तुलसी विवाह
दिवाली के बाद 14 नवंबर को रविवार के दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है. जिसे देव उठानी, देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. माना जाता है कि भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने का शयन काल पूरा करने के बाद इस दिन जागते हैं. देव उठानी के दिन माता तुलसी के विवाह का आयोजन भी किया जाता है. तुलसी माता का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ संपन्न करवाया जाता है और इसी दिन से शादी-ब्याह और शुभ कार्यों की शुरुआत भी होती है.
तुलसी विवाह विधि
एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें. इसके बाद बगल में एक जल भरा कलश रखें और उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखें. तुलसी के गमले में गेरू लगाएं और घी का दीपक जलाएं. फिर तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें और रोली, चंदन का टीका लगाएं. तुलसी के गमले में ही गन्ने से मंडप बनाएं. अब तुलसी को सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ा दें. गमले को साड़ी लपेट कर, चूड़ी चढ़ाएं और उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें. इसके बाद शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा की जाती है. इसके बाद आरती करें. तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी लोगों को प्रसाद बांटे | हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का खास महत्व है. तुलसी विवाह हर साल कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन किया जाता है.
तुलसी के पौधे के चारो ओर मंडप बनाएं.
– तुलसी के पौधे के ऊपर लाल चुनरी चढ़ाएं.
– तुलसी के पौधे को शृंगार की चीजें अर्पित करें.
– श्री गणेश जी पूजा और शालिग्राम का विधिवत पूजन करें.
– भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं.
– आरती के बाद विवाह में गाए जाने वाले मंगलगीत के साथ विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है |
कहते हैं कि भगवान विष्णु जी को तुलसी जी बेहद प्रिय हैं. तुलसी का एक नाम वृंदा भी है. मान्यता है कि नारयण जागते ही सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की सुनते हैं. इसलिए तुलसी विवाह को देव जागरण का पवित्र मुहूर्त माना जाता है. तुलसी को पौधे को देवी लक्ष्मी का रूप कहा जाता है और वृंदा तुलसी के अवतारों में से एक है.अगर आप भी इस देव उठानी एकादशी पर माता तुलसी के विवाह का आयोजन करवा रहे हैं, तो यहां बताई जा रही इन बातों का ध्यान जरूर रखें.
तुलसी विवाह के समय इन बातों का रखें ध्यान
सबसे पहले घर के सभी सदस्य भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें.
परिवार के सभी सदस्य और विवाह में शामिल होने वाले सभी अतिथि नहा-धोकर व स्वच्छ कपड़े पहनकर विवाह में शामिल हों.
तुलसी विवाह के लिए जिस जगह पर तुलसी का पौधा रखना हो वहां की अच्छी तरह से साफ-सफाई जरूर करें.
तुलसी के पौधे को आंगन, छत या घर के जिस स्थान पर भी पूजा करें वहां एकदम बीच में रखें.
तुलसी के गमले को गेरू से रंगे और गमले के पास जमीन पर गेरू से रंगोली भी बनायें.
मंडप सजाने के लिए आप गन्ने का इस्तेमाल कर सकते हैं.
विवाह का आयोजन शुरू करने से पहले तुलसी के पौधे पर चुनरी जरूर चढ़ाएं.
इसके साथ ही उनको चूड़ी पहनाएं साथ ही बिंदिया लगाकर उनका श्रृंगार करें.
तुलसी के पौधे के दायीं ओर एक चौकी रखें और उन पर भगवान शालिग्राम को बिठायें.
तुलसी के पौधे के साथ गमले में भगवान शालिग्राम पर दूध में भीगी हल्दी चढ़ाएं.
भगवान शालिग्राम पर अक्षत न छिड़कें बल्कि इसकी जगह तिल का इस्तेमाल करें.
पूजन करते हुए इस मौसम आने वाले फल जैसे सिंघाड़े, गन्ना, बेर, आवंला, सेब आदि चढ़ाएं.इस दौरान पूजा में मूली, शकरकंदी, आंवला, सिंघाड़ा, सीताफल, बेर, अमरूद, फूल, चंदन, मौली धागा और सिंदूर और अन्य मौसमी फल चढ़ाए जाते |
तुलसी विवाह के मंत्र (Tulsi Vivah Mantra)
तुलसी स्तुति मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः,
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी पूजन मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
अथ तुलसी मंगलाष्टक मंत्र ॥ (Tulsi Mangalashtak Mantra)
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः ।
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् । गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः । मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका ।
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः ।
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7
ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः ।
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8
॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥
तुलसी विवाह के गीत
मेरी प्यारी तुलसा जी बनेगी दुल्हनियां...
सजके आयेगे दूल्हे राजा।
देखो देवता बजायेंगे बाजा...
सोलह सिंगार मेरी तुलसा करेंगी।
हल्दी चढ़ेगी मांग भरेगी...
