भगवान शिव (Lord Shiva) के रुद्र स्वरूप को काल भैरव (Kaal Bhairav) के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में काल भैरव की पूजन (Kaal Bhairav Pujan) का विशेष महत्व है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami) के रूप में मनाया जाता है, जिसे कालाष्टमी (Kalashtami) कहा जाता है. वहीं, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जंयती के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था.
वामन पुराण के मुताबिक भगवान शिव के रक्त से आठ दिशाओं में अलग-अलग रूप में प्रकट हुए भैरव
अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है। काल भैरव का जिक्र पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है। शिव पुराण के मुताबिक काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप है। वामन पुराण का कहना है कि भगवान शिव के रक्त से आठों दिशाओं में अलग-अलग रूप में भैरव प्रकट हुए थे। इन आठ में काल भैरव तीसरे थे। काल भैरव रोग, भय, संकट और दुख के स्वामी माने गए हैं। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
पुराणों में बताए गए हैं 8 भैरव
स्कंद पुराण के अवंति खंड के मुताबिक भगवान भैरव के 8 रूप माने गए हैं। इनमें से काल भैरव तीसरा रूप है। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि शाम के समय जब रात्रि अगमन और दिन खत्म होता है। तब प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे। भैरव से ही अन्य 7 भैरव और प्रकट हुए जिन्हें अपने कर्म और रूप के अनुसार नाम दिए गए हैं।
आठ भैरवों के नाम
1. रुरु भैरव 2. संहार भैरव 3. काल भैरव 4.. असित भैरव 5. क्रोध भैरव 6. भीषण भैरव 7. महा भैरव 8. खटवांग भैरव
काल भैरव पूजा से दूर होती हैं बीमारियां
भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला या भय को जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा करने से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्य किसी रोग से लंबे समय से पीड़ित है तो वह बीमारी और अन्य तरह की तकलीफ दूर होती है। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। काल भैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।
काल भैरव जयंती पूजा- विधि,
काल भैरव जयंती के दिन व्रत करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। काल भैरव के पूजन से भूत-प्रेत बाधा, मंत्र-तंत्र, जादू-टोने का प्रभाव खत्म हो जाता है. गृहस्थों को सात्विक विधि से काल भैरव का पूजन करना चाहिए. काल भैरव जयंती के दिन पूजन प्रदोष काल में या रात्रि काल में करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन काल भैरव का षोढ़शोपचार विधि से पूजन किया जाता है और भैरव चालीसा और आरती का पाठ करना चाहिए. इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. आज के दिन काल भैरव की सवारी कुत्ते का रोटी अवश्य खिलाएं. ऐसा करने से काल भैरव भगवान प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
भैरव बाबा की कृपा से शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है।
पूजा- विधि
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत रखें।
घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें।
भगवान भैरव की पूजा- अर्चना करें।
इस दिन भगवान शंकर की भी विधि- विधान से पूजा- अर्चना करें।
भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और गणेश भगवान की पूजा- अर्चना भी करें।
आरती करें और भगवान को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भोग-
भगवान भैरव को इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल का भोग लगाएं।
इस दिन भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए श्री भैरव चालीसा का पाठ जरूर करें। आगे पढ़ें श्री भैरव चालीसा...
श्री भैरव चालीसा
।। दोहा ।।
श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ।।
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल।।
।। चौपाई।।
जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी।।
जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी।।
जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता।।
भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण।।
भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ।।
शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो।।
जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत।।
कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत।।
जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो।।
वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली।।
धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन।।
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा।।
जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत।।
रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन।।
अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल।।
रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला।।
बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा।।
करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन।।
तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं।।
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय।।
भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।
महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ।।
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय।
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।
रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ।।
करि मद पान शम्भु गुणगावत । चैंसठ योगिन संग नचावत ।।
करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ।।
देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ।।
जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा।।
श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा।।
ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो। ।
सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो।।
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार।।
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार।।
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