गणेश चतुर्थी हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. इसे विनायक चतुर्थी
के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान गणेश के भक्त उनकी प्रतिमा घर लाकर उसकी स्थापना करते हैं.
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हर महीने में दो गणेश चतुर्थी आती हैं. चुतर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है. भाद्रपद माह में अमावस्या के बाद आने वाली गणेश चतुर्थी का काफी विशेष महत्व होता है. गणेश पुराण में बताया गया है कि गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दिन के समय हुआ था. उस दिन शुभ दिवस बुधवार था. गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है.
गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे 10 दिन तक चलता है. 10वे दिन अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा का विसर्जन भी किया जाता है. अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी आदि में विसर्जन करते हैं.
गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं ?
पौराणिक कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी को गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं.
महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना के लिए गणेश जी का आह्वान किया था और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की. कहते हैं गणेश चतुर्थी के दिन ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणपति जी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना शुरू किया था. 10 दिन तक बिना रूके गणपति ने लेखन कार्य किया. इस दौरान गणेश जी पर धूल मिट्टी की परत जम गई. 10 दिन बाद यानी की अनंत चतुर्दशी पर बप्पा ने सरस्वती नदी में कर खुद को स्वच्छ किया. तब से ही हर साल 10 दिन तक गणेश उत्सव मनाया जाता है.
कैसे होनी चाहिए भगवान गणेश की प्रतिमा
सार्वजनिक जगहों पर जैसे पंडालों में गणेश स्थापना के लिए भगवान गणपति की मूर्ति मिट्टी से बनी हुई होनी चाहिए।
घर और अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर भगवान गणेश की मूर्ति मिट्टी के अलावा सोने, चांदी, स्फटिक और अन्य चीजों से बनी मूर्ति रख सकते हैं।
भगवान गणेश की प्रतिमा जब भी स्थापित करें तो इस बात का ध्यान रखें कि उनकी मूर्ति खंडित अवस्था में नहीं होनी चाहिए।
गणेशजी की मूर्ति में उनके हाथों में अंकुश,पाश, लड्डू, सूंड धुमावदार और हाथ वरदान देने की मुद्रा में होनी चाहिए। इसके अलावा उनके शरीर पर जनेऊ और उनका वाहन चूहा जरूर होना चाहिए।
गणेश मूर्ति स्थापना विधि
पद्म पुराण के अनुसार भगवान गणेश जी का जन्म स्वाति नक्षत्र में मध्याह्न काल में हुआ था। इस कारण से इसी समय पर गणेश स्थापना और पूजा करना ज्यादा शुभ और लाभकारी होगा।
गणेश चतुर्थी के दिन सबसे पहले जल्दी सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ-सुथरा वस्त्र पहनें।
फिर इसके बाद पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान गणेश का स्मरण करते हुए अपने कुल देवता का नाम मन में लें।
ऐसे करें विराजमान
इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व की दिशा में मुंह करके आसन पर बैठ जाएं।
फिर छोटी चौकी पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर एक थाली में चंदन,कुमकुम, अक्षत से स्वस्तिक का निशान बनाएं।
थाली पर बने स्वस्तिक के निशान के ऊपर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हुए पूजा आरंभ कर दें।
पूजा करने ले पहले इस मंत्र का जाप करें।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
गणेश चतुर्थी गणपति बप्पा की स्थापना का मंत्र
गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करते समय इस मंत्र का करें जाप.
अस्य प्राण प्रतिषठन्तु अस्य प्राणा: क्षरंतु च. श्री गणपते त्वम सुप्रतिष्ठ वरदे भवेताम..
गणेशपूजने कर्म यत् न्यूनमधिकम कृतम.
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्न अस्तु गणपति सदा मम..
गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा को अर्पित करें ये चीजें
गणेश चतुर्थी के दिन घर पर बप्पा की मूर्ति स्थापित करते समय जरूर अर्पित करें ये चीजें. आइए जानते हैं इनके बारे में-
दुर्वा घास- भगवान गणेश को दूब घास अर्पित करना काफी शुभ माना जाता है. इस दिन दूब घास को गंगाजल से साफ करके इसकी माला बना लीजिए और भगवान गणेश को अर्पित करें.
मोदक- गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय हैं ऐसे में आप जितने दिन भी गणेश जी को अपने घर में रख रहे हैं प्रत्येक दिन उन्हें मोदक का भोग जरूर लगाएं.
केले- भगवान गणेश को केले भी काफी पसंद हैं ऐसे में भगवान गणेश को लगने वाले भोग में केले को जरूर शामिल करें.
इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व की दिशा में मुंह करके आसन पर बैठ जाएं।
गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का आगमन या विराजमान करना और अनंत चतुर्दशी को गणेश का विसर्जन करने का महत्व है, किंतु कुछ लोग थोड़े समय के लिए ही गणेश जी अपने घरों में विराजमान करते हैं। यह अवधि तीन, पांच और सात दिन की हो सकती है। गणेश जी विराजमान के लिए नियम
-गणेश जी को संकल्पपूर्वक अपने घर में आने के लिए निमंत्रण दें।
-उन्हें श्रद्धा भाव से लेकर आए, घर आने पर फूलों से उनका स्वागत करें।
-विशेष स्थान पर उन्हें विराजमान कर धूप, दीप, नैवेद्य, आरती से उनकी पूजा करें।
उसके पश्चात प्रतिदिन सुबह-शाम की आरती, भोग, प्रसाद की व्यवस्था करें। जितने दिनों के लिए आप गणेश जी को लाए हैं, उसके बाद विशेष आयोजन के द्वारा उन्हें नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। घर से मंगलगान गाते हुए पुष्प वर्षा करते हुए भगवान गणेश को आदरपूर्वक विदा करें और अगले साल आने के लिए पुनः कहें।
गणेश जी की पूजा विधि
सबसे पहले भगवान गणेश का आवहन करते हुए ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए चौकी पर रखी गणेश प्रतिमा के ऊपर जल छिड़के।
भगवान गणेश की पूजा में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्रियों को बारी बारी से उन्हें अर्पित करें। भगवान गणेश की पूजा सामग्रियों में खास चीजें होती हैं ये चीजें- हल्दी, चावल, चंदन, गुलाल,सिंदूर,मौली, दूर्वा,जनेऊ, मिठाई,मोदक, फल,माला और फूल।
इसके बाद भगवान गणेश का साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करें।
गणेश चतुर्थी के मुख्य रूप से चार अनुष्ठान होते हैं.
प्राणप्रतिष्ठा – इस प्रक्रिया में भगवान को मूर्ति में स्थापित किया जाता है.
षडोपचार – इस प्रक्रिया में सोलह रूप में गणेश जी को श्रधांजलि अर्पित किया जाता है.
उत्तरपूजा – यह एक ऐसी पूजा है जिसके करने के उपरांत मूर्ति को को कहीं भी ले जाया जा सकता है
गणपति विसर्जन – इस प्रक्रिया में मूर्ति को नदी या किसी पानी वाले स्थान में विसर्जित किया जाता है.
गणेश पूजा आरंभ विधि पूजा मंत्र
सबसे पहले एक कलश में जल भरकर ले आएं। जहां भी आपने पूजा के लिए मंडप बनाया है वहां आसन बिछाकर बैठ जाएं। हाथ में जल लेकर सबसे पहले हाथ में कुश और जल लें, फिर मंत्र बोलें -
ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:।।
फिर जल को अपने ऊपर और पूजा के लिए रखे सभी सामग्रियों पर इसे छिड़क दें। इसके बाद तीन बार आचमन करें। हाथ में जल लें और ओम केशवाय नम: ओम नाराणाय नम: ओम माधवाय नम: ओम ह्रषीकेशाय नम:। ऐसे बोलते हुए तीन बार हाथ से जल लेकर मुंह से स्पर्श करें फिर हाथ धो लें। इसके बाद जहां गणेशजी की पूजा करनी हो उस स्थान पर कुछ अटूट चावल रखें। इसके ऊपर गणेशजी की प्रतिमा को विराजित करें।
गणेशजी को अपने आसन पर बैठाने के बाद सबसे पहले गणेश चतुर्थी व्रत पूजन का संकल्प लें। बिना संकल्प लिए पूजा न करें। गणेश पूजन संकल्प के लिए हाथ में फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत (अटूट चावल) चांदी का सिक्का या कुछ रुपया, मिठाई, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर हाथ में जल लें फिर संकल्प मंत्र बोलें-
‘ ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे सूर्य दक्षिणायने, मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे शुक्ले पक्षे चतुर्थी तिथौ बुधवासरे चित्रा नक्षत्रे शुक्ल योगे विष्टि करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकल-पाप-क्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति पूजन -पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
संकल्प करने के बाद कलश की पूजा करें। कलश को गणेशजी के दाईं ओर रखें। कलश पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेटकर इस प्रकार रखें कि केवल आगे का भाग ही दिखाई दे। कलश में आम का पल्लव, सुपारी, सिक्का रखें। कलश के गले में लाल वस्त्र या मौली लपेटें। इसके बाद कलश पर नारियरल रखकर इसके ऊपर एक दीप जलाकर ऱख दें।
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आह्वान करें। साथ ही मंत्र ‘ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)’ मंत्र बोलें। इस तरह कलश पूजन के बाद सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें और ‘गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।’ मंत्र पढ़ें।
इसके बाद हाथ में अक्षत लेकर आवाहन मंत्र ‘ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठो भव।’ पढ़कर अक्षत पात्र में गणेशजी के सामने डाल दें। इसके बाद, पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र बोलों। हाथ में जल लेकर कहें- ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।’ मंत्र पढ़ें। जल को पात्र में रख दें। इसके बाद ‘इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:,’ और ‘इदम् श्रीखंड चंदनम्’ बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके बाद ‘इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र जप के साथ गणेशजी को सिंदूर लगाएं। इसके बाद दूर्वा और विल्बपत्र चढ़ाएं। इदं दुर्वादलं ओम गं गणपतये नमः। इदं बिल्वपत्रं ओम गं गणपतये नमः बोलकर क्रमशः दूर्वा और बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि। गणेशजी को ‘इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:’ और ‘इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:’ के साथ मोदक का भोग लगाकर आचमन कराएं। ‘इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:’ और ‘ इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।’ के साथ पान-सुपारी अर्पित करें। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें ‘एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:’। गणेश जी को पुष्प चढ़ाकर प्रणाम करें। गणेशजी की पूजा के बाद ऋद्धि, सिद्धि देवी और क्षेम लाभ की भी पूजा करें। पूजा में धूप-दीप करते हुए सभी की आरती करें।
