बुधवार, 25 मई 2022

वट सावित्री व्रत





ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले व्रतों में वट अमावस्या को बेहद उत्तम व प्रभावी व्रतों में से एक माना गया है। इस व्रत को उत्तर भारत के कई इलाकों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में भी मनाया जाता है। वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में इसके 15 दिन बाद यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करके सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष के पास जाकर विधिवत पूजा करती हैं। इसके साथ ही वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से पति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि के साथ लंबी आयु की प्राप्ति होती है।


वट सावित्री व्रत 30 मई 2022, दिन सोमवार को रखा जाएगा। अमावस्या तिथि 29 मई को दोपहर 02 बजकर 55 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 30 मई को शाम 05 बजे तक रहेगी।

शास्त्रों के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। 

दूसरी कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। 

वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है. यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे 'अक्षयवट' कहते है. वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है।


वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री-


वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का समान, कच्चा सूत, चना (भिगोया हुआ), बरगद का फल, जल से भरा कलश, खरबूजा फल, चावल के आटे का पीठ, व्रत कथा की पुस्तक आदि शामिल करना चाहिए।


वट सावित्री व्रत पूजा विधि-


-इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।

-इसके बाद नए वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करें.

- इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।

-बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।

- ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।

- इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद रखें और स्थान ग्रहण करें।

- इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।

- अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बट की जड़ में पानी दें।

-पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।

-लाल कपड़ा अर्पित करें और फल समर्पित करें.

-बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें.

-बरगद के वृक्ष में चावल के आटे का पीठा या छाप लगाएं और उसमें सिंदूर का टीका लगाएं।

-जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन, 5 या 7 बार परिक्रमा करें।

-बट के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें.

-बरगद के फल के साथ 11 भीगे हुए चने पानी के साथ घूंटें और पति की दीर्घायु का वरदान मांगें।

-भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।

-यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।

-पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें.

-इसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशीर्वाद लें.


पूजन के बाद इस मंत्र का जप

पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद सुहागिन माता, बहनें अपने जीवन साथी अपने पति की लंबी उम्र की कामना से सबसे पहले 108 बार महामृत्युजंय मंत्र का जप करें। 

इसके बाद 108 बार ही इस यम मंत्र का जप करें। यम मंत्र ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।


इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।





वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित संतान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के बाद पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। सावित्री के युवा होने पर अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय पता करने के बाद वो पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।


नारदजी के बताए समय के कुछ दिनों पहले से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। धीरे -धीरे जब समय बीत गया तब एक दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन आ गया और वो बेहोश होकर गिर गए। उस समय जब यमराज सत्यवान को लेने आये तब सावित्री भी उनके पीछे चलने लगीं। कई बार मना करने पर भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छूटा राज्यपाठ वापस मिल गया। अंत में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। अपनी इसी सूजबूझ से सावित्री ने ना केवल सत्यवान की जान बचाई बल्कि अपने परिवार का भी कल्याण किया।


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