शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

गुड़ी पड़वा , उगादी

 



गुड़ी पड़वा , उगादी

और गोवा के लोग अपना नया साल प्रतिपदा तिथि, चैत्र शुक्ल पक्ष पर मनाते हैं। इस दिन को पारंपरिक रूप से गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। इस साल यह त्योहार 2 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस वर्ष मराठी शाखा संवत 1944 शुरू होगी। 

प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल को सुबह 11.53 बजे से आरंभ होकर, 2 अप्रैल को सुबह 11.58 बजे समाप्त होगी। हिंदू नववर्ष से कई राशियों के अच्छे दिन शुरू होंगे।

चैत्र, प्रतिपदा, शुक्ल पक्ष विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण है। 


हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है. जिसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। गुड़ी का अर्थ है ध्वज अर्थात झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल 2022 को है। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वहां की नकारात्मकता दूर होती है और घर में सुख-शांति खुशहाली आती है। 

विशेष तौर पर यह पर्व कर्नाटक,गोवा,महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। 

इस शुभ दिवस पर लोग परम्परिक वस्त्र धारण करतें हैं। एवं महिलाये इस दिन नौ गज साड़ियाँ पहनती हैं। 

गुड़ी पड़वा का दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन खास तरह के पकवान श्री खंड, पूरनपोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा के बारे में कहा जाता है कि खाली पेट पूरन पोली का सेवन करने से चर्म रोग की समस्या भी दूर हो जाती है।



गुड़ी पड़वा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें


1. मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। इसके बाद से महाराष्ट्र में इस पर्व को मनाने की शुरुआत हुई। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं। कर्नाटक में इसे युगादि, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है।


2. इस त्योहार में सूर्य उपासना की परंपरा है। भक्त सूर्य देव से सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से इसे देखा जाये तो सूर्य ही प्रकृति के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की छमता पृथ्वीवासी में उत्पन्न हो सकें। ऐसी कामना के साथ इस सूर्य की पूजा अर्चना भी की जाती हैं। 


3. गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली बनाई जाती है। कुछ स्थानों पर नीम की पत्तियां खाने का चलन है।



गुड़ी से जुड़ी पौराणिक कथा, एवं इसकी स्थापना का सही तरीका


चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्षा प्रतिपदा या उगादि कहते हैं। इसी दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। 


सृष्टि के निर्माण का दिन


इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए इसी दिन से विक्रम संवत का नया साल भी शुरू होता है। इस दिन दुनिया में पहला सूर्योदय हुआ था। भगवान ने इस प्रतिपदा तिथि को सर्वश्रेष्ठ तिथि कहा था। इसलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहा जाता है। सृष्टि का पहला दिन गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। भगवान ब्रह्मा के भक्त इस शुभ दिन एक पवित्र तेल स्नान करते हैं. 


ब्रम्हपुराण के अनुसार इसी दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ. इसी कारण इस तिथि को सर्वोतम माना जाता हैं.


चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि

शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। -ब्रह्मपुराण


सतयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी।यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन या युगादि तिथि भी कहते हैं। 

इस दिन नवरात्रि घटस्थापन,ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि भी किया जाता है।


शालिवाहन शक संवत


गुड़ी नाम का अर्थ "विजय पताका" है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शालिवाहन नाम के एक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सिपाही बनाकर एक सेना बनाई थी और उस पर पानी छिड़क कर जान डाल दी थी। इसके बाद उस मिट्टी की सेना ने पराक्रमी शत्रुओं को परास्त कर विजय प्राप्त की थी। 'शालिवाहन शक' का आरंभ इसी विजय का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन शकों ने हूणों पर जीत दर्ज की.


आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह त्योहार 'उगादी' और महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।


छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत के उपलक्ष्य में


कुछ लोग छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत के उपलक्ष्य में भगवा झंडा भी फहराते हैं। शाम को एक जुलूस निकाला जाता है जिसमें लोग इकट्ठा होते हैं और लोगों का मनोरंजन करने के लिए समूहों में नृत्य करते हैं।


वानरराज बाली पर विजय


रामायण काल में दक्षिण भारत पर बाली का अत्याचारी शासन था। सीताजी को ढूंढ़ते हुए जब भगवान राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई तो उन्होंने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। तब भगवान राम ने बाली का वध कर वहां के लोगों को उसके कुशासन से मुक्ति दिलाई। मान्यता है कि यह दिन चैत्र प्रतिपदा का था। इसलिए इस दिन गुड़ी या विजय पताका फहराई जाती है।


हिंदू पंचांग की रचना का काल


हिन्दू पंचांग विक्रम सवंत का आरम्भ गुड़ी पड़वा से ही होता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर विक्रम सवंत की रचना की थी. उस समय की गयी गड़ना आज के कालखंड की गडना में एक दम सटीक बैठती हैं.


