सोमवार, 16 मई 2022

बुद्ध पूर्णिमा

 


बुद्ध पूर्णिमा

वैशाख मास की पूर्णिमा इस साल 16 मई दिन सोमवार को पड़ रही है. इसी दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था, इसलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी।


बुद्ध पूर्णिमा को बौद्ध धर्म मानने वाले लोग विश्व में जहां जहां भी हैं, वहां प्रकाश उत्सव मनाते हैं. दीप प्रज्वलित करते हैं और बड़े हर्षोल्लास के साथ भगवान बुद्ध का जन्मदिन मनाते हैं. यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। 

भगवान बुद्ध के आदर्शों पर चलने वाले, बौद्ध धर्म को मानने वाले वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध के सत्य और अहिंसा के व्रत का पालन करते हुए, उनकी शिक्षाओं का सम्मान करते हुए उनका जन्म उत्सव बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं.

श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है। 


इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं। वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।


बुद्ध पूर्णिमा का धार्मिक महत्व


भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल के लुंबिनी नामक का स्थान पर हुआ था. सांसारिक जीवन से विरक्त होकर उन्होंने गया में बोधि वृक्ष के नीचे 49 दिन तक लगातार तपस्या की थी. 49वें दिन ज्ञान प्राप्त होने के कारण बोधिसत्व कहलाए.


ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन्होंने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ के मृगदाव में दिया था. इनके प्रथम 5 शिष्य कौंडच, वस्प, भददोदि, महानाग और अरसजि थे. इसे धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से भी जाना जाता है.


भगवान बुद्ध ने लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी, इसी कारण भगवान बुद्ध का जन्मोत्सव केवल भारत में नहीं अपितु पूरे संसार में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.


वैशाख पूर्णिमा, भगवान बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें- बुद्ध का जन्म, बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति एवं बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। गौतम बुद्ध ने चार सूत्र दिए उन्हें 'चार आर्य सत्य 'के नाम से जाना जाता है।


भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्य 


वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें-बुद्ध का जन्म,बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति एवं बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। गौतम बुद्ध ने चार सूत्र दिए उन्हें 'चार आर्य सत्य 'के नाम से जाना जाता है। 

पहला दुःख है 

दूसरा दुःख का कारण 

तीसरा दुःख का निदान और 

चौथा मार्ग वह है जिससे दुःख का निवारण होता है।


भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग


भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग वह माध्यम है जो दुःख के निदान का मार्ग बताता है। उनका यह अष्टांगिक मार्ग ज्ञान,संकल्प,वचन,कर्म,आजीव,व्यायाम,स्मृति और समाधि के सन्दर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है।  गौतम बुद्ध ने  मनुष्य के बहुत से दुखों का कारण उसके स्वयं का अज्ञान और मिथ्या दृष्टि बताया है। 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधगया में दुनियाभर से बौद्ध धर्म मानने वाले यहाँ आते हैं। बोधि वृक्ष की पूजा की जाती है। मान्यता है की इसी वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस दिन बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप प्रज्जवलित कर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरी दुनिया में एक नई रोशनी पैदा की और पूरी दुनिया को सत्य एवं सच्ची मानवता का पाठ पढ़ाया।

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