अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे।

 

एतत् श्रुत्वा रहः सूतो राजानम् इदम् अब्रवीत्।

श्रूयताम् तत् पुरा वृत्तम् पुराणे च मया श्रुतम्॥ १-९-१

भावार्थ – राजा दशरथ पुत्र के लिए अश्वमेध यज्ञ करने की बात सुनकर सुमन्त्र ने राज दशरथ से एकान्त में कहा – ‘महाराज! एक पुराना इतिहास सुनिये। मैंने पुराणमें भी इसका वर्णन सुना है।’

 

सुमन्त्र जी ने ऋष्यश्रृंग या श्रृंगी ऋषि के बारे में बताते हुए कहा कि

 

एवम् अङ्गाधिपेन एव गणिकाभिः ऋषेः सुतः।

आनीतोऽवर्षयत् देव शान्ता च अस्मै प्रदीयते॥ १-९-१८

भावार्थ – उनके (श्रृंगी ऋषि के) आते ही इंद्रदेव उस राज्य में वर्षा करेंगे। फिर राजा उन्हें अपनी पुत्री शान्ता समर्पित कर देते।

 

ऋष्यशृङ्गः तु जामाता पुत्रान् तव विधास्यति। १-९-१९

भावार्थ – इस तरह ऋष्यश्रृंग आपके (दशरथ के) जामाता (दामाद) हुए। वे ही आपके लिए पुत्रों को सुलभ कराने वाले यज्ञ कर्म का सम्पादन करेंगे।

 

यही श्लोक को मुख्य आधार मानकर शान्ता को राम की बहन बताया जाता है।

अर्थात यहाँ पर स्पस्ट बोल रहे है सुमन्त्र जी की ऋष्यश्रृंग दशरथ के दामाद हैं। तो दामाद कहने का तात्पर्य यही हुआ कि राजा दशरथ की पुत्री का विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ है और श्रृंगी ऋषि की पत्नी शान्ता है। अस्तु, तो यही आधार को मानकर राम की बहन शांता को कहा जाता है और यह बात सत्य भी है कि राम की बहन शांता थी। लेकिन तुलसीदास जी ने यह प्रकरण को रामचरितमानस में नहीं लिखा

 

हिमाचल के कुल्लू में शृंग ऋषि के मंदिर में भगवान राम की बड़ी बहन शांता की पूजा होती है। यह मंदिर कुल्लू से 50 कि.मी दूर बना हुआ है। यहां देवी शांता की प्रतिमा भी स्थापित है, इस मंदिर में देवी शांता और उनके पति शृंग ऋषि की साथ में पूजा होती है। दोनों की पूजा के लिए कई जगहों से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। शांता देवी के इस मंदिर में जो भी भक्त देवी शांता और शृंग ऋषि की सच्चे मन से पूजा करता है उसे भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आपको बता दें की देवी शांता के मंदिर में दशहरा बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

 

भगवान राम के अनेक नाम


बाकी राघव, रघुनंदन, रघुपति, रामचंद्र, जानकीनाथ, जानकीनाथ, कौशल्या नंदन, राघवेंद्र इत्यादि अनेक नाम हैं।


श्रीराम का एक नाम “निरंजन” भी है जिसका मतलब है ये सभी नामों से परे हैं।


भगवान श्रीराम का ननिहाल

 

भगवान श्रीराम की माता कौशल्या, कौशल प्रदेश की राजकुमारी थीं। माता कैकेयी की तरह माता कौशल्या का नाम भी उनके प्रदेश पर आधारित था। उनके पिता का नाम सुकौशल और माता का नाम अमृतप्रभा था। कौशल प्रदेश कहां स्थित है। इतिहासकारों एवं विद्वानों ने अलग-अलग वर्णन किया है। कुछ लोग इसे वर्तमान छत्तीसगढ़ मानते हैं तो कुछ इतिहासकार उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का क्षेत्र। एक हिंदू ग्रंथ में दक्षिण भारत (ओडिशा) का भी उल्लेख है लेकिन एक चीज सामान है और वह यह कि कौशल प्रदेश एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी देश था।

 

भगवान पुरुषोत्तम श्री राम का शारीरिक वर्णन

 