अन्य मान्यताएं-

इस दिन उज्जैयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। 


कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह दिन भगवान राम के राज्याभिषेक समारोह का प्रतीक है, जो 14 साल का वनवास बिताकर अयोध्या लौटे थे. 


इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था,

 

इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।


इस दिन युधिष्ठिर ने राज्यारोहण किया था.


महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना का दिवस


इसी दिन से माँ दुर्गा का उपासना पर्व नवरात्री की शुरुआत होती हैं.


गुड़ी पड़वा पर ही सिखों के द्वितीय गुरु गुरु अंगद देव जी के जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था.


गुडीपड़वा के दिन सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस हुआ था.


कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा


आम के पत्ते से बने तोरण से घर के दरवाजे को सजाते हैं। आम के पत्ते से बने इस तोरण के सजावट के पीछे भी एक कथा प्रचलित हैं। "माना जाता हैं की माँ पार्वती और भगवान शंकर के दोनों पुत्र कार्तिके और गणेश को आम अधिक पसंद हैं, इसीलिए लोग अपने घर के दरवाजे पर आम के पत्तों से सजावट करतें हैं। जिससे देव कार्तिके और श्री गणेश के आशीर्वाद फलस्वरूप परिवार में सुख-समृधि का आगमन होता हैं, अच्छी फसल होती हैं।" 

इस दिन लोग अपने बरामदें या आंगन में गाय के गोबर से लीप कर उसके ऊपर रंगोली बनातें हैं। तथा अपने इष्टदेव की आराधना करतें हुए सुखी-जीवन की मंगल कामना करतें हैं।


गुड़ी पड़वा के दिन घर के बाहर एक खंबे में उल्टा पीतल का बर्तन रखा जाता है, जिस पर सुबह की पहली किरण पड़ती है। इसे गहरे रंग की रेशम की साड़ी (विशेषकर लाल, पीला या केसरिया) और फूलों की माला से सजाया जाता है। इसे घर के बाहर फहराने के रूप में आम के पत्तों और नारियल से लटका दिया जाता है। दरवाजे पर ऊँचे खड़े होकर गुड़ी यानि विजय झण्डा स्वाभिमान से जीने और जीवन के उतार-चढ़ाव में बिना टूटे दण्डवत और उठकर जमीन पर लाठी की तरह उठने का संदेश देता है। गुड़ी को इस तरह से स्थापित किया गया है कि इसे दूर से भी देखा जा सकता है। यह समृद्धि का प्रतीक है।

गुडी को 'धर्म ध्वज' के रूप में भी जाना जाता हैं। अत: इस पर्व के प्रत्येक चरणों का महत्व हैं। "गुडी के ऊपर लगे लोटे का उल्टा पात्र सर को दर्शाता हैं। जबकि दंड मेरुदंड का प्रतिनिधित्व करता हैं।"


इस दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधते हैं। घर के आगे एक झंडा लगाया जाता है और इसके अलावा एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है।इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड,रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा एवं मंत्रों का जप किया जाता है।बेहतर स्वास्थ्य की कामना से नीम की कोपल गुड़ के साथ खाई जाती हैं।

गुड़ी पड़वा के अनेक नाम है. संवत्सर पड्यो, युगादी, उगादी, चेटीचंड और नवरेह


“गुड़ी पड़वा” एक मराठी शब्द है जिसमे “पडवा” मूल रूप से संस्कृत से लिया गया है. जिसका वास्तविक अर्थ है “चैत्र शुक्ल प्रतिपदा”. महाराष्ट्र सबसे प्रमुख वीर योद्धा और महाराज छत्रपति शिवाजी थे, जिन्होंने इस दिन को नए साल के रूप में भव्य समारोह के साथ जीत की “विजयाध्वज” के प्रतीक के रूप मनाया था. इसके बाद इस दिन शिवाजी के उत्सव का प्रभाव महाराष्ट्र की एक मुख्य धारा में रम गया.


