मंगलवार, 30 नवंबर 2021

गोवर्धन पूजा Govardhan Puja


गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था।

कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते है:

कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत। शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत।।

भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा की थी

हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा की थी और इंद्र देवता अहंकार तोड़ा था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है।

इंद्र की जगह गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा का प्रचलन आज से नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के द्वापर युग से चला आ रहा है।भागवत पुराण के अनुसार द्वापर युग में पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा किया करते थे। मगर भगवान कृष्ण का तर्क था कि, देवराज इंद्र गोकुलवासियों के पालनहाल नहीं हैं। बल्कि उनके पालनहार तो गोवर्धन पर्वत हैं। क्योंकि यहीं ग्वालों के गायों को चारा मिलता है, जिनसे लोग दूध प्राप्त करते थे। इसलिए भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को कहा कि, हमें देवराज इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। जब इंद्रदेव को श्रीकृष्ण की इस बात के बारे में पता चला तो उन्हें बहुत क्रोध आया और बृज में तेज मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. तब श्रीकृष्ण भगवान ने बृज के लोगों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर लगातार 7 दिन तक उठा कर ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की।
तब बृज के लोगों ने श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाया था. इससे खुश होकर श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों की हमेशा रक्षा करने का वचन दिया था.

इंद्र ने मांगी श्रीकृष्ण से माफी

भगवान ब्रह्मा ने जब इंद्र को बताया कि भगवान कृष्ण विष्णु का अवतार हैं तो इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और फिर बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण 7 दिन बाद गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा की संपूर्ण विधि
हर पूजन की तरह गोवर्धन पूजा करने का भी एक सही तरीका होता है. जानिए कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा.

-गोवर्धन पूजा के दिन सुबह-सुबह शरीर पर तेल मलकर नहाएं.
-दिवाली के अगले दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसे फूलों से सजाया जाता है। 
-  पूजा के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल और फूल आदि चढ़ाएं जाते हैं। इसके अलावा गोवर्धन पूजा पर गाय की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दिन पशुओं की पूजा की जाती है।
- गोवर्धन पूजा पर पुरुष के रूप में गोवर्धन पर्वत बनाए जाते हैं। गोवर्धन की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है, फिर गोवर्धन पुरुष की नाभि पर एक मिट्टी का दीपक रखा जाता है। इस दीपक को जलाने के साथ दूध, दही, गंगाजल आदि पूजा करते समय अर्पित किए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांट दिए जाते हैंl
-  पूजा के अंत में गोवर्धन की सात परिक्रमाएं लगाई जाती हैं। फिर जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी की जाती है।
-  गोवर्धन पर्वत भगवान के रूप में माने और पूजे जाते हैं और गोवर्धन पूजा करने से धन और संतान सुख में वृद्धि होती है।

गोवर्धन पूजा मंत्र

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।

हे कृष्ण करुणासिंधो दीनबंधो जगतपते।
गोपेश गोपिकाकांत राधाकान्त नमोस्तुते।


अन्नकूट पूजा

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गेंहू और चावल आदि अनाज, बेसन की पीला ब्रज जैसु बनी कढ़ी और पत्ते वाली हरी सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है। बाद में इस सारे भोग को भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।

Have something to add to this story? Post your comments in the comments box below; I shall be thrilled to hear from you!


आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Harsh Blogs (www.harsh345.wordpress.com) के साथ।



आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर और लाईक जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Indian Dharma

(www.Indiandharm.blogspot.com) के साथ।


डिसक्लेमर


'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं।  मेरा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'



शनिवार, 27 नवंबर 2021

काल भैरव अष्टमी, काल भैरव जयंती




काल भैरव अष्टमी, काल भैरव जंयती


भगवान शिव (Lord Shiva) के रुद्र स्वरूप को काल भैरव (Kaal Bhairav) के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में काल भैरव की पूजन (Kaal Bhairav Pujan) का विशेष महत्व है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami) के रूप में मनाया जाता है, जिसे कालाष्टमी (Kalashtami) कहा जाता है. वहीं, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जंयती के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था.