भगवान पुरुषोत्तम श्री राम की आंखें एवं चेहरे और कैसी थी उनकी आवाज। इन सब कि हम सब मात्र कल्पना ही कर सकते हैं परंतु रामायण में वाल्मीकि ने भगवान राम के मानव शरीर को जिस प्रकार वर्णन किया है, उसको पढ़कर आपने मन में बनी भगवान राम की धुंधली छवि बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी।


भगवान राम को त्रिशीर्षवान के नाम से भी जाना जाता है। रामायण के अनुसार इसका मतलब सिर में तीन आवृत होता है। तीन लक्षणों से युक्त होना भी इसका अर्थ होता है। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख के अनुसार राम के सिर के बाल लंबे थे।


भगवान राम की सुंदरता को वाल्मीकि ने शुभानन के रुप मे साझा किया। राम के मुख की कोमलता और सुंदरता को व्यक्त करने के लिए चेहरे की उपमा चंद्रज्योत्सना और बालचंद्र से तुलना की गई हैं ।


कमल की तरह विशाल आंखें थी भगवान श्री राम के आंखों में नजर मिलाने से हर कोई मोहित हो जाते थे । आंखों के कोणों के ताम्र रंग को ताम्राक्ष और लोहिताश के रूप में बाल्मीकि ने प्रकाश किया गया है।


भगवान राम चंद्र को महानासिका वाला भी कहा गया है। नासिका की महत्ता से अभिप्राय उन्नत और दीर्घ नासिका चेहरे पर चमक दिखाता है ।


राम के कानों के लिए टीकारों ने चतुर्दशसमद्वन्द और दशवृहत् का प्रयोग किया है। जिसका अर्थ होता है कानों का सम और बड़ा होना। वहीं वाल्मीकि ने उनके कानों के लिए शुभ कुंडलों का प्रयोग किया था।


भगवान राम के हाथ के अंगूठे में चारों वेदों की प्राप्तिसूचक रेखा थी, जिससे उन्हें चतुष्फल कहा जाता है और उनके हाथ जिसके सिर पर होते थे उनका जीवन सुखमय होता था।


उदर व नाभि रामायण ग्रंथ के अनुसार तीन रेखाओं से युक्त था।


राम के सम और कमल के समान चरणों के लिए टीकाकरों ने चतुर्दशसमद्वन्द्व और दशपदम विश्लेषण का प्रयोग किया था।


रामायण के अनुसार वाल्मीकि ने उल्लेख किया कि जो रंग इस जगत में ना के बराबर वही रंग के प्रभु श्री राम थे ।उनके शरीर नीला और काला के थे । जहां किसी आम इंसान के ऐसे रंग दिखाई नहीं देंगे फोटो में जिस प्रकार आपको दिखाई देते हैं ठीक उसी तरह ही भगवान श्री राम के रंग था ।


रामायण के अनुसार भगवान राम की लंबाई लगभग 6 से 7 फिट के भीतर थे ।


भगवान राम का  विवाह

 

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जनक दुलारी माता सीता और भगवान राम का विवाह हुआ था। इस तिथि को शास्त्रों में विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। भगवान राम और माता सीता का विवाह रामायण का मुख्य भाग है। बताया जाता है कि जब राम और सीता का विवाह हुआ था, तब तीन लोकों में देवी-देवता झूम उठे थे। उनकी जैसी जोड़ी वाला तीनों लोकों में कोई नहीं था। विवाह के बाद से ही माता सीता के जीवन में सुख-दुख की धूप-छांव शुरू हो गई थी। माता सीता को हमेशा पतिव्रत और उच्चतम चरित्र वाली महिला के रूप में पूजा जाता है। 

 

राम का बनवास


रामायण की सबसे बड़ी घटना भगवान राम का वनवास जाना है। रामायण के अनुसार, माता कैकेयी ने महाराज दशरथ से भगवान राम के लिए 14 वर्षों के लिए वनवास मांगा. जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास हुआ तो वे अकेले ही वनवास जाना चाहते थे। लेकिन माता सीता ने उनके साथ चलने का निर्णय लिया। ये माता सीता का स्वतंत्र निर्णय था।


राजा के रूप में राम के आदर्श 

 

भगवान राम के एक आदर्श राजा के स्वरुप की झलक तब दिखाई देती है. जब पिता से जंगल में जाने का आदेश प्राप्त होने के बाद भगवान राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता समेत वन के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. 