महाराष्ट्रियन तरीके से वर्ष का पहला दिन शुभ और पवित्र होता है और इसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है. इस दिन का महत्व भारत में फसल के उत्सव को भी दर्शाता है. इसका मतलब है कि रबी फसलों की फसल खत्म हो चुकी है और साल की शुरुआत में ताजे फलों की बुवाई करके स्वागत किया जाता है जैसे कि आम के दिन बड़े भाग्यशाली होते हैं.


गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्र में मनाया जाता है लेकिन अन्य राज्य भी हैं जिन्होंने इस अवसर को अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य उगादी को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं. 

सिंधियों में चेटी चंड मनाया जाता है. केरल में, “विशु” को लुनिसोलर के सौर चक्र के रूप में मनाया जाता है, जिसे महीने का पहला दिन कहा जाता है. 

सिख धर्म में, वैसाखी को खालसा के जन्म के रूप में मनाया जाता है.


गुड़ी पड़वा के दिन बननेवाले पकवान




दक्षिण में लोग विशेष व्यंजन से मनातें हैं गुडी पर्व। 

दक्षिण में रहने वाले लोग इस दिन अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ एक साथ मिलकर अलग-अलग बने व्यंजनों का आनंद लेते हैं। इस दिन मुख्यत: छ: प्रकार के स्वाद वाले पकवान बनाये और खाए जातें हैं। इस दिन का मुख्य व्यंजन उगादी पचडी के नाम से जाना जाता हैं। यह पचडी कच्चे आम के फल, नीम के फूल, गुड, मिर्च, नमक और ईमली के रस से बनाया जाता हैं। उगादी पचडी इस दिन मुख्य व्यजनो में से एक माना जाता हैं। दक्षिण भारत के लोग इसे प्रसाद के रूप में खातें हैं। 


महाराष्ट्र में इस दिन पुरनपोली या मीठी रोटी बनाई जाती हैं। जिसे घी और शक्कर के साथ परोसा जाता है. 

इस व्यंजन में गुड, नमक, नीम के फूल एवं कच्छे आम द्वारा बनाये जाते हैं। ये व्यजन हमारे जीवन के सार तत्वों को परिभाषित करता हैं जैसे:- गुड जीवन में मिठास के रूप में, नीम के फूल कड़वाहट को दूर करने के लिए और ईमली और आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद का आनंद के प्रतीक होते हैं। 


मिश्री खाने का भी विधान हैं इस दिन। 

इस दिन स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने के लिए हमे नीम के फलों के साथ मिश्री खाने का भी विधान हैं, क्योकि इससे हमे रक्त से सम्बंधित बिमारियों से मुक्ति मिलती हैं। 


 कुछ मराठी परिवारों में इस दिन खासतौर पर श्रीखंड बनाया जाता है और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ परोसा जाता है.


इस पर्व को भारत के विभिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न नामो से जाना जाता हैं। 

गुडी पर्व को गोवा और केरल में कोंकड़ी समुदाय के लोग इसे 'सन संवत् पर्व' के नाम से जानते हैं। तथा कर्नाटक में यह 'युगादी' नाम से जाना जाता हैं। आंध्रप्रदेश और तेल्लंगाना में 'गुडी पर्व' को 'उगादी' नाम से मनातें हैं। 

कश्मीरी हिन्दू इस दिन को 'नवरीह' के तौर पर मानते हैं। 

मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत में यह दिन 'सचिपू, नोगमा, पनबा या मेंतई, चेरउवा' के नाम से जाना जाता हैं.