आरती के बाद 21 लड्डओं का भोग लगाएं जिसमें से 5 लड्डू भगवान गणेश की मूर्ति के पास रखें और बाकी को ब्राह्राणों और आम जन को प्रसाद के रूप में वितरित कर दें।
अंत में ब्राह्राणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें।
पूजा के बाद इस मंत्र का जाप करें।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||
गणेश चालीसा
दोहा
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
चौपाई
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥1॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥2॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥3॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥4॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥5॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥6॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥7॥
ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥8॥
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥9॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥10॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥11॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥12॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥13॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥14॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥15॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥16॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥17॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥18॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥19॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥20॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥21॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥22॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥23॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥24॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥25॥
गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥26॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥27॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥28॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥29॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥30॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥31॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥32॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥33॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥34॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥35॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥36॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥37॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥38॥
श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान॥39॥
नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥40॥
दोहा
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
गणेश जी के घर में विराजमान की अवधि में सात्विक वातावरण, नियम,संयम का पालन अवश्य होना चाहिए। नियमित रूप से भगवान जी के दर्शन, पूजन एवं आरती का आयोजन करते रहें। ’ओम् गं गणपतये नमः। ओम् विघ्न विनाशकाय नमः। ओम् ऋद्धिसिद्धि पतये नमः।’ इन विशेष मंत्रों का जाप नियमित करते रहें। भगवान को मोदक अर्थात लड्डू प्रिय हैं, इसलिए रोजाना उनको मोदक का भोग लगाएं।
मोदक
भगवान गणेश का सबसे प्रिय व्यंजन (मराठी में) है। इसके विभिन्न भाषाओं के कारण अनेक नाम है जैसे: कन्नङ में कडुबु या मोदक , मलयालम में कोज़हाकट्टा और मोदकम, तेलुगु में मोदकम् और कुडुमु और तमिल में कॉज़हक़त्तई और मोदगम। मोदक चावल के आटे या गेहूं के आटे में नारियल, सूखे मेवे, मसालों और गुड़ के मिश्रण का उपयोग कर पूजा के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है। कुछ लोग इसे भाप के द्वारा और कुछ इसे पकाकर बनाते है। मोदक की तरह एक अन्य पकवान करन्जी कहा जाता है, लेकिन यह आकार (अर्धवृत्ताकार आकार) में भिन्न है। 21 की संख्या में गणेश जी को मोदक की भेंट करने की एक रस्म है।
आध्यात्मिक महत्व
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व है कि हमें 10 दिन संयम के साथ बिताते हुए आत्मअवलोकन करना चाहिए और सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए भगवान की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए। 10 दिन पश्चात अपने मन और आत्मा पर जमी हुई मिट्टी की परत हटाते हुए और मन निर्मल करते हुए जीवन जीना चाहिए।