लेकिन जब ननिहाल से लौटे भाई भरत को बड़े भैया के वन गमन का पता चलता है तो वह भागते हुए उनके पीछे जाते हैं. तब जगत प्रसिद्ध भरत मिलाप होता है. उस समय भगवान राम ने भरत के राज्य व्यवस्था के संबंध में कुछ सवाल पूछे. जो आज भी आदर्श हैं 

 

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक भगवान ने कहा-

 

कच्चिद्देवान् पितृन् भृत्यान गुरून् पितृसमानपि|

वृद्धाश्च तात वैघाश्चं ब्राह्नाणाश्चाभिमन्यसे|| (अयोध्या कांड)

 

कच्चित्सहस्न्नान् मूर्खणामेकमिच्छसि पण्डितम्|

पण्डितो हार्थकृच्छेषु कुयार्निन्न: श्रेयसं महत्|| (अयोध्या कांड)

 

बुजुर्गों का सम्मान


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवन राम अपने भाई भरत से कहते हैं कि –

 

हे भरत, तुम अपने राज्य में विद्वानों रक्षकों नौकरों गुरुओं पिता के समान पूज्य बड़े बूढ़ों चिकित्सकों विद्वानों का सत्कार तो करते हो.

 

हे !भाई तुम बाण और अस्त्र विद्या में निपुण तथा नीतिशास्त्र विशारद धनुर्वेद के आचार्यों का आदर सत्कार तो करते हो.

 

इन दोनों उक्तियों में भगवान राम अपने भाई भरत को बुजुर्गों का सम्मान करने का निर्देश दे रहे हैं. क्योंकि उनके आशीर्वाद से ही राज्य का संचालन सुचारु रूप से संभव है.

 

 

राज्य व्यवस्था के लिए निर्देश

 

भगवान राम ने भरत क मंत्रियों और सेनापति के चुनाव के लिए कुछ इस प्रकार निर्देश दिए. जो कि आज भी उतने ही आवश्यक हैं-

 

भगवान ने पूछा हे तात, क्या तुमने अपने सामान विश्वसनीय वीर नीतिशास्त्र के जाने वाले लोभ में न फंसने वाले प्रमाणिक कुल उत्पन्न और संकेत को समझने वाले व्यक्तियों को मंत्री बनाया है.

 

क्योंकि, हे राघव मंत्रणा को धारण करने वाले नीतिशास्त्र विशारद सचिवों के द्वारा गुप्त रखी हुई मंत्रणा हीं राजाओं की विजय का मूल होती है. तुम अकेले तो किसी बात का निर्णय नहीं कर लेते तुम्हारा विचार कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व दूसरे राजाओं को विदित तो नहीं हो जाता.

 

इन पंक्तियों ने भगवान ने राजा के लिए एकाधिकार की व्यवस्था को त्याज्य बताया है. उनके मुताबिक मंत्रियों और दूसरे विद्वानों की सलाह से शासन चलाना ही सर्वोत्तम है.

 

 

भगवान आगे कहते हैं. हे भरत, तुम हजार मूर्खों की अपेक्षा एक बुद्धिमान परामर्शदाता को रखना अच्छा समझते हो ना? क्योंकि संकट के समय बुद्धिमान व्यक्ति महान कल्याण करता है.

 

राज्य में शांति के लिए सेना संबंधित भगवान के निर्देश

भगवान श्रीराम के आगे के वचन राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेहद जरुरी हैं. प्रभु राम अपने भाई भरत से कहते हैं कि

 

हे केकईनंदन, तुम्हारे राज्य में उग्र दंड से उत्तेजित प्रजा तुम्हारा अथवा तुम्हारे मंत्रियों का अपमान तो नहीं करती?

 

हे भरत. क्या तुमने व्यवहार कुशल सूर बुद्धिमान धीर पवित्र स्वामी भक्त और कर्म कुशल व्यक्ति को अपना सेना अध्यक्ष बनाया है?

 

तुम्हारी सेना में जो अत्यंत बलवान युद्ध विद्या में निपुण सुपरीक्षित और पराक्रमी सैनिक है उन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करते हो या नहीं उनका उत्साहवर्धन करते हो या नहीं? तुम सेना के लोगों को कार्य अनुरूप भोजन और वेतन जो उचित परिमाण में और उचित काल में देना चाहिए उसे यथा समय देने में विलंब तो नहीं करते.