देखो होठों पे झूलेगी नथनियां।
देखो देवता...
देवियां भी आई और देवता भी आए।
साधु भी आए और सन्त भी आए...
और आई है संग में बरातिया।
देखो देवता...
गोरे-गोरे हाथों में मेहन्दी लगेगी...
चूड़ी खनकेगी ,वरमाला सजेगी।
प्रभु के गले में डालेंगी वरमाला।
देखो देवता...
लाल-लाल चुनरी में तुलसी सजेगी...
आगे-आगे प्रभु जी पीछे तुलसा चलेगी।
देखो पैरो में बजेगी पायलियां।
देखो देवता...
सज धज के मेरी तुलसा खड़ी है...
डोली मंगवा दो बड़ी शुभ घड़ी है।
देखो आंखों से बहेगी जलधारा।
देखो देवता...
तुलसी माता की आरती (Tulsi Mata Ki Aarti)
जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, माता तुलसी के 8 नामों का मंत्र या सीधे 8 नाम प्रतिदिन बोलने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
मंत्र :
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौश्वमेघं फललंमेता।।
तुलसी के आठ नाम – पुष्पसारा, नन्दिनी, वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।
मान्यता के मुताबिक, जो व्यक्ति शालिग्राम और तुलसी का विवाह पूरे विधि-विधान के साथ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
हिंदू धर्म में इस पावन पर्व के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं, जिनका पालन करने से कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिल जाता है. वहीं, अगर किसी की शादीशुदा जिंदगी में कष्ट हो तो उनसे छुटकारा मिल जाता है. इसके अलावा जीवन में आने वाली मुसीबतों से भी छुटकारा मिल जाता है. अगर आप भी तुलसी विवाह के पावन पर्व पर अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करना चाहते हैं तो इन उपायों को जरूर आजमाएं.
वैवाहिक जीवन से कलह होगा दूर
अगर किसी के वैवाहिक जीवन में लगातार लड़ाई-झगड़ा बना हुआ है तो तुलसी विवाह के दिन एक उपाय अवश्य कर लें. तुलसी विवाह से एक दिन पहले तुलसी के कुछ पत्ते तोड़ें और उन्हें पानी में डुबो दें. फिर तुलसी विवाह वाले दिन उस पानी को घर के मुख्य दरवाजे पर डाल दें. इस उपाय को करने से पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.
दांपत्य जीवन में बढ़ता है प्रेम
अगर किसी के दांपत्य जीवन में झगड़े होते रहते हैं तो उन्हें तुलसी विवाह के दिन तुलसी माता पर चढ़ाए गए श्रंगार को किसी सुहागन स्त्री को दान में दे देना चाहिए या मां लक्ष्मी के दर में अर्पित कर देना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है.
मनचाहे वर की मनोकामना होती है पूर्ण
अगर किसी कन्या की शादी में दिक्कतें आ रही हैं या फिर उसे मनचाहा वर नहीं मिल रहा है तो उसे तुलसी पूजा के दिन एके उपाय जरूर करना चाहिए. तुलसी विवाह के दिन मां तुलसी को लाल रंग की चुन्नी चढाएं. इसके बाद अगले दिन से उस चुन्नी को अपने पास रख लें. ऐसा करने से माता तुलसी प्रसन्न होती हैं, जिसके फलस्वरूप मनचाहा वर मिलता है.
इसके अलावा शादी में देरी होने पर सात साबुत हल्दी की गांठ, केसर, गुड़ और थोड़ी सी चने की दाल को पीले कपड़े में बांध लें. इसके बाद इन चीजों को भगवान विष्णु के मंदिर में अर्पित करें. भगवान विष्णु के आशीर्वाद से जल्द ही आपकी शादी का योग बन जाएगा.
तुलसी विवाह की कथा
जलंधर जब भी युद्ध पर जाता था तो उसकी पत्नी वृंदा पूजा अनुष्ठान करने बैठ जातीं थी. वृंदा की विष्णु भक्ति और साधना के कारण जलंधर को कोई भी युद्ध में हरा नहीं पाता था. एक बार जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, जिसके बाद सभी देवता जलंधर को परास्त करने में असमर्थ हो रहे थे. तब हताश होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को खत्म करने पर विचार करने लगे |
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रता धर्म को नष्ट कर दिया. इससे जलंधर की शक्ति कम होती गई और वह युद्ध में मारा गया. जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शिला यानी पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवताओं में हाहाकार मच गया. फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब जाकर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और खुद जलांधर के साथ सती होकर भस्म हो गईं |
वृंदा की शरीर के राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं कोई भी प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा. तभी से कार्तिक महीने में तुलसी जी का भगवान शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है |
तुलसी दल तोड़ने का मंत्र
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
रोग मुक्ति का मंत्र
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
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