वामन पुराण के मुताबिक भगवान शिव के रक्त से आठ दिशाओं में अलग-अलग रूप में प्रकट हुए भैरव

अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है। काल भैरव का जिक्र पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है। शिव पुराण के मुताबिक काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप है। वामन पुराण का कहना है कि भगवान शिव के रक्त से आठों दिशाओं में अलग-अलग रूप में भैरव प्रकट हुए थे। इन आठ में काल भैरव तीसरे थे। काल भैरव रोग, भय, संकट और दुख के स्वामी माने गए हैं। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।


पुराणों में बताए गए हैं 8 भैरव

स्कंद पुराण के अवंति खंड के मुताबिक भगवान भैरव के 8 रूप माने गए हैं। इनमें से काल भैरव तीसरा रूप है। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि शाम के समय जब रात्रि अगमन और दिन खत्म होता है। तब प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे। भैरव से ही अन्य 7 भैरव और प्रकट हुए जिन्हें अपने कर्म और रूप के अनुसार नाम दिए गए हैं।


आठ भैरवों के नाम


1. रुरु भैरव 2. संहार भैरव 3. काल भैरव 4.. असित भैरव 5. क्रोध भैरव 6. भीषण भैरव 7. महा भैरव 8. खटवांग भैरव


काल भैरव पूजा से दूर होती हैं बीमारियां

भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला या भय को जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा करने से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्‍य किसी रोग से लंबे समय से पीड़‍ि‍त है तो वह बीमारी और अन्य तरह की तकलीफ दूर होती है। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। काल भैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।


काल भैरव जयंती पूजा- विधि,


काल भैरव जयंती के दिन  व्रत करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। काल भैरव के पूजन से भूत-प्रेत बाधा, मंत्र-तंत्र, जादू-टोने का प्रभाव खत्म हो जाता है. गृहस्थों को सात्विक विधि से काल भैरव का पूजन करना चाहिए. काल भैरव जयंती के दिन पूजन प्रदोष काल में या रात्रि काल में करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन काल भैरव का षोढ़शोपचार विधि से पूजन किया जाता है और भैरव चालीसा और आरती का पाठ करना चाहिए. इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. आज के दिन काल भैरव की सवारी कुत्ते का रोटी अवश्य खिलाएं. ऐसा करने से काल भैरव भगवान प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.

भैरव बाबा की कृपा से शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है।


पूजा- विधि


इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।

अगर संभव हो तो इस दिन व्रत रखें।

घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें। 

भगवान भैरव की पूजा- अर्चना करें।

इस दिन भगवान शंकर की भी विधि- विधान से पूजा- अर्चना करें।

भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और गणेश भगवान की पूजा- अर्चना भी करें। 

आरती करें और भगवान को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।


भोग-


भगवान भैरव  को  इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल का भोग लगाएं।


इस दिन भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए श्री भैरव चालीसा का पाठ जरूर करें। आगे पढ़ें श्री भैरव चालीसा...


श्री भैरव चालीसा

।। दोहा ।।

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ।।

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल।।

।। चौपाई।।

जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी।।

जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी।।

जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता।।

भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण।।

भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ।।

शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो।।

जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत।।

कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत।।

जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो।।

वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली।।

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन।।

कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा।।

जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत।।

रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन।।

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल।।

रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला।।

बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा।।

करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।

रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन।।

तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं।।

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय।।

भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।

महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ।।

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय।

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ।।

करि मद पान शम्भु गुणगावत । चैंसठ योगिन संग नचावत ।।

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ।।

देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ।।

जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा।।

श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा।।

ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो। ।

सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।

श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो।।

दोहा

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।

कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार।।

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।

उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार।।


Have something to add to this story? Post your comments in the comments box below; I shall be thrilled to hear from you!


आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Harsh Blogs (www.harsh345.wordpress.com) के साथ।




बुधवार, 24 नवंबर 2021

लाभ पंचमी, सौभाग्य पंचमी,Labh Panchami



Labh Panchami :लाभ पंचमी, सौभाग्य पंचमी 


गुजराती नववर्ष की दिवाली से शुरुआत होती है और इसके बाद लाभ पंचमी या सौभाग्य पंचमी पर व्यापारी अपने बही खातों की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लाभ और सौभाग्य की प्रतीक मानी जाती है।


लाभ पंचमी महत्व-

लाभ पंचमी को सौभाग्य या ज्ञान पंचमी भी कहते हैं। इस दिन नए व्यापार की शुरुआत करना शुभ माना जाता है। गुजरात में लाभ पंचमी नए साल का पहला कार्य दिवस होता है, इसलिए इस दिन व्यापारी बही खातों की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