 

राज्यकर्मियों को समय पर वेतन देने का निर्देश

भगवान राम ने राज्य की सुचारु व्यवस्था के लिए कर्मचारियों को समय पर वेतन देने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि

हे भरत, राज कर्मचारियों का वेतन ठीक समय पर ना मिलने से राज्य कर्मचारी लोग विरुद्ध होते हैं और स्वामी की निंदा करते हैं. राज्य कर्मचारियों का ऐसा करना भारी अनर्थ की बात समझी जाती है.

 

हे भरत! तुम्हारी गुप्तचर व्यवस्था तो अचूक है या नहीं ?

 

हे राघव! पापी लोगों से रहित मेरे पूर्वजों के द्वारा सुरक्षित तथा समृद्ध कौशल देश सुखी तो है या नहीं?

 

प्रजा हित के लिए निर्देश

 

भगवान राम ने भाई भरत को प्रजा के हित को सर्वोपरि रखने का आदेश दिया. भगवान अपने श्रीमुख से कहते हैं कि

हे भरत, पशुपालन कृषि आदि में लगे हुए तुम्हारी सब प्रजा सुखी तो है ना लेन-देन के कार्य में लिप्त रहकर ही वैश्य लोग धन-धान्य से युक्त होते हैं ना?

 

हे भरत, तुम प्रतिदिन प्रात: काल उठकर और सब प्रकार से सुभाषित होकर दोपहर से पहले ही सभा में जाकर प्रजा से मिलते हो या नहीं?

 

हे भरत, तुम्हारी आय अधिक और खर्च न्यून है ना? तुम्हारे कोश का धन नाच-गाने वालों में तो नहीं ले लुटाया जाता? तुम्हारे राज्य में घूस लेकर अपराधियों को छोड़ तो नहीं दिया जाता? अमीर और गरीब का झगड़ा होने पर तुम्हारे मंत्री लोभ रहित होकर दोनों का मुकदमा न्याय पूर्वक निपट आते हैं या नहीं?

 

हे भरत, झूठे अपराधों के कारण दंडित लोगों को आंखों से गिरने वाले आंसू अपने भोग विलास के लिए शासन करने वाले राजा उसके पुत्र राज्य कर्मचारियों और उसके पशुओं का नाश कर डालते हैं.

 

अयोध्या कांड का यह प्रसंग भगवान राम के एक राजा के रूप में उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करता है. हालांकि इस प्रसंग के बाद उन्हें राजा के रुप में सत्ता संभालने में पूरे 14 वर्ष लग गए. लेकिन समय गवाह कि भगवान राम ने जब शासन संभाला तो वह उस समय सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ शासन था. जिसमें कोई दुखी नहीं था.यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम के उज्जवल चरित्र का प्रभाव था.

 

महर्षि वाल्मीकि का राम राज्य-


 वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के अभिषेक के बाद युद्ध कांड में राम राज्य का वर्णन है:


न पर्यदेवन्विधवा न च व्यालकृतं भयम् |


न व्याधिजं भयन् वापि रामे राज्यं प्रशासति || 


निर्दस्युरभवल्लोको नानर्थः कन् चिदस्पृशत् |


न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते || 


सर्वं मुदितमेवासीत्सर्वो धर्मपरोअभवत् |


राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिन्सन्परस्परम् || 


आसन्वर्षसहस्राणि तथा पुत्रसहस्रिणः |


निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति || 


रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथाः |


रामभूतं जगाभूद्रामे राज्यं प्रशासति || 


नित्यपुष्पा नित्यफलास्तरवः स्कन्धविस्तृताः |


कालवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः || 


ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः |


स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्ठाः स्वैरेव कर्मभिः || 


आसन् प्रजा धर्मपरा रामे शासति नानृताः |


सर्वे लक्षणसम्पन्नाः सर्वे धर्मपरायणाः ||


दशवर्षसहस्राणि रामो राज्यमकारयत्


अनुवाद- जब राम शासन कर रहे थे, तो दुख में डूबी कोई विधवा नहीं थी, न ही जंगली जानवरों से कोई खतरा था, न किसी का बीमारी का डर। संसार चोरी और लूट से बचा हुआ था। किसी को निरर्थकता का एहसास नहीं था और वृद्ध लोगों को युवाओं का अंतिम संस्कार नहीं करना पड़ा। हर प्राणी सुखी था। सभी सदाचार में विश्वास करते थे। सिर्फ राम को देखकर ही प्राणी हिंसक प्रवृतियां छोड़ देते थे। जब राम शासन कर रहे थे, लोग अपने हजारों वंशजों के साथ हजार सालों तक जीवित रहे, किसी को कोई बीमारी और दुख नहीं था। जब राम ने शासन किया, तो लोगों की बातचीत राम पर ही केन्द्रित थी, राम और सिर्फ राम। संसार राम का संसार हो गया था। बिना कीड़े-मकौड़ों के पेड़ों पर फूल और फल लगातार लगे रहते थे। समय पर बरसात होती थी और हवाएं मन को प्रसन्न कर देती थी। ब्राह्म्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे थे। वे अपने काम से खुश थे और उनके मन में कोई लालच नहीं था। जब राम शासन कर रहे थे, लोग सदाचार में विश्वास करते थे और बिना झूठ बोले जी रहे थे। सारे लोगों का चरित्र बहुत अच्छा था। सभी लोग परोपकार के काम में लगे हुए थे। राम दस हजारों सालों तक राज-काज के काम में लगे रहे।


भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम क्यों कहते हैं.

इस देश के लोग श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहते हैं। अर्थात वह मनुष्य जो मर्यादा बना सकता है। भगवान राम उसकी अंतिम सीमा थे। वह पुरुष भी उत्तम थे और उनकी मर्यादाएं भी उत्तम थीं। उन्होंने मानव मात्र के लिए मर्यादा पालन का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह संसार के इतिहास में कहीं और नहीं मिल सकता।


उन्होंने अपना पहला आदर्श आज्ञाकारी पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया। उनके पिता राजा दशरथ अपनी रानी कैकेर्यी से वचनबद्ध थे। रानी कैकेयी ने ठीक उस समय जब राम का राज्याभिषेक होने वाला था, राम को वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राजतिलक की मांग कर दी।


दशरथ नहीं चाहते थे परंतु अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए राम ने एक पल में राजपाट को त्याग दिया और वनवासी बनकर वनों को चले गए। पूरे चौदह वर्ष उन्होंने वन में बिताए। ऐसा आदर्श कौन प्रस्तुत कर सकता है। संसार में जितने भी युद्ध और लड़ाइयां अब तक हुई हैं वे राज प्राप्ति के लिए हुई हैं परंतु भगवान राम ने जो आदर्श प्रस्तुत किया उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकते।


दूसरा आदर्श उन्होंने एक आदर्श भाई का प्रस्तुत किया। यद्यपि भरत की माता कैकेयी ने उन्हें राजपाट के बदले वनवास दिलाया था परंतु श्रीराम ने भरत से न ईर्ष्या की और न द्वेष। वह निरंतर भरत के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करते रहे और उसे राज-काज संभालने की प्रेरणा देते रहे। उन्होंने उसे कभी अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के द्वारा स्थापित आदर्श भातृ-प्रेम के आदर्श को अपनाकर हम उनसे प्रेरणा ले सकते हैं।


तीसरा आदर्श उन्होंने आदर्श पति का प्रस्तुत किया। वह चौदह वर्ष वनों में वनवासी होकर रहे और वनों में रहने वाले ऋषियों-मुनियों की सेवा का व्रत लिया। जो राक्षस ऋषियों के यज्ञ में विघ्न डालते थे उन राक्षसों का संहार किया। इस काल में उन्होंने गृहस्थ की चिंता नहीं की अपितु अपनी संपूर्ण शक्ति को राक्षसों का संहार करने के लिए लगाया। 


रावण ने जब उनकी धर्मपत्नी सीता जी अपहरण करने का दु:स्साहस किया तो भगवान श्रीराम ने इस दुष्कृत्य के लिए रावण का सर्वनाश कर दिया।