गणेश चतुर्थी भारत में सबसे जीवंत रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। भगवान गणेश की पूजा करने के लिए विशाल पंडाल बनाए जाते हैं और 10 दिनों में भक्तों का एक समूह आता है और भगवान को मिठाई और अन्य चीजें चढ़ाते हैं। गणेश चतुर्थी त्योहार सभी हिंदू त्योहारों के बीच बहुत महत्व रखता है और महाराष्ट्र, तेलंगाना, गोवा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी: पौराणिक मान्यताऐ
धार्मिक शास्त्रों की कहानी बताती है कि देवी पार्वती ने गणेश की रचना की थी। उसने भगवान शिव की अनुपस्थिति में अपने चंदन के लेप का इस्तेमाल कर गणेश की रचना की किया ताकि वह स्नान करते समय उसकी रक्षा कर सके। जब वह चली गई, भगवान शिव ने स्नान कक्ष में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन गणेश पहरा दे रहे थे। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए जिसके परिणामस्वरूप शिव ने गणेश का सिर काट दिया।
यह देखकर, देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी देते हुए, देवी काली में परिवर्तित हो गईं। अन्य सभी देवताओं ने चिंतित होकर भगवान शिव से इसका समाधान खोजने को कहा। फिर भगवान शिवअपने अनुयायियों को एक बच्चा खोजने और उसका सिर काटने का सुझाव दिया। शर्त यह थी कि बच्चे की मां का मुंह दूसरी तरफ हो।
जो पहला सिर मिला वह एक हाथी के बच्चे का था। भगवान शिव ने हाथी का सिर जोड़ा और भगवान गणेश का उनके वर्तमान रूप में पुनर्जन्म हुआ। यह देखकर देवी पार्वती अपने मूल रूप में वापस आ गईं और उसी दिन से हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
गणेश चतुर्थी को लेकर एक यह भी मान्यता है कि भाद्रपद पास की चतुर्थी को गणेशजी ने महाभारत का लेखन कार्य आरंभ किया था। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्नान किया था। उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। तब व्यासजी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः आप बिना समझे और त्रुटि हो तो निवारण करते हुए श्लोक को लिपिबद्ध करें। चतुर्थी के दिन ही व्यासजी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया था। उसके बाद 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी को लेखन का कार्य समाप्त हुआ था।
इन दस दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे। इस कारण दस दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब दस दिन बाद गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके अपने शरीर पर जमी धूल और मिट्टी को साफ किया। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को स्थापित किया जाता है और 10 दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनंत चतुर्दशी को विसर्जित कर दिया जाता है।
गणेशोत्सव का इतिहास
सप्तवाहन शासकों के समय से है गणेशोत्सव की परंपरा : महाराष्ट्र में सप्तवाहन, राष्ट्र कूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी।
शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में गणपति की स्थापना की थी।:पूरे भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। पुणे का गणेशोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के दौरान पूरा शहर धार्मिक रंग में रंगा रहता है। छत्रपति शिवाजी महाराज गणेशजी की उपासना करते थे। इतिहास में यह वर्णन मिलता है कि शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
पेशवाओं ने दिया बढ़ावा : शिवाजी महाराजा के बाद पेशवा राजाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। पेशवाओं के महल शनिवार वाड़ा में पुणे के लोग और पेशवाओं के सेवक काफी उत्साह के साथ हर साल गणेशोत्सव मनाते थें। इस उत्सव के दौरान ब्राह्मणों को महाभोज दिया जाता था और गरीबों में मिठाई और पैसे बांटें जाते थे। शनिवार वाड़ा पर कीर्तन, भजन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। भजन-कीर्तन की यह परंपरा आज भी जारी है।
पहले सिर्फ घरों में होती थी गणेश पूजा : ब्रिटिश काल में लोग किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे। लोग घरों में पूजा किया करते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई। है।
लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव को दिया आंदोलन का स्वरुप : लोकमान्य तिलक ने उस दौरान गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया उससे गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा गया, बल्कि गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया भी बनाया गया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आजादी की जंग और गणेशोत्सव : वीर सावरकर तथा अन्य क्रांतिकारियों ने गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किया। महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। गणेशोत्सव में वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू आदि लोग भाषण देते थे और लोगों का संबोधित करते थे। गणेशोत्सव स्वाधीनता की लड़ाई का एक मंच बन गया था।
गणेशोत्सव से घबराने लगे थे अंग्रेज : अंग्रेज भी गणेशोत्सव के बढ़ते स्वरुप से घबराने लगे थे। इस बारे में रोलेट समिति रिपोर्ट में भी चिंता जतायी गयी थी। रिपोर्ट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं और स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है।
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