लाभ पंचमी पूजा विधि-

1. इस दिन जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।

2. इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें।

3. अब देवी-देवताओं को चंदन, रोली, अक्षत, दूर्वा और दीप आदि अर्पित करें। 

4. माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करें।

5. अब भगवान को भोग लगाएं।

6. अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करें।

जैन धर्म के लोग इस दिन ज्ञानवर्धक पुस्तकों की पूजा करते हैं और बुद्धि, ज्ञान की प्रार्थना करते हैं।


Have something to add to this story? Post your comments in the comments box below; I shall be thrilled to hear from you!


आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Harsh Blogs (www.harsh345.wordpress.com) के साथ।


सोमवार, 22 नवंबर 2021

उत्पन्ना एकादशी, Utpanna Akadashi

 




उत्पन्ना एकादशी –एकादशी

 हिंदू  ग्रथों में एकादशी के दिवस को भगवान श्री विष्णु के कारण बहुत पवित्र माना गया है। वर्ष में आने वाले 24 से लेकर 26 के उत्सव भगवान श्री हरि को बहुत प्रिय होते हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशी के उत्सव आते हैं जिसमें एक शुक्ल और दूसरा पर्व कृष्ण पक्ष के चलते मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार अधिकमास व मलमास के आने पर एकादशियों की तिथियां बढ़ जाती है। प्रत्येक एकादशी की अपनी विशेष व्रत कथा होती है। एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। 


 उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। मान्यता है कि उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वयं माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और इस व्रत को महान व पूज्नीय बताया था। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

उत्पन्ना एकादशी कब मनाई जाती है?


उत्पन्ना एकादशी वह पर्व है जिसे मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष आने वाले इस उत्सव पर नारायण जी का पूजन किया जाता है। भगवान श्री विष्णु को अलग अलग 108 प्रकार के नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह नवंबर या दिसंबर के समीप आती है।


उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Katha)

इस कथा के अनुसार सतयुग काल में एक मुर नाम का दैत्य था, जोकि बहुत बलशाली और अत्याचारी था। इस राक्षस ने सभी देवताओं को पराजित करके देवलोक से भगा दिया था। जिसके कारण देवता बहुत दुखी थे और शरण के लिए कोई स्थान न होने पर मृत्यु लोक में भटक रहे थे। भगवान शिव द्वारा आदेश दिए जाने पर सभी देवता क्षीरसागर में भगवान श्री विष्णु से सहायता मांगने के लिए गए।


तभी भगवान श्री विष्णु ने उस राक्षस का वध करने का निर्णय लिया और सभी देवताओं को चंद्रावती नगरी में जाने का आदेश दिया। सभी देवताओं ने जब उस नगरी की ओर प्रस्थान किया तो मुर दैत्य अपनी राक्षस सेना के साथ वहां प्रकट हो गया। उसको देखकर सभी देवता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लग गए। तभी भगवान स्वयं रणभूमि पर आए और उस दैत्य से युद्ध करना आरंभ कर दिया।


इस युद्ध में मुर की सेना के कई दैत्य मारे गए और यह युद्ध पूरे 10 हजार वर्षाें तक चलता रहा। जिसमें मुर का शरीर बुरी तरह घायल हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी वह लड़ता ही रहा। जिसके बाद भगवान श्री विष्णु जी मुर दैत्य को घायल छोड़कर स्वयं विश्राम करने के लिए बद्रिकाश्रम की हेमवती नामक गुफा में चले गए। जब भगवान योगनिद्रा में सो रहे थे तब मुर उनका पीछा करते करते वहां पहुंच गया। जैसे ही उसने भगवान को मारने का प्रयास किया तभी एक प्रकाश उत्पन्न हुआ। जिससे एकादशी देवी प्रकट हुई और देवी ने उस दैत्य का वध कर दिया। इस दिन को तब से उत्पन्ना एकादशी के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।


उत्पन्ना एकादशी का महत्व (Utpanna Ekadashi Ka Mahatva)


