शनिवार, 9 अप्रैल 2022

चैत्र राम नवमी


 राम नवमी – चैत्र


चैत्र महीने में नवरात्र के नवें दिन रामनवमी मनाई जाती है।  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम के जन्मदिन यानी रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है।  इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ के यहां हुआ था।


भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। भगवान श्रीराम को विष्णु का अवतार कहा गया है। त्रेतायुग में अयोध्या के महाराजा दशरथ के घर में माता कौशल्या ने भगवान श्री राम को जन्म दिया था।

राम चरित मानस में भगवान श्री राम के चरित्र का तुलसीदास ने बखान किया है। 

हिंदू शास्त्र के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 12 बजे दिन में हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धरती पर एक बार फिर धर्म की स्थापना करने के लिये भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. मान्यताओं के अनुसार श्रीराम चन्द्र का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में राजा दशरथ के घर अयोध्या में हुआ था. रामनवमी का त्योहार राम जन्मोत्सव के तौर पर देशभर में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है.

तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना राम नवमी के दिन से ही शुरू की थी।


तुलसीदास ने रामचरितमानस में प्रभु श्रीराम के जन्म का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है.


भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..


करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता 


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै 

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै 


उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा 

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा


अयोध्या में भगवान राम का जन्म होने वाला था तब समस्त अयोध्या नगरी में शुभ शकुन होने लगे। भगवान राम का जन्म होने पर अयोध्या नगरी में खुशी का माहौल हो गया। चारों ओर मंगल गान होने लगा था।


ऐसी मान्यता है, कि रामनवमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना करने से जीवन के जितने भी विघ्न-बाधाएं है, वह हमेशा के लिए दूर हो जाती है और घर में शांति बनी रहती है। यदि आप भगवान श्री राम की का आशीर्वाद जीवन में सदैव बनाएं रखना चाहते है, तो राम नवमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना जरूर करें। 


रामनवमी की पूजा विधि

रामनवमी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें. पूजा स्थान पर पूजन सामग्री के साथ आसान लगाकर बैठें. भगवान श्रीराम की पूजा में तुलसी का पत्ता होना अनिवार्य है क्योंकि श्रीराम विष्णु जी के अवतार हैं और भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है. राम जी की पूजा में तुलसी के प्रयोग से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं. उसके बाद रोली, चंदन, धूप और गंध से रामजी की पूजा करें. दीपक जलाएं, सभी देवी-देवताओं का ध्यान लगाएं और आरती करें. फिर श्रीराम को मिष्ठान, फल, फूल आदि अर्पित करें. इसके बाद मंत्रों का जाप करें और हवन भी करें. इस दिन रामनवमी की पूजा के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ जरूर करें. इसे पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है.

प्रभु श्री राम की आरती करें और रामायण जी की आरती करें।

श्रीराम के सबसे प्रिय पदार्थ खीर और फल-मूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।

इस दिन भगवान श्री राम को भोग अर्पित करें और सभी में वितरित करें।

गरीबों को दान दें और प्रसाद वितरण करें।

 पूजा के बाद घर की सबसे छोटी महिला अथवा लड़की को घर में सभी जनों के माथे पर तिलक लगाना चाहिए। 

 

विस्तार से पूजन विधि 

 

प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर, स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। साथ में श्रीराम दरबार की तस्वीर सजाएं। 

 

श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दे।



 

पवित्रीकरण:-

हाथ में जल ले कर निम्न मंत्र पढ़ते हुए जल अपने ऊपर छिड़क कर अपने आप को पवित्र कर लें।

 

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥


पृथ्वी पूजा:-

मन ही मन पृथ्वी मां को प्रणाम करते हुए निम्न मंत्र पढ़ें

:- ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः


आचमन :-

चम्मच से तीन बार एक- एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़ते हुए, दिए हुए मंत्र का उच्चारण कीजिए -

 

ॐ केशवाय नमः

ॐ नारायणाय नमः

ॐ वासुदेवाय नमः

 

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछ लें। इसक बाद शुद्ध जल से हाथ धो लें.


