बुधवार, 8 दिसंबर 2021

गुरु तेग बहादुर

 गुरु तेग बहादुर


गुरु तेग बहादुर छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र थे।  गुरु हरगोबिंद की एक बेटी, बीबी वीरो और पांच बेटे थे।  बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय, अटल राय और त्याग मल। त्याग मल का जन्म 1 अप्रैल 1621 में अमृतसर में हुआ था। मुगलों के खिलाफ लड़ाई में अपनी वीरता दिखाने के बाद उन्हें गुरु हरगोबिंद द्वारा दिए गए तेग बहादुर (तलवार की ताकतवर) के नाम से जाना जाने लगा।

गुरु तेग बहादुर सिंह एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। उनका जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।

गुरु तेग बहादुर सिंह सिखों के नौंवें गुरु थे। तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था। वे बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई।

इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। तेग बहादुर को भाई बुद्ध ने पढ़ाया, जिन्होंने उन्हें तीरंदाजी और घुड़सवारी में प्रशिक्षित किया. कहा जाता है कि जैसे ही तेग बहादुर के जन्म की खबर फैली, गुरु हरगोबिंद खुद बच्चे को देखने गए और जैसे ही उन्होंने उसे देखा, उन्होंने भविष्यवाणी की कि वह कमजोरों की रक्षा करेगा और उनके संकट को दूर करेगा। 

श्री तेग बहादुर साहब का विवाह माता गुजरी के साथ हुआ। नारी शक्ति की प्रतीक, वात्सल्य, सेवा, परोपकार, त्याग, उत्सर्ग की शक्तिस्वरूपा माता गुजरी जी का जन्म करतारपुर (जालंधर) निवासी लालचंद व बिशन कौर जी के घर सन् 1627 में हुआ था।

करतारपुर में हरिकृष्ण राय जी (सिखों के 8वें गुरु) की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेग बहादुर जी को गुरु बनाया गया था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया। इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया।


गुरु तेग बहादुर सिंह जहां भी गए, उनसे प्रेरित होकर लोगों ने न केवल नशे का त्याग किया, बल्कि तंबाकू की खेती भी छोड़ दी। उन्होंने देश को दुष्टों के चंगुल से छुड़ाने के लिए जनमानस में विरोध की भावना भर, कुर्बानियों के लिए तैयार किया और मुगलों के नापाक इरादों को नाकामयाब करते हुए कुर्बान हो गए। 


 

गुरु तेग बहादुर सिंह जी द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद (श्लोकों सहित) श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। सिक्खों के नौंवें गुरु तेग बहादुर सिंह ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए बलिदान दिया। कोई ब्रह्मज्ञानी साधक ही इस स्थिति को पा सकता है। मानवता के शिखर पर वही मनुष्य पहुंच सकता है, जिसने 'पर में निज' को पा लिया हो।

 

शस्त्र और शास्त्र, संघर्ष और वैराग्य, लौकिक और अलौकिक, रणनीति और आचार-नीति, राजनीति और कूटनीति, संग्रह और त्याग आदि का ऐसा संयोग मध्ययुगीन साहित्य व इतिहास में बिरला है। गुरु तेगबहादरसिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया और सही अर्थों में 'हिन्द की चादर' कहलाए। गुरु तेग बहादुर जी की याद में उनके दिल्ली के ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है।

 

गुरु तेग बहादुर सिंह में ईश्वरीय निष्ठा के साथ समता, करुणा, प्रेम, सहानुभूति, त्याग और बलिदान जैसे मानवीय गुण विद्यमान थे। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेगबहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की. गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया. आनंदपुर साहब से रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे। इसके बाद गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए कई कार्य किए. गुरु तेग बहादुर जी ने रूढ़ियों, अंधविश्वासों की घोर आलोचनाएं की और विभिन्न आदर्श स्थापित किए. सामाजिक हित में कार्य करते हुए उन्होंने कई कुएं खुदवाए और धर्मशालाएं बनवाई। 


गुरु तेग बहादुर जी के सिद्धान्त


गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु नानक जी के सिद्धान्तों की व्याख्या की। इसके अतिरिक्त गुरु जी के सिद्धान्त थे : नाम, दान और स्नान। गुरु जी का विचार था – आठ पहर चौसठ घड़ी, उठते, बैठते, सोते जागते हमेशा परमात्मा का नाम लेना चाहिए। नाम लेने से जिह्वा पवित्र होती है।


साधो गोबिन्द के गुन गावउ।

मानस जनमु अमोलक पाओ बिरथा काहि गावउ॥”


“तजि अभिमानु मोह माइआ पुनि भजन राम चित्त गावउ।

नानक कहति मुकति पंथु इङ गुरु मुखि होई तुम गावउ॥”


जैसे दहलीज पर रखा हुआ दीपक अन्दर और बाहर दोनों तरफ रोशनी करता है, उसी तरह से परमात्मा का नाम लेने वाला व्यक्ति अन्दर और बाहर दोनों तरफ से प्रकाशित होता है, पर "नाम" सच्चे मन से लेना चाहिए, दिखावे से नहीं। गुरु जी का दूसरा सिद्धान्त था “दान”। उनका विचार था, जितना भी हो यथाशक्ति दान करो। तीसरा सिद्धान्त था "स्नान" का। गुरु जी का विचार था कि स्नान से शरीर पवित्र होता है, दान से हाथ और मन पवित्र होते है और नाम जपने से वाणी पवित्र होती हैं और मन पवित्र होता है। इस तरह गुरु जी ने सिद्धान्तों का दृढ़ता से प्रचार किया और स्थान-स्थान पर घूम कर प्रचार किया।