हरि वासर के नाम जाने वाले इस एकादशी के पर्व का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। श्री हरि भगवान के उपासक इस दिन की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। इस दिन वैदिक कर्मकांड से पूजा करना बहुत फलदायी होता है। पितृ-तर्पण के लिए इस दिन के दोपहर का समय बहुत शुभ होता है। इस दिन किए गए पूजन से जातकों के पूर्वजों के सभी पापों का नाश हो जाता है और उनको स्वर्ग प्राप्त होता है। 


इस दिन पूजा के बाद भजन-कीर्तन करके प्रभु का गान गाया जाता है। उत्पन्ना एकादशी के अंत में क्षमा पूजा करना बहुत आवश्यक है क्योंकि मनुष्य कितने भी अनुष्ठानों का पूरा पालन करके पूजा को करे, फिर भी चंचल मन के कारण कही न कही गलती हो ही जाती है। पूजा के समय किसी अन्य वस्तु व कार्य के बारे में सोचने पर भी दोष लग जाता है। इसी कारण से अंत में क्षमा पूजा की जाती है। इस दिन सभी भक्त अपनी क्षमता के अनुसार दान देते हैं और ब्राह्मणों को भोजन के आमंत्रित करते हैं।


उत्पन्ना एकादशी - अनुष्ठान और महत्व


कृष्ण पक्ष के दौरान मार्गशीर्ष महीने में ग्यारहवें दिन (एकादशी) पर उत्पन्ना एकादशी को उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है। यह पहली एकादशी है जो कार्तिक पूर्णिमा के बाद आती है।


भक्त जो एकादशी के लिए सालाना उपवास रखना चाहते हैं, उन्हें आज ही इसे शुरू करना चाहिए। हिंदू मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस हिंदू तिथि पर उपवास को रखने से भक्तों के सभी अतीत और वर्तमान के पाप धुल जाते हैं।


उत्पन्ना एकादशी का महत्व भविष्योत्तर पुराण जैसे कई हिंदू ग्रंथों में वर्णित है, जो कि बातचीत के रूप में मौजूद है जहां राजा युधिष्ठिर भगवान कृष्ण के साथ वार्तालाप में शामिल हैं।


यह दिन भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक देवी एकादशी के सम्मान में मनाया जाता है। वह भगवान विष्णु का हिस्सा थी और राक्षस मुर को मारने के लिए उनसे पैदा हुई थी जब उसने शयन के समय भगवान विष्णु पर हमला करने और मारने की कोशिश की थी। इस दिन को माँ एकादशी की उत्पत्ति और मूर के विनाश के रूप में याद किया जाता है।


उत्तरी भारत के कई हिस्सों में, उत्पान्ना एकादशी 'मार्गशीर्ष' महीने में मनाई जाती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश राज्यों में, यह त्यौहार कार्तिक के महीने में मनाया जाता है। तमिल कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार कार्तिगाई मसाम महीने में आता है और मलयालम कैलेंडर के अनुसार, यह वृश्चिक मसाम महीने के थुलम में आता है। भक्त उत्पन्ना एकादशी की पूर्व संध्या पर माता एकादशी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।


उत्पन्ना के अनुष्ठानएकादशी


उत्पन्ना एकादशी का व्रत एकादशी की सुबह से शुरू होता है और 'द्वादशी' के सूर्योदय पर समाप्त होती है। ऐसे कई भक्त हैं जो सूर्यास्त से पहले 'सात्विक भोजन' का उपभोग करके अपने दसवें दिन से उपवास की शुरुआत करते हैं। इस दिन किसी भी प्रकार का अनाज, दालें और चावल का उपभोग करना निषिद्ध होता है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है.

भक्त सूर्योदय से पहले जागते हैं और स्नान करने के बाद, ब्रह्मा मुहूर्त में भगवान कृष्ण की प्रार्थना और पूजा करते हैं। एक बार सुबह की रस्म पूरी होने के बाद, भक्त भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा करते हैं और उनकी प्रार्थना भी करते हैं ।

देवताओं को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए एक विशेष भोग तैयार किया जाता है। इस दिन भक्ति गीतों के साथ-साथ वैदिक मंत्रों को पढ़ना बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है।

भक्तों को जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए, क्योंकि इस दिन किए गए किसी भी अच्छे कार्य को अत्यधिक फायदेमंद माना जाता है। भक्त अपनी क्षमता के अनुसार कपड़े, धन, भोजन और कई अन्य आवश्यक चीजें दान कर सकते हैं।