संकल्प :-

अब संकल्प करें। संकल्प के लिए दायें हाथ में गंगाजल(गंगाजल न हो तो शुद्ध जल में तुलसी पत्र डाल दें), फूल, अक्षत, पान(डंडी सहित),सुपारी,कुछ सिक्के हाथ में लेकर मंत्र के द्वारा रामनवमी पूजा का संकल्प करें :-

 

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे चैत्रमासे शुक्लपक्षे नवमीतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं रामनवमी पूजा करिष्ये। 

उक्त संकल्प के बाद जल को भूमि पर छोड़ दें।


गणेश पूजा:-

इसके बाद चौकी पर चावल का ढेर रखकर, उसपर गणेश जी की मूर्ति (यदि मूर्ति ना हो तो सुपारी पर मौली लपेट कर गणेश जी के रूप में रखें) स्थापित करें। अब पंचोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें। धूप,दीप, अक्षत,चंदन/सिंदूर एवं नैवेद्य समर्पित करते हुए गणेश जी की पूजा करें।


गुरु वंदना:-

दोनों हाथ जोड़कर अपने गुरु को नमन करें।

 

कलश पूजन:-

मिट्टी के कलश में जल भर लें। उसमें दूर्वा, कुछ सिक्के,अक्षत डालें एवं गंगाजल मिलाएं। आम का पल्लव डाल कर उसके ऊपर लाल कपड़े में नारियल लपेट कर रखें। चावलसे चौकी के पास अष्टदल कमल बनाएं। अष्टदल कमल पर कलश को रखें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। 

 

धूप, दीप, अक्षत, चंदन, नैवेद्य समर्पित करत हुए कलश की पूजा करें। दोनों हाथ जोड़कर कलश को प्रणाम करें...

 

ध्यान:-

दोनों हाथ जोड़कर श्री रामचंद्रजी का ध्यान करते हुए श्रीराम का श्लोक पढ़ें:-

राम रामेति रमेति रमे रामे मनोरमे

सहस्त्र नाम ततुल्यं राम नामं वारानने


आवाहन:-

भगवान श्रीरामचंद्र जी का आवाहन करें:-

हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर भगवान राम को आसन समर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर श्रीराम जी को पैर धोने के लिए जल समर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर अभिषेक के लिए श्रीरामजी को जल अर्पित करें।

पुष्प से जल लेकर आचमन के लिए श्रीरामजी को जल अर्पित करें।

चम्मच में दूध तथा मधु लेकर श्रीराम जी को अर्पित करें।

पुष्प से स्नान के लिए श्रीराम जी को जल समर्पित करें।


पंचामृत स्नान:-

दुग्ध स्नान- पुष्प से दुग्ध स्नान के लिए श्रीराम जी को दूध समर्पित करें, उसक बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

दधि स्नान

पुष्प से दही स्नान के लिए श्रीराम जी को दही समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

घृतं स्नान

पुष्प से घृत स्नान के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए श्रीराम जी को घी समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

मधु स्नान

पुष्प से मधु स्नान के लिए श्रीराम जी को शहद समर्पित करें; उसके बाद शुद्ध जल समर्पित करें।

 

शर्करा स्नान

पुष्प से शर्करा स्नान के लिए श्रीराम जी को शर्करा समर्पित करें।

 

शुद्धोदक स्नान

पुष्प से शुद्ध जल लेकर शुद्धोदक स्नान के लिए श्रीराम जी को जल समर्पित करें।

 

वस्त्र:

हाथ में पीला वस्त्र लेकर श्रीराम जी को वस्त्र समर्पित करें।

 

यज्ञोपवित:- 

हाथ में यज्ञोपवित लेकर श्रीराम जी को यज्ञोपवित समर्पित करें।

 

गंध:

हाथ में इत्र(गंध) लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी को गंध समर्पित करें।

गंधं समर्पयामि


अक्षत:- 

हाथ में अक्षत लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी को अक्षत समर्पित करें।

अक्षतं समर्पयामि


पुष्प:- 

हाथ में फूल तथा तुलसी दल लेकर श्रीराम जी को फूल तथा तुलसी दल समर्पित करें।

 

अंग पूजा:- 

बाएं हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर मंत्र के उच्चारण के साथ श्रीराम जी के विभिन्न अंगों के निमित्त थोड़ा-थोड़ा अक्षत,फूल रामजी के पास अर्पित करते जाएं:-

 