इस दिन चैत्र नवरात्री का शुभारम्भ होता हैं। इस प्रकार देश के विभिन्न क्षेत्रो में उगादी या गुडी पर्व का त्यौहार मनाया जाता हैं।


इस दिन नये वर्ष में बड़ो से आशीर्वाद और नववर्ष की बधाई देते हैं। 

लोग इस दिन एक साथ सभी मिलकर बड़े बुजुर्ग के द्वारा नये साल का पंचांग सुनतें हैं, और अपना अपना राशीफल को भी देखतें हैं। 


महाराष्ट्रीयन और गोवा के लोग अपना नया साल प्रतिपदा तिथि, चैत्र शुक्ल पक्ष पर मनाते हैं। इस दिन को पारंपरिक रूप से गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। इस साल यह त्योहार 2 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस वर्ष मराठी शाखा संवत 1944 शुरू होगी। 

प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल को सुबह 11.53 बजे से आरंभ होकर, 2 अप्रैल को सुबह 11.58 बजे समाप्त होगी। हिंदू नववर्ष से कई राशियों के अच्छे दिन शुरू होंगे।

चैत्र, प्रतिपदा, शुक्ल पक्ष विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण है। 


हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है. जिसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। गुड़ी का अर्थ है ध्वज अर्थात झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल 2022 को है। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वहां की नकारात्मकता दूर होती है और घर में सुख-शांति खुशहाली आती है। 

विशेष तौर पर यह पर्व कर्नाटक,गोवा,महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। 

इस शुभ दिवस पर लोग परम्परिक वस्त्र धारण करतें हैं। एवं महिलाये इस दिन नौ गज साड़ियाँ पहनती हैं। 

गुड़ी पड़वा का दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन खास तरह के पकवान श्री खंड, पूरनपोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा के बारे में कहा जाता है कि खाली पेट पूरन पोली का सेवन करने से चर्म रोग की समस्या भी दूर हो जाती है।



गुड़ी पड़वा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें


1. मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। इसके बाद से महाराष्ट्र में इस पर्व को मनाने की शुरुआत हुई। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं। कर्नाटक में इसे युगादि, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है।


2. इस त्योहार में सूर्य उपासना की परंपरा है। भक्त सूर्य देव से सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से इसे देखा जाये तो सूर्य ही प्रकृति के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की छमता पृथ्वीवासी में उत्पन्न हो सकें। ऐसी कामना के साथ इस सूर्य की पूजा अर्चना भी की जाती हैं। 


3. गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली बनाई जाती है। कुछ स्थानों पर नीम की पत्तियां खाने का चलन है।



गुड़ी से जुड़ी पौराणिक कथा, एवं इसकी स्थापना का सही तरीका


चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्षा प्रतिपदा या उगादि कहते हैं। इसी दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। 


सृष्टि के निर्माण का दिन


इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए इसी दिन से विक्रम संवत का नया साल भी शुरू होता है। इस दिन दुनिया में पहला सूर्योदय हुआ था। भगवान ने इस प्रतिपदा तिथि को सर्वश्रेष्ठ तिथि कहा था। इसलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहा जाता है। सृष्टि का पहला दिन गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। भगवान ब्रह्मा के भक्त इस शुभ दिन एक पवित्र तेल स्नान करते हैं. 


ब्रम्हपुराण के अनुसार इसी दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ. इसी कारण इस तिथि को सर्वोतम माना जाता हैं.


चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि

शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। -ब्रह्मपुराण


सतयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी।यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन या युगादि तिथि भी कहते हैं। 

इस दिन नवरात्रि घटस्थापन,ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि भी किया जाता है।


शालिवाहन शक संवत


गुड़ी नाम का अर्थ "विजय पताका" है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शालिवाहन नाम के एक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सिपाही बनाकर एक सेना बनाई थी और उस पर पानी छिड़क कर जान डाल दी थी। इसके बाद उस मिट्टी की सेना ने पराक्रमी शत्रुओं को परास्त कर विजय प्राप्त की थी। 'शालिवाहन शक' का आरंभ इसी विजय का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन शकों ने हूणों पर जीत दर्ज की.


आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह त्योहार 'उगादी' और महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।


छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत के उपलक्ष्य में


कुछ लोग छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत के उपलक्ष्य में भगवा झंडा भी फहराते हैं। शाम को एक जुलूस निकाला जाता है जिसमें लोग इकट्ठा होते हैं और लोगों का मनोरंजन करने के लिए समूहों में नृत्य करते हैं।


वानरराज बाली पर विजय


रामायण काल में दक्षिण भारत पर बाली का अत्याचारी शासन था। सीताजी को ढूंढ़ते हुए जब भगवान राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई तो उन्होंने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। तब भगवान राम ने बाली का वध कर वहां के लोगों को उसके कुशासन से मुक्ति दिलाई। मान्यता है कि यह दिन चैत्र प्रतिपदा का था। इसलिए इस दिन गुड़ी या विजय पताका फहराई जाती है।


हिंदू पंचांग की रचना का काल


हिन्दू पंचांग विक्रम सवंत का आरम्भ गुड़ी पड़वा से ही होता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर विक्रम सवंत की रचना की थी. उस समय की गयी गड़ना आज के कालखंड की गडना में एक दम सटीक बैठती हैं.