श्री एकादशी माता की आरती, एकादशी व्रत आरती


ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥

ॐ जय एकादशी....॥


तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥

ॐ जय एकादशी....॥


मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥

ॐ जय एकादशी...॥


पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥

ॐ जय एकादशी....॥


नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥

ॐ जय एकादशी...॥


विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥

ॐ जय एकादशी....॥


चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥

ॐ जय एकादशी....॥


शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥

ॐ जय एकादशी....॥


योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥

ॐ जय एकादशी....॥


कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥

ॐ जय एकादशी....॥


अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥

ॐ जय एकादशी....॥


पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥

ॐ जय एकादशी....॥


देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥

ॐ जय एकादशी....॥


परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥

ॐ जय एकादशी....॥


जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥

ॐ जय एकादशी....॥




एकादशी व्रत के दिन


उत्पन्ना एकादशी के अलावा, एक साल में 23 एकादशी व्रत आते हैं जो हिंदू कैलेंडर के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आते हैं। इन सभी एकादशी तिथि हिंदू परंपराओं में बहुत महत्वपूर्ण हैं और विभिन्न एकादशी नाम के साथ लोकप्रिय हैं। यहां वर्ष भर मनाई जाने वाली एकादशी व्रत की सूची है।


क्र.सं.


हिंदू महीना      पक्ष      एकादशी व्रत


1 चैत्र            कृष्ण पक्ष        पापमोचनी एकादशी


2 चैत्र             शुक्ल पक्ष        कामदा एकादशी


3 वैशाख         कृष्ण पक्ष          वरूथिनी एकादशी


4 वैशाख शुक्ल पक्ष मोहिनी एकादशी


5 ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अपरा एकादशी


6 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष निर्जला एकादशी


7 आषाढ़ कृष्ण पक्ष योगिनी एकादशी


8 आषाढ़ शुक्ल पक्ष देवशयनी एकादशी


9 श्रावण कृष्ण पक्ष कामिका एकादशी


10 श्रावण शुक्ल पक्ष श्रवण पुत्रदा एकादशी


11 भाद्रपद कृष्ण पक्ष अजा एकादशी


12 भाद्रपद शुक्ल पक्ष पार्श्व एकादशी


13 अश्विन कृष्ण पक्ष इंदिरा एकादशी


14 अश्विन शुक्ल पक्ष पापांकुशा एकादशी


15 कार्तिक कृष्ण पक्ष रमा एकादशी


16 कार्तिक शुक्ल पक्ष देवोत्थान एकादशी


17 मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष उत्पन्ना एकादशी


18 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष मोक्षदा एकादशी


19 पौष कृष्ण पक्ष सफला एकादशी


20 पौष शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी


21 माघ कृष्ण पक्ष षटतिला एकादशी


22 माघ शुक्ल पक्ष जया एकादशी


23 फाल्गुन कृष्ण पक्ष विजया एकादशी


24 फाल्गुन शुक्ल पक्ष आमलकी एकादशी


राशिनुसार एकादशी के उपाय 


मेष राशि-  मेष राशि के जातक गरीब और जरूरतमंद लोगों को सरसों के तेल का दान करें. 


वृषभ राशि- वृषभ राशि के जातक गरीबों को और गौशाला में ज्वार का दान करें. 


मिथुन राशि- इस राशि के जातक एकादशी के दिन उड़द के आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं. 


कर्क राशि- कर्क राशि के जातक एकादशी के दिन भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें.


सिंह राशि- सिंह राशि वाले लोग मां दुर्गा के चरणों में 108 गुलाब के फूल अर्पित करें.


कन्या राशि- एकादशी के दिन कन्या राशि के जातक वट वृक्ष या पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें.


तुला राशि- तुला राशि के लोगों को एकादशी के दिन गरीब कन्याओं को दूध-दही का दान करने की सलाह दी जाती है. 


वृश्चिक राशि- इस दिन साबुत मसूर सफाई कर्मचारी को दान में करें. 


धनु राशि- एकादशी के दिन धनु राशि वाले अंधे व्यक्ति को भोजन कराएं और कुष्ठ रोगियों को चने की दाल दान में दें.


मकर राशि- एकादशी के दिन पक्षियों को बाजरा खिलाना लाभकारी होता है. 