गुरु जी पाखण्ड के विरोधी थे। बाहर के आडम्बरों के विरोधी थे, तिलक, जनेऊ और माला के विरोधी थे। फिर भी उन्होंने ब्राह्मणों का पक्ष इसलिए किया कि कोई भी किसी के धर्म में अड़चन क्यों डाले ? जबरदस्ती किसी का धर्म क्यों बदले ? गुरु जी सच्चे अर्थों में तेजस्वी, महात्मा और देशभक्त थे। अभिमान और छल से रहित थे।


सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को सिर कटवा दिया था। औरंगजेब चाहता था कि सिख गुरु इस्लाम स्वीकार कर लें लेकिन गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया था। गुरु तेग बहादुर के त्याग और बलिदान के लिए उन्हें “हिंद दी चादर” कहा जाता है। मुगल बादशाह ने जिस जगह पर गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया था दिल्ली में उसी जगह पर आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है। 


गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से अदावत की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगल शासन द्वारा जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार की। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें अपनी निगहबानी में ले लिया। मुगल बादशाह इससे बहुत नाराज हुआ। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर को मुगल फौज ने जुलाई 1875 में गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें करीब तीन-चार महीने तक दूसरी जगहों पर कैद रखने के बाद पिंजड़े में बंद करके दिल्ली लाया गया जो मुगल सल्तनत की राजधानी थी।

माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये, भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया। गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी।  अपनी शहादत से पहले गुरु तेग बहादुर ने आठ जुलाई 1975 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु नियुक्त कर दिया था।


गुरु तेग बहादुर को औंरंगजेब द्वारा हत्या किये जाने के कारण मुस्लिम शासन और उत्पीड़न के खिलाफ हिन्दुओं और सिखों का संकल्प और भी दृढ़ हो गया। पशौरा सिंह कहते हैं कि, "अगर गुरु अर्जन की शहादत ने सिख पन्थ को एक साथ लाने में मदद की थी, तो गुरु तेग बहादुर की शहादत ने मानवाधिकारों की सुरक्षा को सिख पहचान बनाने में मदद की"। विल्फ्रेड स्मिथ ने कहा है, "नौवें गुरु को बलपूर्वक धर्मान्तरित करने के प्रयास ने स्पष्ट रूप से शहीद के नौ वर्षीय बेटे, गोबिन्द पर एक अमिट छाप डाला, जिन्होने धीरे-धीरे उसके विरुद्ध सिख समूहों को इकट्ठा करके इसका प्रतिकार किया। इसने खालसा पहचान को जन्म दिया।"


आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोविन्द सिंह जी ने ‘बिचित्र नाटक में लिखा है-


तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥

साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥

धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ (दशम ग्रंथ)


गुरु तेग बहादुर जी द्वारा रचित बहुत सी कृतियां ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं. इन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनाएं की हैं.


चलिए हम आपको उनके प्रेरणादायक विचार बताते हैं। इसे हर किसी को अपने जीवन में जरूर अपनाना चाहिए। 

 

* महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं। 

 

* किसी के द्वारा प्रगाढ़ता से प्रेम किया जाना आपको शक्ति देता है और किसी से प्रगाढ़ता से प्रेम करना आपको साहस देता है।

 

* सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस।


* सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।

 

* दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है।


* जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है।

 

* प्यार पर एक और बार और हमेशा एक और बार यकीन करने का साहस रखिए।

 

* अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो।

 

* एक सज्जन व्यक्ति वह है जो अनजाने में किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचाएं।

 

* गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो।

 

* हार और जीत यह आपकी सोच पर ही निर्भर है, मान लो तो हार है ठान लो तो जीत है।

 

* आध्यात्मिक मार्ग पर दो सबसे कठिन परिक्षण हैं, सही समय की प्रतीक्षा करने का धैर्य और जो सामने आए उससे निराश ना होने का साहस।

 

* डर कहीं और नहीं, बस आपके दिमाग में होता है। 

 

* इस भौतिक संसार की वास्तविक प्रकृति का सही अहसास, इसके विनाशकारी, क्षणिक और भ्रमपूर्ण पहलुओं को पीड़ित व्यक्ति पर सबसे अच्छा लगता है।

 

* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है।

 

* साहस ऐसी जगह पाया जाता है जहां उसकी संभावना कम हो।

 

* नानक कहते हैं, जो अपने अहंकार को जीतता है और सभी चीजों के एकमात्र द्वार के रूप में भगवान को देखता है, उस व्यक्ति ने 'जीवन मुक्ति' को प्राप्त किया है, इसे असली सत्य के रूप में जानते हैं।

 

* जिनके लिए प्रशंसा और विवाद समान हैं तथा जिन पर लालच और लगाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उस पर विचार करें केवल प्रबुद्ध है जिसे दर्द और खुशी में प्रवेश नहीं होता है। इस तरह के एक व्यक्ति को बचाने पर विचार करें।


Have something to add to this story? Post your comments in the comments box below; I shall be thrilled to hear from you!


आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Harsh Blogs (www.harsh345.wordpress.com) के साथ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सतुआन

सतुआन  उत्तरी भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक सतुआन प्रमुख पर्व है. यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है. मेष संक्रांति के ...