अन्य मान्यताएं-

इस दिन उज्जैयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। 


कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह दिन भगवान राम के राज्याभिषेक समारोह का प्रतीक है, जो 14 साल का वनवास बिताकर अयोध्या लौटे थे. 


इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था,

 

इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।


इस दिन युधिष्ठिर ने राज्यारोहण किया था.


महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना का दिवस


इसी दिन से माँ दुर्गा का उपासना पर्व नवरात्री की शुरुआत होती हैं.


गुड़ी पड़वा पर ही सिखों के द्वितीय गुरु गुरु अंगद देव जी के जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था.


गुडीपड़वा के दिन सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस हुआ था.


कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा


आम के पत्ते से बने तोरण से घर के दरवाजे को सजाते हैं। आम के पत्ते से बने इस तोरण के सजावट के पीछे भी एक कथा प्रचलित हैं। "माना जाता हैं की माँ पार्वती और भगवान शंकर के दोनों पुत्र कार्तिके और गणेश को आम अधिक पसंद हैं, इसीलिए लोग अपने घर के दरवाजे पर आम के पत्तों से सजावट करतें हैं। जिससे देव कार्तिके और श्री गणेश के आशीर्वाद फलस्वरूप परिवार में सुख-समृधि का आगमन होता हैं, अच्छी फसल होती हैं।" 

इस दिन लोग अपने बरामदें या आंगन में गाय के गोबर से लीप कर उसके ऊपर रंगोली बनातें हैं। तथा अपने इष्टदेव की आराधना करतें हुए सुखी-जीवन की मंगल कामना करतें हैं।


गुड़ी पड़वा के दिन घर के बाहर एक खंबे में उल्टा पीतल का बर्तन रखा जाता है, जिस पर सुबह की पहली किरण पड़ती है। इसे गहरे रंग की रेशम की साड़ी (विशेषकर लाल, पीला या केसरिया) और फूलों की माला से सजाया जाता है। इसे घर के बाहर फहराने के रूप में आम के पत्तों और नारियल से लटका दिया जाता है। दरवाजे पर ऊँचे खड़े होकर गुड़ी यानि विजय झण्डा स्वाभिमान से जीने और जीवन के उतार-चढ़ाव में बिना टूटे दण्डवत और उठकर जमीन पर लाठी की तरह उठने का संदेश देता है। गुड़ी को इस तरह से स्थापित किया गया है कि इसे दूर से भी देखा जा सकता है। यह समृद्धि का प्रतीक है।

गुडी को 'धर्म ध्वज' के रूप में भी जाना जाता हैं। अत: इस पर्व के प्रत्येक चरणों का महत्व हैं। "गुडी के ऊपर लगे लोटे का उल्टा पात्र सर को दर्शाता हैं। जबकि दंड मेरुदंड का प्रतिनिधित्व करता हैं।"


इस दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधते हैं। घर के आगे एक झंडा लगाया जाता है और इसके अलावा एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है।इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड,रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा एवं मंत्रों का जप किया जाता है।बेहतर स्वास्थ्य की कामना से नीम की कोपल गुड़ के साथ खाई जाती हैं।

गुड़ी पड़वा के अनेक नाम है. संवत्सर पड्यो, युगादी, उगादी, चेटीचंड और नवरेह


“गुड़ी पड़वा” एक मराठी शब्द है जिसमे “पडवा” मूल रूप से संस्कृत से लिया गया है. जिसका वास्तविक अर्थ है “चैत्र शुक्ल प्रतिपदा”. महाराष्ट्र सबसे प्रमुख वीर योद्धा और महाराज छत्रपति शिवाजी थे, जिन्होंने इस दिन को नए साल के रूप में भव्य समारोह के साथ जीत की “विजयाध्वज” के प्रतीक के रूप मनाया था. इसके बाद इस दिन शिवाजी के उत्सव का प्रभाव महाराष्ट्र की एक मुख्य धारा में रम गया.