कुंभ राशि- ज्योतिष के अनुसार कुंभ राशि के जातक 800 ग्राम दूध और 800 ग्राम उड़द बहते पानी में प्रवाह करें.


मीन राशि- मंत्र 'ॐ विष्णवे नम:' का ज्यादा से ज्यादा संख्या में जाप करें. 



शनिवार, 20 नवंबर 2021

भाई दूज, Bhai dooj

 



भाईदूज का पर्व देशभर में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें भाई के माथे पर तिलक करके उसकी लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करती हैं. रक्षाबंधन की ही तरह भाईदूज का भी काफी महत्व है. इस दिन बहनें भाई के लिए पूजा करती हैं, कथा कर व्रत रखती हैं और भाई को तिलक करती हैं. वहीं, भाई भी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है और उन्हें उपहार देता है. भाईदूज को भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से भी जाना जाता है. भाईदूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि इस दिन यम देव अपनी बहन यमुना के कहने पर घर पर भोजन करने गए थे.

ऐसी मान्यता है कि भाई के दूज के दिन बहनों के घर भोजन करने से भाइयों की उम्र बढ़ती है. इतना ही नहीं, इस दिन यमुना में डुबकी लगाने का भी काफी महत्व बताया गया है. 

भाईदूज के रीति-रिवाज और विधि

हिंदू धर्म में त्योहारों का विशेष महत्व बताया गया है. इन पर्वो को सही से मनाने के कुछ रीति-रिवाज और विधि हैं. हर त्योहार एक निश्चित पद्धति और रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है. भाईदूज के दिन बहनें भाई को तिलक करती हैं और पूजा की थाली सिंदूर, कुमकुम, चंदन, फल, फूल, मिठाई, सुपारी आदि से सजाती हैं. 

बहनों को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए, तदंतर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए।

भाई को तिलक करने से पहले चावल के मिश्रण से एक चौक बनाएं. चावल से बनाए गए इस चौक पर भाई को को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह करके दूसरी चौकी पर बैठाना चाहिए।अब, अपने भाई को रूमाल से उसका सिर ढँक दें। अब अपने भाई के माथे पर शुभ मुहूर्त में तिलक करें. और उन्हें नारियल दें। अक्षत को उसके सिर पर रखें।भाई को तिलक करने के बाद फूल, पान, सुपारी, बताशे और काले चने भाई को दें और उसकी आरती उतारें. भाई के तिलक और आरती के बाद भाई बहन को रक्षा का वचन और उपहार दें.

भाई दूज की पूजन विधि

इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर सुबह जल्दी उठें, नहाएं और इसके बाद नए या नए कपड़े पहनें जिससे पूजा की व्यवस्था हो। शुभ मुहूर्त में अनुष्ठान करना चाहिए। पूजा की शुरुआत भगवान गणेश का आह्वान करने से करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेकर देवताओं से प्रार्थना करने के बाद अपने भाई को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह करके दूसरी चौकी पर बैठाना चाहिए। अब, अपने भाई को रूमाल से अपना सिर ढँक दें। अब अपने भाई के माथे पर टीका लगाएं और उन्हें नारियल दें। फिर आरती करें, अक्षत को अपने सिर पर रखें, और उन्हें मिठाई खिलाकर अनुष्ठान का समापन करें। भाई को एक पाट पर बैठाकर तिलक करें। इसके साथ भाई की लंबी आयु, आरोग्य और सुखी जीवन की कामना करें। भाई की आरती उतारें और भोजन करवाएं।

भाईदूज की पौराणिक कथा

भाईदूज को लेकर एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा को संतान की प्राप्ति हुई, पुत्र का नाम यम और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा भगवान सूर्यदेव का तप सहन नहीं कर पाती थी, ऐसे में वह अपनी छाया उत्पन्न कर पुत्र और पुत्री को उसे सौंपकर मायके चली गई। छाया को अपनी संतानों से कोई मोह नहीं था, लेकिन भाई-बहन में आपस में बहुत प्रेम था। यमुना शादी के बाद हमेशा भाई को भोजन पर अपने घर बुलाया करती थी, लेकिन व्यस्तता के कारण यमराज यमुना की बात को टाल दिया करते थे। क्योंकि उन्हें अपने कार्य से इतना समय नहीं मिल पाता था कि वह अपनी बहन के यहां भोजन के लिए जा सकें। लेकिन बहन के काफी जिद के बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमुना से मिलने उनके घर पहुंचे।