।। श्री राम के जप मन्त्र ।।


1. ॐ राम ॐ राम ॐ राम ।


2. ह्रीं राम ह्रीं राम ।


3. श्रीं राम श्रीं राम ।


4. क्लीं राम क्लीं राम ।


5. फ़ट् राम फ़ट् ।


6. रामाय नमः ।


7. श्री रामचन्द्राय नमः ।


8. श्री राम शरणं मम् ।


9. ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा ।


10. श्री राम जय राम जय जय राम ।


11. राम राम राम राम रामाय राम ।


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चैत्र राम नवमी


 राम नवमी – चैत्र


चैत्र महीने में नवरात्र के नवें दिन रामनवमी मनाई जाती है।  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम के जन्मदिन यानी रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है।  इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ के यहां हुआ था।


भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। भगवान श्रीराम को विष्णु का अवतार कहा गया है। त्रेतायुग में अयोध्या के महाराजा दशरथ के घर में माता कौशल्या ने भगवान श्री राम को जन्म दिया था।

राम चरित मानस में भगवान श्री राम के चरित्र का तुलसीदास ने बखान किया है। 

हिंदू शास्त्र के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 12 बजे दिन में हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धरती पर एक बार फिर धर्म की स्थापना करने के लिये भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. मान्यताओं के अनुसार श्रीराम चन्द्र का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में राजा दशरथ के घर अयोध्या में हुआ था. रामनवमी का त्योहार राम जन्मोत्सव के तौर पर देशभर में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है.

तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना राम नवमी के दिन से ही शुरू की थी।


तुलसीदास ने रामचरितमानस में प्रभु श्रीराम के जन्म का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है.


भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..


करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता 


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै 

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै 


उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा 

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा


अयोध्या में भगवान राम का जन्म होने वाला था तब समस्त अयोध्या नगरी में शुभ शकुन होने लगे। भगवान राम का जन्म होने पर अयोध्या नगरी में खुशी का माहौल हो गया। चारों ओर मंगल गान होने लगा था।


ऐसी मान्यता है, कि रामनवमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना करने से जीवन के जितने भी विघ्न-बाधाएं है, वह हमेशा के लिए दूर हो जाती है और घर में शांति बनी रहती है। यदि आप भगवान श्री राम की का आशीर्वाद जीवन में सदैव बनाएं रखना चाहते है, तो राम नवमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना जरूर करें। 


रामनवमी की पूजा विधि

रामनवमी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें. पूजा स्थान पर पूजन सामग्री के साथ आसान लगाकर बैठें. भगवान श्रीराम की पूजा में तुलसी का पत्ता होना अनिवार्य है क्योंकि श्रीराम विष्णु जी के अवतार हैं और भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है. राम जी की पूजा में तुलसी के प्रयोग से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं. उसके बाद रोली, चंदन, धूप और गंध से रामजी की पूजा करें. दीपक जलाएं, सभी देवी-देवताओं का ध्यान लगाएं और आरती करें. फिर श्रीराम को मिष्ठान, फल, फूल आदि अर्पित करें. इसके बाद मंत्रों का जाप करें और हवन भी करें. इस दिन रामनवमी की पूजा के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ जरूर करें. इसे पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है.

प्रभु श्री राम की आरती करें और रामायण जी की आरती करें।

श्रीराम के सबसे प्रिय पदार्थ खीर और फल-मूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।

इस दिन भगवान श्री राम को भोग अर्पित करें और सभी में वितरित करें।

गरीबों को दान दें और प्रसाद वितरण करें।

 पूजा के बाद घर की सबसे छोटी महिला अथवा लड़की को घर में सभी जनों के माथे पर तिलक लगाना चाहिए। 

 

विस्तार से पूजन विधि 

 

प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर, स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। साथ में श्रीराम दरबार की तस्वीर सजाएं। 

 

श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दे।



 

पवित्रीकरण:-

हाथ में जल ले कर निम्न मंत्र पढ़ते हुए जल अपने ऊपर छिड़क कर अपने आप को पवित्र कर लें।

 

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥


पृथ्वी पूजा:-

मन ही मन पृथ्वी मां को प्रणाम करते हुए निम्न मंत्र पढ़ें

:- ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः


आचमन :-

चम्मच से तीन बार एक- एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़ते हुए, दिए हुए मंत्र का उच्चारण कीजिए -

 

ॐ केशवाय नमः

ॐ नारायणाय नमः

ॐ वासुदेवाय नमः

 

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछ लें। इसक बाद शुद्ध जल से हाथ धो लें.