महाराष्ट्रियन तरीके से वर्ष का पहला दिन शुभ और पवित्र होता है और इसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है. इस दिन का महत्व भारत में फसल के उत्सव को भी दर्शाता है. इसका मतलब है कि रबी फसलों की फसल खत्म हो चुकी है और साल की शुरुआत में ताजे फलों की बुवाई करके स्वागत किया जाता है जैसे कि आम के दिन बड़े भाग्यशाली होते हैं.


गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्र में मनाया जाता है लेकिन अन्य राज्य भी हैं जिन्होंने इस अवसर को अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य उगादी को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं. 

सिंधियों में चेटी चंड मनाया जाता है. केरल में, “विशु” को लुनिसोलर के सौर चक्र के रूप में मनाया जाता है, जिसे महीने का पहला दिन कहा जाता है. 

सिख धर्म में, वैसाखी को खालसा के जन्म के रूप में मनाया जाता है.


गुड़ी पड़वा के दिन बननेवाले पकवान


दक्षिण में लोग विशेष व्यंजन से मनातें हैं गुडी पर्व। 

दक्षिण में रहने वाले लोग इस दिन अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ एक साथ मिलकर अलग-अलग बने व्यंजनों का आनंद लेते हैं। इस दिन मुख्यत: छ: प्रकार के स्वाद वाले पकवान बनाये और खाए जातें हैं। इस दिन का मुख्य व्यंजन उगादी पचडी के नाम से जाना जाता हैं। यह पचडी कच्चे आम के फल, नीम के फूल, गुड, मिर्च, नमक और ईमली के रस से बनाया जाता हैं। उगादी पचडी इस दिन मुख्य व्यजनो में से एक माना जाता हैं। दक्षिण भारत के लोग इसे प्रसाद के रूप में खातें हैं। 


महाराष्ट्र में इस दिन पुरनपोली या मीठी रोटी बनाई जाती हैं। जिसे घी और शक्कर के साथ परोसा जाता है. 

इस व्यंजन में गुड, नमक, नीम के फूल एवं कच्छे आम द्वारा बनाये जाते हैं। ये व्यजन हमारे जीवन के सार तत्वों को परिभाषित करता हैं जैसे:- गुड जीवन में मिठास के रूप में, नीम के फूल कड़वाहट को दूर करने के लिए और ईमली और आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद का आनंद के प्रतीक होते हैं। 


मिश्री खाने का भी विधान हैं इस दिन। 

इस दिन स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने के लिए हमे नीम के फलों के साथ मिश्री खाने का भी विधान हैं, क्योकि इससे हमे रक्त से सम्बंधित बिमारियों से मुक्ति मिलती हैं। 


 कुछ मराठी परिवारों में इस दिन खासतौर पर श्रीखंड बनाया जाता है और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ परोसा जाता है.


इस पर्व को भारत के विभिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न नामो से जाना जाता हैं। 

गुडी पर्व को गोवा और केरल में कोंकड़ी समुदाय के लोग इसे 'सन संवत् पर्व' के नाम से जानते हैं। तथा कर्नाटक में यह 'युगादी' नाम से जाना जाता हैं। आंध्रप्रदेश और तेल्लंगाना में 'गुडी पर्व' को 'उगादी' नाम से मनातें हैं। 

कश्मीरी हिन्दू इस दिन को 'नवरीह' के तौर पर मानते हैं। 

मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत में यह दिन 'सचिपू, नोगमा, पनबा या मेंतई, चेरउवा' के नाम से जाना जाता हैं.

इस दिन चैत्र नवरात्री का शुभारम्भ होता हैं। इस प्रकार देश के विभिन्न क्षेत्रो में उगादी या गुडी पर्व का त्यौहार मनाया जाता हैं।


इस दिन नये वर्ष में बड़ो से आशीर्वाद और नववर्ष की बधाई देते हैं। 

लोग इस दिन एक साथ सभी मिलकर बड़े बुजुर्ग के द्वारा नये साल का पंचांग सुनतें हैं, और अपना अपना राशीफल को भी देखतें हैं। 


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