श्री रामचन्द्राय नम: ।पादौ पूजयामि॥

ॐ श्री राजीवलोचनाय नम: ।गुल्फौ पूजयामि॥

ॐ श्री रावणान्तकाय नम: ।जानुनी पूजयामि॥

पूजयामि॥

ॐ श्री वाचस्पतये नम: ।ऊरु पूजयामि॥

ॐ श्री विश्वरूपाय नम: ।जंघे पूजयामि॥

ॐ श्री लक्ष्मणाग्रजाय नम: ।कटि पूजयामि॥

ॐ विश्वमूर्तये नम: ।मेढ़्र पूजयामि॥

ॐ विश्वामित्र प्रियाय नम: ।नाभिं पूजयामि॥

ॐ परमात्मने नम: ।हृदयं पूजयामि॥

ॐ श्री कण्ठाय नम: ।कंठ पूजयामि॥

ॐ सर्वास्त्रधारिणे नम: ।बाहू पूजयामि॥

ॐ रघुद्वहाय नम: ।मुखं पूजयामि॥

ॐ पद्मनाभाय नम: ।जिह्वां पूजयामि॥

ॐ दामोदराय नम: ।दन्तान् पूजयामि॥

ॐ सीतापतये नम: ।ललाटं पूजयामि॥

ॐ ज्ञानगम्याय नम: ।शिर पूजयामि॥

ॐ सर्वात्मने नम: ।सर्वांग पूजयामि॥

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । सर्वाङ्गाणि पूजयामि।।

 

श्रीराम जी को धूप समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को दीप समर्पित करें

 

श्री राम जी को नैवेद्य(मिठाई) समर्पित करें तथा उसकी बाद आचमन के लिए जल समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को फल समर्पित करें।

 

ताम्बूल:-

पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग,इलायची,सुपारी के टुकड़े तथा कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाएं। श्रीराम जी को ताम्बूल समर्पित करें।

 

श्रीराम जी को दक्षिणा समर्पित करें।

 

आरती:- 

थाल में घी का दीपक तथा कर्पूर से रामजी की आरती करें।


श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |

नव कंजलोचन, कंज - मुख, कर - कंज, पद कंजारुणं ||


कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील - नीरद सुन्दरं |

पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ||


भजु दीनबंधु दिनेश दानव - दैत्यवंश - निकन्दंन |

रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ - नन्दनं ||


सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां |

आजानुभुज शर - चाप - धर सग्राम - जित - खरदूषणमं ||


इति वदति तुलसीदास शंकर - शेष - मुनि - मन रंजनं |

मम हृदय - कंच निवास कुरु कामादि खलदल - गंजनं ||


मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो |

करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ||


एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली |

तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली ||

 

आरती का जल से तीन बार पवित्रीकरण करें, उसकी बाद सभी देवी-देवताओं को आरती दें। उपस्थित जनों को आरती दें तथा स्वयं भी लें।

 

मंत्र पुष्पांजलि:-

हाथ में पुष्प लेकर खड़े हो जाएं और निम्न मंत्र के द्वारा पुष्पांजलि समर्पित करें।

 

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि।

 

प्रदक्षिणा:-

अपने स्थान पर बाएं से दाएं की ओर घूमते हुए निम्न मंत्र के द्वारा प्रदक्षिणा करें।

 

ॐ श्री जानकीवल्लभं। ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि।

 

क्षमा प्रार्थना:- 

दोनों हाथ जोड़कर श्रीराम जी से पूजा में हुई त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें।


रामनवमी का इतिहास   


महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को संतान का सुख नहीं दे पायी थी। जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई (दामाद) , महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुंड से एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। 


यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान राम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।


 शास्त्रों की मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही दोपहर के समय प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था. इसलिए, चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को रामनवमी यानी भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन बहुत से लोग व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि के समापन की वजह से इस दिन कई जगहों पर हवन भी होता है. 


रामनवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त


नवमी तिथि प्रारंभ- 21 अप्रैल बुधवार को रात 12:43 बजे से

नवमी तिथि समाप्त- 22 अप्रैल रात 12:35 बजे 

पूजा का शुभ मुहूर्त- 21 अप्रैल को सुबह 11.02 बजे से दोपहर 01.38 बजे तक

पूजा की कुल अवधि- 2 घंटे 36 मिनट 

रामनवमी मध्याह्न समय: दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर


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