संकल्प :-

अब संकल्प करें। संकल्प के लिए दायें हाथ में गंगाजल(गंगाजल न हो तो शुद्ध जल में तुलसी पत्र डाल दें), फूल, अक्षत, पान(डंडी सहित),सुपारी,कुछ सिक्के हाथ में लेकर मंत्र के द्वारा रामनवमी पूजा का संकल्प करें :-

 

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे चैत्रमासे शुक्लपक्षे नवमीतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं रामनवमी पूजा करिष्ये। 

उक्त संकल्प के बाद जल को भूमि पर छोड़ दें।


गणेश पूजा:-

इसके बाद चौकी पर चावल का ढेर रखकर, उसपर गणेश जी की मूर्ति (यदि मूर्ति ना हो तो सुपारी पर मौली लपेट कर गणेश जी के रूप में रखें) स्थापित करें। अब पंचोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें। धूप,दीप, अक्षत,चंदन/सिंदूर एवं नैवेद्य समर्पित करते हुए गणेश जी की पूजा करें।


गुरु वंदना:-

दोनों हाथ जोड़कर अपने गुरु को नमन करें।

 

कलश पूजन:-

मिट्टी के कलश में जल भर लें। उसमें दूर्वा, कुछ सिक्के,अक्षत डालें एवं गंगाजल मिलाएं। आम का पल्लव डाल कर उसके ऊपर लाल कपड़े में नारियल लपेट कर रखें। चावलसे चौकी के पास अष्टदल कमल बनाएं। अष्टदल कमल पर कलश को रखें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। 

 

धूप, दीप, अक्षत, चंदन, नैवेद्य समर्पित करत हुए कलश की पूजा करें। दोनों हाथ जोड़कर कलश को प्रणाम करें...

 

ध्यान:-

दोनों हाथ जोड़कर श्री रामचंद्रजी का ध्यान करते हुए श्रीराम का श्लोक पढ़ें:-

राम रामेति रमेति रमे रामे मनोरमे

सहस्त्र नाम ततुल्यं राम नामं वारानने


आवाहन:-

भगवान श्रीरामचंद्र जी का आवाहन करें:-

हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर भगवान राम को आसन समर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर श्रीराम जी को पैर धोने के लिए जल समर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर अभिषेक के लिए श्रीरामजी को जल अर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर आचमन के लिए श्रीरामजी को जल अर्पित करें।

चम्मच में दूध तथा मधु लेकर श्रीराम जी को अर्पित करें।

पुष्प से स्नान के लिए श्रीराम जी को जल समर्पित करें।


पंचामृत स्नान:-

दुग्ध स्नान- पुष्प से दुग्ध स्नान के लिए श्रीराम जी को दूध समर्पित करें, उसक बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

दधि स्नान

पुष्प से दही स्नान के लिए श्रीराम जी को दही समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

घृतं स्नान

पुष्प से घृत स्नान के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए श्रीराम जी को घी समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

मधु स्नान

पुष्प से मधु स्नान के लिए श्रीराम जी को शहद समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

शर्करा स्नान

पुष्प से शर्करा स्नान के लिए श्रीराम जी को शर्करा समर्पित करें।

 

शुद्धोदक स्नान

पुष्प से शुद्ध जल लेकर शुद्धोदक स्नान के लिए श्रीराम जी को जल समर्पित करें।

 

वस्त्र:

हाथ में पीला वस्त्र लेकर श्रीराम जी को वस्त्र समर्पित करें।

 

यज्ञोपवित:- 

हाथ में यज्ञोपवित लेकर श्रीराम जी को यज्ञोपवित समर्पित करें।

 

गंध:

हाथ में इत्र(गंध) लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी को गंध समर्पित करें।

गंधं समर्पयामि


अक्षत:- 

हाथ में अक्षत लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी को अक्षत समर्पित करें।

अक्षतं समर्पयामि


पुष्प:- 

हाथ में फूल तथा तुलसी दल लेकर श्रीराम जी को फूल तथा तुलसी दल समर्पित करें।

 

अंग पूजा:- 

बाएं हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी के विभिन्न अंगों के निमित्त थोड़ा-थोड़ा अक्षत,फूल रामजी के पास अर्पित करते जाएं:-

 