यमुना ने उनका स्वागत सत्कार कर माथे पर तिलक लगाकर भोजन करवाया। बहन के आदर सत्कार से प्रसन्न होकर यमदेव ने उनसे कुछ मांगने को कहा, तभी यमुना ने उनसे हर साल इसी दिन घर आने का वरदान मांगा। यमुना के इस निवेदन को स्वीकार करते हुए यम देव ने उन्हें कुछ आभूषण और उपहार दिया।

मान्यता है कि इस दिन जो भाई बहन से तिलक करवाता है, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।

इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते. इस दिन भाई अपनी बहन की सुरक्षा की भी प्रतिज्ञा लेते हैं. पूजा के समय भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिंदूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े.

वस्तुतः इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। द्वितीया के दिन पांच दिवसीय दीपोत्सव का समापन हो जाता है।

खुशनसीब होती है वो बहन

जिसके सिर पर भाई का हाथ होता है

हर परेशानी में उसके साथ होता है

लड़ना-झगडना फिर प्यार से मनाना

तभी तो इस रिश्ते में इतना प्यार होता है।

____________________________

हर बहना करती हैं ईश्वर से दुआ,

भाई को मिले जिंदगी खुशनुमा,

कभी ना हो उसके माथे पर लकीरे,

जीवन की हो सदा सुन्दर तस्वीरें।

राशि के अनुसार भाई दूज में उत्तम प्राप्त हेतु निम्न काम करें.

मेष राशि

भाई दूज के दिन मेष राशि वाले यदि हनुमान जी को सर्वप्रथम तिलक करेंगे तो उनके भाई -बहन के आपसी रिश्ते भी घनिष्ट होंगे।

वृषभ राशि

वृषभ राशि वाले यदि माता लक्ष्मी को आज के दिन खीर का भोग लगाएंगे तो भाई-बहन के जीवन में बरकत के योग बनेंगे।

मिथुन राशि

मिथुन राशि वाले यदि श्री गणेश को तिलक करेंगे और उसके उपरांत अपना भाईदूज का पर्व मनाएंगे तो उनके लिए यह सौभाग्यदायक होगा।

कर्क राशि

कर्क राशि वाले भगवान शिव को सर्वप्रथम यदि तिलक करेंगे तो जीवन में बहुत अच्छे बदलाव देखने को मिलेंगे।

सिंह राशि

सिंह राशि वाले जातक विष्णु भगवान को पीली मिठाई खिलाकर अपना भाईदूज का पर्व मनाएंगे तो यह लाभदायक रहेगा।

कन्या राशि

कन्या राशि वाले भाईदूज पर सर्वप्रथम किसी गाय को हरा चारा या साग-सब्ज़ी खिलाकर अपना पर्व मनाएंगे तो जीवन में मधुरता बढ़ेगी।

तुला राशि

तुला राशि वाले यदि माता लक्ष्मी को सर्वप्रथम नारियल की बर्फ़ी का भोग लगाएंगे तो उनके लिए यह भाग्यशाली साबित होगा।वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि वालों को सर्वप्रथम हनुमान जी को 5 सेब और पान चढ़ाना चाहिए तो यह उनके लिए लाभदायक रहेगा।

धनु राशि

धनु राशि वाले कान्हा जी को बांसुरी उपहार में चढ़ाएं तो आपके अपने और भाई-बहनों के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होगा।

मकर राशि

मकर राशि वाले लोग यदि शनि महाराज को सर्वप्रथम काले गुलाबजामुन का भोग चढ़ाएंगे तो उनके जीवन में मिठास का संचालन होगा।

कुंभ राशि

कुंभ राशि वाले यदि भाईदूज पर्व मनाने से पहले कौवों को बेसन की नमकीन खिलाएंगे तो जीवन के संघर्षो से मुक्ति मिलने के मार्ग खुलेंगे।

मीन राशि

मीन राशि वाले जातक यदि भाईदूज की मिठाई को केले के पत्ते पर रख कर तिलक करेंगे तो जीवन की उन्नति के विभिन मार्ग खुलेंगे।

आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Harsh Blogs ( http://www.harsh345.wordpress.com ) के साथ।

सतुआन

सतुआन  उत्तरी भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक सतुआन प्रमुख पर्व है. यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है. मेष संक्रांति के ...