श्री रामचन्द्राय नम: ।पादौ पूजयामि॥

ॐ श्री राजीवलोचनाय नम: ।गुल्फौ पूजयामि॥

ॐ श्री रावणान्तकाय नम: ।जानुनी पूजयामि॥

पूजयामि॥

ॐ श्री वाचस्पतये नम: ।ऊरु पूजयामि॥

ॐ श्री विश्वरूपाय नम: ।जंघे पूजयामि॥

ॐ श्री लक्ष्मणाग्रजाय नम: ।कटि पूजयामि॥

ॐ विश्वमूर्तये नम: ।मेढ़्र पूजयामि॥

ॐ विश्वामित्र प्रियाय नम: ।नाभिं पूजयामि॥

ॐ परमात्मने नम: ।हृदयं पूजयामि॥

ॐ श्री कण्ठाय नम: ।कंठ पूजयामि॥

ॐ सर्वास्त्रधारिणे नम: ।बाहू पूजयामि॥

ॐ रघुद्वहाय नम: ।मुखं पूजयामि॥

ॐ पद्मनाभाय नम: ।जिह्वां पूजयामि॥

ॐ दामोदराय नम: ।दन्तान् पूजयामि॥

ॐ सीतापतये नम: ।ललाटं पूजयामि॥

ॐ ज्ञानगम्याय नम: ।शिर पूजयामि॥

ॐ सर्वात्मने नम: ।सर्वांग पूजयामि॥

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । सर्वाङ्गाणि पूजयामि।।

 

श्रीराम जी को धूप समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को दीप समर्पित करें

 

श्री राम जी को नैवेद्य(मिठाई) समर्पित करें तथा उसकी बाद आचमन के लिए जल समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को फल समर्पित करें।

 

ताम्बूल:-

पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग,इलायची,सुपारी के टुकड़े तथा कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाएं। श्रीराम जी को ताम्बूल समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को दक्षिणा समर्पित करें।

 

आरती:- 

थाल में घी का दीपक तथा कर्पूर से रामजी की आरती करें।


श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |

नव कंजलोचन, कंज - मुख, कर - कंज, पद कंजारुणं ||


कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील - नीरद सुन्दरं |

पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ||


भजु दीनबंधु दिनेश दानव - दैत्यवंश - निकन्दंन |

रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ - नन्दनं ||


सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां |

आजानुभुज शर - चाप - धर सग्राम - जित - खरदूषणमं ||


इति वदति तुलसीदास शंकर - शेष - मुनि - मन रंजनं |

मम हृदय - कंच निवास कुरु कामादि खलदल - गंजनं ||


मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो |

करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ||


एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली |

तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली ||

 

आरती का जल से तीन बार पवित्रीकरण करें, उसकी बाद सभी देवी-देवताओं को आरती दें। उपस्थित जनों को आरती दें तथा स्वयं भी लें।

 

मंत्र पुष्पांजलि:-

हाथ में पुष्प लेकर खड़े हो जाएं और निम्न मंत्र के द्वारा पुष्पांजलि समर्पित करें।

 

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि।

 

प्रदक्षिणा:-

अपने स्थान पर बाएं से दाएं की ओर घूमते हुए निम्न मंत्र के द्वारा प्रदक्षिणा करें।

 

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि।

 

क्षमा प्रार्थना:- 

दोनों हाथ जोड़कर श्रीराम जी से पूजा में हुई त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें।


रामनवमी का इतिहास   


महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को संतान का सुख नहीं दे पायी थी। जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई (दामाद) , महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुंड से एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। 


यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान राम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।


 शास्त्रों की मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही दोपहर के समय प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था. इसलिए, चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को रामनवमी यानी भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन बहुत से लोग व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि के समापन की वजह से इस दिन कई जगहों पर हवन भी होता है. 


रामनवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त


नवमी तिथि प्रारंभ- 21 अप्रैल बुधवार को रात 12:43 बजे से

नवमी तिथि समाप्त- 22 अप्रैल रात 12:35 बजे 

पूजा का शुभ मुहूर्त- 21 अप्रैल को सुबह 11.02 बजे से दोपहर 01.38 बजे तक

पूजा की कुल अवधि- 2 घंटे 36 मिनट 

रामनवमी मध्याह्न समय: दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर


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